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भला-भला सा यह घर अपना

यही सुखद संसार हमारा.. .

 

हम घर से ही जाने जाते 

इस घर से ही माने पाते 

खेल खेलते, उधम मचाते 

मगन हुए हम गाने गाते 

 

इसके होने ही से अपना 

सबल सधा आधार हमारा .. .  भला-भला सा यह घर अपना.. .

 

घर में दादा, दादी माँ हैं 

घर में चाचा और पिताजी 

चाची, भाई और बहन हैं 

व्यस्त-व्यस्त हैं अपनी माँजी 

 

एक सुबह से गये रात तक 

जीवन अपरम्पार हमारा.. .  भला-भला सा यह घर अपना.. .

 

घर का मेरे पहिचान बड़ा 

है घर के आगे नीम खड़ा 

शीतल छाया नीम पेड़ दे --

औ’ नहीं करेला दिखे चढ़ा 

 

छोटी-सी बगिया है प्यारी 

फूलों सा है प्यार हमारा.. .  भला-भला सा यह घर अपना.. .

 

घर ही से हर रिश्ता-नाता 

सबके होने से घर होता 

प्यार भरोसा चैन लुटाता 

घर हो तो जीवन सुख होता 

 

इस घर के हर कोने से है --

बना हुआ व्यवहार हमारा.. .  भला-भला सा यह घर अपना.. .

 

**************

--सौरभ

**************

 

प्रस्तुत बाल कविता मेरे स्वर में सुनी जाय.  आकाशवाणी इलाहाबाद से 15/ जनवरी/ 2012 को इस रचना का प्रसारण हुआ. 

 
  

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Replies to This Discussion

सौरभ जी, आपकी ये रचना ओबीओ पर ढूँढ कर अभी पढ़ी व आपकी आवाज़ में सुन भी ली. वाकई में...धन्य-धन्य है घर संसार, ये रचना है सुखद अपार. पढ़कर आनंद आ गया. मन मगन-मगन हो गया. क्या नक्शा खींचा है आपने घर-परिवार का लेखनी से...कुछ पलों को तो मैं कल्पना में वहीं पहुँच गयी :)))))

इस मनमोहक बाल-रचना पर आपको बहुत बधाई ! 

बाल मन की भावनाओं को इतने सुन्दर शब्दों में पिरोकर आपने उनके घर के प्रति उनकी भावनाओं को अपने जिस तरह से प्रस्तुत किया है उसे पढना एक सुखद अनुभूति दे जाता है... अपना बचपन और गाँव का घर याद हो आया और मन ही मन प्रफुल्लित होते हुए मैं वहां की सैर भी कर आया... इस सुन्दर रचना को आपकी आवाज में ही सुनना और सुखकर अनुभव रहा... हार्दिक बधाई सौरभ सर 

इस बालगीत को सार्थकता प्रदान करने के लिए हृदय से आभार भाई दुष्यंत सेवकजी.

बहुत खेद है कि आपके अनुमोदन पर मैं इतने दिनों बाद धन्यवाद ज्ञापन कर रहा हूँ. 

शुभ-शुभ

आदरणीय शन्नोजी,

इस बाल-गीत पर आपके उदार अनुमोदन तथा आपकी सराहती हुई टिप्पणी पर आज आभार व्यक्त कर पा रहा हूँ,

क्षमा-क्षमा-क्षमा.. .

सादर

सौरभ जी, आप क्षमा जैसी बात करके मुझे शर्मिंदा ना कीजिये. घर, रिश्ते और नीम के गुणों का बखान करते हुये आपकी इतनी मोहक कविता आपकी ही मीठी आवाज में पगी हुई...सुनकर मैं आनंद से सराबोर हो गयी :)

आदरणीया शन्नोजी,  यह हमारे प्रति आपकी सदाशयता ही है कि आपने इतनी सरलता से हमें उबार लिया.  अन्यथा रचना पर आपकी उन्मुक्त वाहवाही तथा मेरे धन्यवाद ज्ञापन के बीच का अन्तराल स्वयं ही सबकुछ कह रहा है. 

शन्नोजी, रचनाकार की निर्लिप्तता की भी एक हद होती है.

यह तो आपका हम जैसों, जिसे कई जन अब ’ओबीओ वाले’ कहते हैं, के प्रति अपार स्नेह तथा अतिशय लगाव ही है कि आप हमारे प्रयासो पर मुखर तालियाँ बजाती हैं. 

सादर

बहुत खूबसूरत बाल गीत आदरणीय सौरभ जी..

इस गीत के सस्वर गायन से बाल साहित्य समूह समृद्ध हुआ है..सादर आभार.

डॉ.प्राची, प्रस्तुत बाल-गीत पर आप द्वारा हुआ उत्साहवर्द्धन हमें बाल-रचनाओं के प्रति और आग्रही बनायेगा.

आपका सादर आभार

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