For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ह शर्मनाक है, बेहद शर्मनाक...अफ़सोस जनक घटना...हमें खेद है, यह दुखद घटना है, उफ़.. फिर बलात्कार की घटना- इस तरह की तमाम प्रतिक्रियायें एवं संवेदनायें हर बलात्कार के बाद ज़ाहिर की जाती हैं. और फिर एक नयी घटना सुनने और पढ़ने को मिल जाती है. आखिर ये सिलसिला कब तक? कहाँ है सरकार? क्या बेतुके बयान देने के लिए चुनते हैं हम सरकारी नुमाइंदे? जिस तरह से रेप के मामले पर हमारे रहनुमाओं की बयानबाजी सामने आती है वह बेहद निंदनीय, असंवेदनशील एवं अस्वीकार्य होती है. बलात्कार की दर्दनाक एवं शर्मनाक घटनाओं के इर्द-गिर्द बहुत कुछ बिखरा पड़ा हुआ है, समय रहते इसको समेटा न गया तो परिवार की, समाज की, देश की ऐसी वीभत्स तस्वीर देखने को मिलेगी जो अकल्पनीय होगी.

जिस भारतभूमि  को देव-भूमि के नाम से पुकारा जाता हो; जिसकी संस्कृति के अनुसरण के लिए पूरी दुनिया नत मस्तक होती हो; जिस देश की हर गली, नुक्कड़ चौराहों पर बेटियों के सम्मान की बाते होती हों; यहां तक कि देश के प्रधानमन्त्री के अभियान “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” के लिए करोड़ों के बजट स्वाहा हो जाते हो, उसी देश में हर आधे-घंटे पर एक बेटी बलात्कार का शिकार हो जाती है . ये कैसी विडंबना है दिल्ली हो, मुम्बई हो, उत्तर प्रदेश हो या फिर मध्यप्रदेश, देश के किसी भी हिस्से में बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं.

निर्भया काण्ड के बाद जिस तरह से देश भर में आक्रोश व्यक्त  किया गया था उससे मन के किसी कोने में  आस जागी थी कि शायद अब विराम वाली स्थिति आएगी लेकिन सरकार के बेहयायी एवं पक्षपात पूर्ण रवैये ने स्थिति जस की तस कर दी और लगातार ऐसी घटनाएं होती रहीं. चन्द दिनों पहले हुई बुलन्दशहर की घटना ने एक बार फिर सबका दिल दहला दिया और देश की संस्कृति के लिए इससे ज़्यादा काला दिन और कौन सा होगा? जब एक स्त्री और उसकी नाबालिग बेटी को अपने परिवार के साथ भी घर से बाहर निकलने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी कि जिसे सुनकर ह्रदय काँप उठता है  और उस देश की सुरक्षा-व्यवस्था पर थू-थू करने का मन करता है. सच्चाई तो यह है कि हम कितने ठगे हुए और असहाय दिखाई देते हैं कि जिससे हम सुरक्षा की उम्मीद करते हैं उन्हीं राजनैतिक गलियारों के बेतुके बयान सुनकर हमारा  सर शर्म से झुक जाता है. बुलंदशहर की घटना पर जब  ये कहा गया ‘कहीं राजनैतिक षडयंत्र के तहत  तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया गया” क्या सरकार की संवेदनशीलता इतनी शून्य हो गयी है, कि उनको अपने घर में बैठीं बेटी का अक्स भी दिखाई नहीं  देता, ऐसी असंवेदनशील सत्ता की कल्पना तो देश के किसी नागरिक नहीं की थी.

