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हँसी क एक बूँद लेल सदिखन
तरसि रहल अछि ठोर,
लाख रोकै छी मुदा न रूकै
बरसि रहल अछि नोर.

की संs की भs गेलै दुनिया
हम जहिना के तहिना.
वक्त पडे तs काम न दै अछि
अपनों हाथ ई दाहिना.

दुःख क सागर बड़ा पैघ अछि
नय देखा सके अछि छोर.

नित्य बढ़ल जा रहल देश में
भेद-भाव आ झगडा.
झगडा केहुना मेटलो जायत
के मेंटत ई रगडा?

एक टा चोर रहै तs कहितौं
घर-घर में घूसल अछि चोर.

भाय-भाय के दुःख नहिं बाँटय
आरो बेस बढ़ाबै
अपना सं नहिं भsपाबै तs
अनको आन चढ़ाबै.

झूठ-फूस के बात में पड़ी के
बता रहल अछि जोर.

जकरा जहां जतेक भs पावै
एक दोसर के लूटै,
कतहुं कुटाबै अछि अपने तs
कतहुं आन के कूटै ,

मोन में करिखा केर ढेरी अछि
मुदा देह अछि गोर.

इज्जत केर इज्जत नय कनियों
सब संs पैघ रुपैया.
पैसे लेल बाबू बाबू छैथ
पैसे संs भैया भैया.

ठीक कहै छथि बडका-जेठका
ई कलियुग अछि घोर.

एहन समैया होयत कहियो
नय छल ई अनुमान.
अब त पार लगाब वाला
एक इयेह भगवान.

नींद न आबई राति-राति भर
सोचैत ह़ोई अछि भोर.

पार कोना कs लागत हमरा
जीवन केर ई नाव?
कोना भरत मरहम पट्टी बिन
जे भs गेल अछि घाव.

इयेह कारण सं हमर आंखि के
भींग जाइत अछि कोर.
लाख रोकै छी मुदा न रूके,
बरसि रहल अछि नोर.

मनोज कुमार झा "प्रलयंकर"

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Replies to This Discussion

Dear friend Manoj Jee, Its a very good poem of you. Abhay.......

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