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सूबे सिंह सुजान's Blog – July 2015 Archive (1)

गजल -आदमी अपनी ही मर्जी का खुदा रखता है ।

कुछ भी हो,अपने मसीहा को बड़ा रखता है

आदमी अपनी ही मर्जी का खुदा रखता है

वो सरेआम हकीकत से मुकर जायेगा

गिरगिटों जैसी बदलने की अदा रखता है

तुम गरीबी को तो इनसान का गहना समझो

जो फटेहाल है वो लब पे दुआ रखता है ।

जुल्म पर जुल्म जो करता है यहाँ दुनिया में

उसके हिस्से में भी भगवान सजा रखता है ।

मार के कुंडली,खजाने पे अकेला बैठा

हक गरीबों का यहाँ सेठ दबा रखता है

एक दिन मैं तुझे आईना दिखा दूंगा "सुजान "

मेरे बारे में जो तू ख्याल बुरा रखता है… Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on July 20, 2015 at 8:20pm — 13 Comments

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