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आप   कहीं   माई कहीं   बापू सँगे लुगाई

धोती हटि पतलून त  खदरा कमरि, रजाई 

खदरा कमरि, रजाई बदल संस्कृति  परिपाटी 

जाति पाति भेदे नही      पलंगरी बँसखाटी

परेम भाव सदभावना  छाड़ि लगावत जाप

दमड़ी  दमड़ी दाम री करकट नर-कट आप

- - प्रमोद श्रीवास्तव - - 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Replies to This Discussion

नीमन द्विपदी से हँसलोक करत एगो बेवस्थित रचाअ भइल बिया आदरणीय. दिल से बधाई सँकारीं. 

जै जै  

धन्यवाद सौरभ पाण्डेय जी।इसे कुण्डलिया  की श्रेणी मे नही रख सकते क्या, सादर।

काहें ना !

राउर उत्साह आ उछाह के नमन करत हम अतने निहोरा करब जे रउआ पढ़ीं.

हमरा बूझे से जतना असान आ हलुक रउआ लउक रहल बानीं ओतना हलुक रउआ होखबि ना. 

छन्द आदि प लेख बाड़न सऽ. एही मंच प भारतीय छन्द विधान समूह में देखल जाव. माने-जाने लाएक कुछ भेंटा जरूरे जाई.

जै जै 

अरे ना जी ना। इहा त मन मे जउन आवेला उहे  खाँचि दियाला कागज पर ।छन्द विधान के बारे मे कबो सोचाइल ना। अब त  पढ़े के पड़ी। रउआ के बहुते धन्यवाद  अउर नमन।

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