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Maheshwari Kaneri's Blog (23)

ठिठुरती उँगलियाँ

ठिठुरती उँगलियाँ 

ठिठुरती काँपती उँगलियाँ  

तैयार नहीं छूने को कागज़ कलम

कैसे लिखू अब कविता मैं

बिन कागज़ बिन कलम

भाव मेरे सब घुल रहे हैं

गरम चाय की प्याली में

निकले कंठ से स्वर भी कैसे

जाम लग गया ,कंठ नली में

धूप भी किसी मज़दूरन सी

 थकी हारी सी आती है 

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सी सो जाती है 

सुबह सवेरे ओस कणों से

भीगी रहती धरती सारी

शायद, रात कहर से आहत…

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Added by Maheshwari Kaneri on December 28, 2013 at 3:30pm — 9 Comments

रिश्तों की ताप

रिश्तों की ताप

बर्फ सी ठंडी हथेली में, सूरज का ताप चाहिए

फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए ।

बाँध सर पे कफन, कुछ करने की चाह चाहिए

मर कर भी मिट न सके, ऐसे बेपरवाह चाहिए।

मन में उमड़ते भावों को,शब्दों का विस्तार चाहिए

शब्द भाव बन छलक उठे,ऐसे शब्दों का सार चाहिए।

पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए

चीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए।

चीर कर छाती चट्टानों…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on December 17, 2013 at 12:30pm — 15 Comments

फिर कोई आग बुन

फिर कोई आग बुन

क्यों बुझा- बुझा सा है,फिर कोई आग बुन

छेड़ कर सुरों के तार ,फिर कोई राग चुन ।

 

गहन अँधेरी रात में.भोर कीआवाज़  सुन

नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।

 

मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़

हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।

 

वक्त रुकता नहीं कभी,वक्त की पुकार सुन

भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।

********

महेश्वरी कनेरी /मौलिक व अप्रकाशित रचना

Added by Maheshwari Kaneri on July 24, 2013 at 9:00pm — 11 Comments

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