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Dr a kirtivardhan's Blog – January 2012 Archive (9)

अकेला

अकेला .......

अकेला

एक शब्द

स्वयं मे अकेला|

हजारों कि भीड़ मे

एक अहसास

अकेले होने का

इंसान को अकेला कर देता है

समाज मे,स्वयं कि सोच मे|

कितना अजीब सा है

यह अहसास

अकेलेपन का ?

कभी सोचा है तुमने

किसी सुखी मनुष्य का बारे मे

क्या उसे सालता है अहसास

अकेलेपन का

अथवा यह है अनुभूति

केवल दुखी मनुष्य के साथ?

अकेलापन किसी कि बपौती नहीं

यह है मात्र अहसास

विचारों के साथ|

कभी कभी अच्छा लगता…

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Added by dr a kirtivardhan on January 21, 2012 at 11:00pm — 3 Comments

आँसू

आँसू  ----



आँसू नहीं छंद होते हैं

आँसू नहीं नियम होते हैं

भावों की अनुभूति है आँसू

कभी ख़ुशी कभी गम होते हैं..

मैंने देखे सुख के आँसू

हंसते गाते झिलमिल आँसू

दुःख मे भी देखे हैं आँसू

रोते-रोते दर्दीले आँसू ..

बेटी की विदा बेला पर

छलक पड़े आँखों के आँसू

गौरव के पल आने पर भी

बह निकले आँखों से आँसू ..

कभी किसी की मृत्यु पर भी

खूब बहाए मैंने आंसू

शिशु जन्म के अवसर पर भी

रुक न सके आँखों मे…

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Added by dr a kirtivardhan on January 13, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

मेरी आवाज़

मेरी आवाज़ .....

आवाज़,जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,

उसे कोई दबा नहीं सकता|

दीवार ,जो मेरी आवाज़ दबा सके,

कोई बना नहीं सकता|

जब जब चाहा जालिमों ऩे,आवाज़ दबी हो,

किस्सा, कोई बता नहीं सकता|

क़त्ल कर सकते हो मेरे जिस्म को, कातिल ,

विचारों को कोई दबा नहीं सकता|

खिलेगा कोई फूल उपवन मे,देखना उसको,

खुशबू को कोई चुरा नहीं सकता|

कहाँ से पाला भ्रम अमर होने का,सियासतदानों ,

मौत से कोई पार पा नहीं सकता|

दबाओ के कब तलक मेरी आवाज़ ,दरिंदो…

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Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 3:00pm — 5 Comments

तिरंगा

तिरंगा

तीन रंग मे रंग हुआ है,मेरे देश का झंडा

केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.

इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी

केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी.

संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ

केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा.

शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया

धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया.

महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया

शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया.

खेती से भारत ने…

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Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 1 Comment

हाइकु

कुछ हाइकु

नारी----

.
बेबस नारी
परिवार पालती
रुखा खाकर.

कुल हाडी------

.
आरोपित है
जीवन देने वाली
कुल हाडी है.

आदमी----

आदमी देखो
गिरगिट सा रंग
मन मे भरा.

dr a kirtivardhan

Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

भारतीय नव वर्ष

भारतीय नव वर्ष तथा काल गणना.......

काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं|

दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है | इसे स्रष्टि संवत कहते हैं,इसी दिन को स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है| यह संवत १९७२९४९११३ यानी एक अरब, सत्तानवे करोड़ ,उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ तेरह वर्ष (मार्च २०१२ तक, विक्रम संवत २०६९ के प्रारंभ तक ) पुराना है|

हमारे ऋषि-…

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Added by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 4:30pm — 3 Comments

पहचान नहीं होती

तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,

झील कितनी बड़ी हो,सागर नहीं होती|

गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जहाँ मे,

शराफत की कोई पहचान नहीं होती|

बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से,

टूटी हुई तलवार की,कोई म्यान नहीं होती|

हीरे ,मोती,मानिक के,सब हैं लुटेरे,

हर निगाह ज्ञान के मोती की,कद्रदान नहीं होती|

किसी किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,

बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती|

भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे,

ईमानदारी की बातें,उनका इमान नहीं…

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Added by dr a kirtivardhan on January 10, 2012 at 4:00pm — 2 Comments

तुम्हारी याद में..... तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारी याद मे........

मैं खोयी थी अपने इन्द्रधनुषी सपनों में

अचानक बादलों की एक गडगडाहट ऩे

मुझे तुमसे मिला दिया|

लेकिन मैं कभी मन से

तुम्हारी न बन सकी|

तुम्हारा नियंत्रण मेरी देह पर था,

परन्तु मन आज भी

उन्ही इन्द्रधनुषी सपनों मे

रंगा हुआ था |

धीरे धीरे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ने लगी,

बात बेबात तकरारे बढ़ने लगी,

आँगन मे गुलाब के साथ

कैक्टस भी फलने फूलने लगा|

और एक दिन

जब तुम चले गए

मुझे छोड़कर तन्हा

कहीं दूसरे…

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Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 9:00pm — 1 Comment

सपना

सपना ---

लंगड़े की बैशाखी,बच्चे का खिलौना,

रेल आई -रेल आई,लेकर दौड़ा छोना |

.

सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,

ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|

.

खेलता है फिर भी,रुखी रोटी खा,

मांगता नहीं वह कार या खिलौना|

.

देखा है मैंने उसको सपने सजाते,

खुले गगन तले चाहता है वह सोना|

.

धरती से अम्बर उसकी सीमाएं हैं,

देखता है सबको रोटी का वह सपना|

.

.

डॉ अ कीर्तिवर्धन…

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Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 8:30pm — 8 Comments

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