ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम
आरती ख़ुद उतारते हैं हम
फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं
ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम
दूसरों का मजाक करते हैं
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम
सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में
दूसरों को पुकारते हैं हम
डाल कर दूसरों में अपनी कमी
दूसरों को विचारते हैं हम
जीतने से ज़ियादा आये मज़ा
जब महब्बत में हारते हैं हम
इस खुशी…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 22, 2020 at 2:02pm — 6 Comments
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