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सराहना हेतु आभार आदरणीय सौरभ भाई साहब |
आप सभी के स्नेह व सम्मान के लिये हृदय से आभारी हूँ। कष्टदायक व्यस्तता के कारण इस बार 'तरही' की टिप्पणियों में सक्रिय भाग न ले सका, क्षमा प्रार्थी हूँ। एकजाई 'तरही' में अवश्य आपके साथ रहूँगा।
Bhawesh Rajpal jee, I do feel so that Labor Day is not celebrated or even remembered by the labors. Actually, it is altogether a different image-building process what you have mentioned. But here, the poets perform their task of bringing the emotion down towards those belonging to 'have' categories.
Thanks
Respected Ganesh Ji "Bagi", It`s a touching creation , It tells the reality of labour who is working every day to eat everyday." Majdoor Diwas" cann`t be celeberation for him . Rich people celeberate to earn image in society but it`s punishment for labour. Any way my heartiest Regards. Keep touching the hearts.
आदरणीय श्री बागी जी और श्री धर्मेन्द्र जी को हार्दिक बधाई !!
दोनों रचनाएँ भावप्रवणता की दृष्टि ही नहीं शास्त्रीय लिहाज से भी उच्च कोटि की हैं.
प्रकाशन हेतु बधाई.
खुबसूरत दो शेरों के साथ सराहना हेतु आभार आदरणीय तिलक राज जी |
आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी,
वाह वाह तिलकराज जी आपकी ये मार्मिक पक्तियां दिल पर आघात कर गई
बहुत खूब।
मज़दूर को दिवस पर रोज़ी न मिल सकी
सम्मान में दिवस के उपवास हो गया।
बच्चा बहुत था भूखा, लेकिन समझ गया वो
चेहरे को देख मॉं के, चुपचाप सो गया।
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