संविधान के अंतर्गत ज़िम्मेदारी एवं अधिकार जिनको सौंपे गए हैं उन्हीं राजनेताओं और  अफसरशाही ने अपने बयान और क्रियाकलाप से देश की अस्मिता पर कालिख पोत दी.  बलात्कार की घटनाएं हमारे सिस्टम की विफलता का परिणाम हैं, बात निकली है तो दूर तलक जायेगी कि जिन राजनेताओं से हम न्याय की गुहार लगाते हैं उनमे से अधिकतर खुद अय्याशी के आरोपी हैं, जिस पुलिस से हम सुरक्षा की उम्मीद करते हैं वह खुद बलात्कार के मामले में कटघरे में खडी नज़र आती  हैं,   जिन रिश्तों पर हम नाज़ करते हैं और उन्हें सुरक्षा कवच मानते हैं वह खुद  आरोपी बन इंसानियत का खून कर रहे हैं. फिर भी पीड़िता के परिजन न्याय की उम्मीद में सरकार की चौखट पर माथा टेकते हैं, इसके बावजूद भी सरकार अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं समझती है. एक बार नहीं हर बलात्कार के पश्चात पीड़ित परिवार  और  तमाम स्वयंसेवी संगठनों की मांग पर महिला आयोग एवं सरकार द्वारा  शीघ्र न्याय देने  के लिए स्पेशल फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन की  बात कही जाती है  लेकिन हम  हर बार मौन तथा मूकदर्शक बनकर अगली घटना का इंतज़ार करते नजर आते है. अफ़सोस तो तब हुआ जब न्याय में देरी की मुख्य वजह के दर्द को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर को भी बताते समय रोना आ गया जब उन्होंने बताया कि न्याय में देरी की ख़ास वजह जजों की कमी का होना है. वही  सरकार के  इस तर्क पर हैरानी है  कि धन के अभाव में न्यायालय में पर्याप्त जजों की  नियुक्त नहीं हो पा रही  है. जहां एक तरफ सरकार किसी भी अभियान एवं विज्ञापन पर करोड़ों रुपयों का बजट पानी की तरह बहा देती है वहीँ दूसरी तरफ अपने ही देश की बेटी के बलात्कारियों को सजा देने के लिए  पर्याप्त जज भी नहीं हैं. हर कोई इस बात से वाकिफ है कि बलात्कारियों को जब तक कठोरतम सज़ा नहीं मिलेगी तब तक बलात्कार की घटनाएं नहीं रुकेंगी, इसके लिए शीघ्र ही न्याय मिलना बहुत ज़रूरी हैं क्यूंकि न्याय मिलने की प्रक्रिया जितनी लम्बी होगी पीड़िता का दर्द उतना ही और बढेगा साथ ही सबूत भी कमज़ोर पड़ते नज़र आने लगेंगे जैसा कि अक्सर देखने एवं सुनने को मिलता है.

सवा सौ करोड़ जनता से सवाल बस इतना सा है कि रियो ओलम्पिक में देश की इज्जत बचाने के लिए बेटियों का मुंह ताक रहा ये देश आखिर इतना निर्लज्ज और निर्दयी हो जाता कि इन्ही बेटियों के साथ  बलात्कार दर बलात्कार की घटनाएं होती हैं . कहाँ है हमारी सरकार, जिसके हाथों  में हमने भविष्य की बागडोर सौंपी है और आज उन्हीं के हाथों में बच्चियों का वजूद  सुरक्षित नहीं है. सरकार कोई भी हो उसकी जवाबदेही भेदभाव रहित, जाति-पांति से परे, वोट बैंक से ऊपर उठकर मुजरिमों को अपराध के मुताबिक कठोरतम दण्ड देने की हो ताकि बच्चियों को मान-सम्मान के साथ जीने का हक़ सुनिश्चित हो सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो.

 

डॉ हृदेश चौधरी

 मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 853

Replies to This Discussion

आपका क्रोध जायज़ है आदरणीया हिरदेश जी. आपका क्रोध शाब्दिक हुआ यह और अच्छी बात है.
ऐसी घटनाओं पर देश में कोई उबाल नहीं आया, अबतक सार्थक चर्चा न हुई यह सबसे बड़ी तक़लीफ़ का कारण है. हालत ये है कि लोगों की आँखों की शर्म मर गयी है. मैं अपना एक शेर उद्धृत कर रहा हूँ, उम्मीद है बात कुछ अधिक साफ़ हो सके --

मोमबत्ती लिए लोगों के जुलूसों में भी
दानवी चाह कई आँखों में घर करती है

एक अपेक्षा है, आप किसी मुद्दे को उठयें तो उस विन्दु के अलावा किसी और तथ्य को अन्यथा न स्थान या विस्तार न दें. वर्ना मूल मुद्दे की सान्द्रता में कमी आने काख़तरा हुआ करता है. आपने लिखा है --

//अफ़सोस तो तब हुआ जब न्याय में देरी की मुख्य वजह के दर्द को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर को भी बताते समय रोना आ गया जब उन्होंने बताया कि न्याय में देरी की ख़ास वजह जजों की कमी का होना है. वही  सरकार के  इस तर्क पर हैरानी है  कि धन के अभाव में न्यायालय में पर्याप्त जजों की  नियुक्त नहीं हो पा रही  है. //

उपर्युक्त संदर्भ राजनीतिक अधिक है जिसमें सीजेआइ स्वयं इन्वाल्व हैं. ऐसे विन्दु आपकी चैतन्य सोच को अनावश्यक उलझाव देते हुए-से है. इस विन्दु पर अलग से चर्चा कराई जा सकती है.

आपकी संवेदना और तदनुरूप चर्चा-विन्दु के लिए हार्दिक धन्यवाद..

आज सरकार ही नहीं सामाजिक संगठनों, संस्थाओं तक में ऐसी घटनाओं के प्रति बेतुखी देखी जा सकती है | जो सामाजिक संगठन मानव जाति के हित में ही बनाएं जाते है उनमे भी ऐसी घटनाओं पर आक्रोश की कमी खलती है | आलेख के लिए बधाई आपको आदरनीया डॉ. ह्रदयेश चौधरी जी 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
21 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service