For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर – एक सरव, विच्छिन्न चिंतन: डॉ. शरदिंदु मुकर्जी

(इस आलेख पर ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की गोष्ठी जुलाई 2020 में परिचर्चा हुयी)

“जॉनोमॉनो मुग्धोकॉरो उच्चो ओभिलाष.  तोमार बोंधुर पॉथ ऑनोन्तो ऑपार

ओतिक्रोम कॉरा जाए जॉतो पान्थोशाला   तॉतो जैनो ऑग्रोशॉर होते इच्छा हॉय”      

                             (‘अभिलाष’ कविता से : रवींद्रनाथ ठाकुर)

जनमन मुग्धकारी उच्च अभिलाष  कष्टकारी पथ है यह अनन्त अपार

जैसे जैसे विश्रामालय करें अतिक्रम  और और जाने की इच्छा हो चरम  

                                        (भावानुवाद : डॉ शरदिंदु मुकर्जी )

उपरोक्त ऐतिहासिक पंक्तियाँ भारत के नोबेल पुरस्कार प्राप्त विश्वकवि गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की पहली छपी हुई कविता “अभिलाष” के पहले बंद से हैं. कुल 39 बंद में विस्तृत इस लम्बी कविता का रचनाकाल सन् 1873 है. अर्थात कवि (जन्म 7 मई 1861) उस समय मात्र बारह वर्ष के थे. काव्य रचना आठ वर्ष की उम्र से ही चल रही थी. संगीत और साहित्य के नंदन पारिवारिक परिवेश में रवींद्रनाथ की शिक्षा पारम्परिक ढंग से स्कूल की चहारदीवारी से घिरे कमरों में नहीं हुई. उन्होंने घर में ही कला, भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र, भाषा विज्ञान, जीव विज्ञान, संगीत, नृत्य, कुश्ती आदि विविध विधाओं में शिक्षा प्राप्त की. मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में डलहौसी शहर में लम्बे प्रवास के दौरान रवींद्रनाथ ने अपने पिता महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर से ज्योतिर्विज्ञान में मौखिक शिक्षा पाने के कुछ दिनों बाद ही ज्योतिर्विज्ञान विषय पर बांग्ला में एक लम्बा आलेख लिखा था जो उनकी पहली छपी रचना के रूप में स्वीकृत है. इसी समय से भविष्य के विश्वकवि की झलक दिखनी शुरू हो जाती है. सन् 1887 में उन्होंने लिखा –

“नॉयोनो तोमारे पाये ना देखिते / रोयेछो नॉयोने नॉयोने / हृदॉय तोमारे पाये ना जानिते

हृदॉये रोयेछो गोपोने/ बाशोनार बॉशे मोन ऑबिरॉतो / धाय दॉश दिशे पागोलेर मॉतो

/ स्थिर आँखि तुमि मॉरोमे शॉतोतो/ जागिछो शॉयोने शॉपोने”     (रवींद्रनाथ: 1887)

(भावानुवाद : डॉ शरदिंदु मुकर्जी )

नयन तुम्हे देख नहीं पाये / रहते हो दो नयनों में/ हृदय तुम्हे ना पहचाने/ छुपे हृदय में, गोपन में / वासना वशीभूत अविरत मन/ धाये चहुँ ओर पागल सम/ स्थिर नयन तुम/ मर्म में सतत/ जागृत शयन सपन में.      

 

ईश्वर, प्रकृति, मानव के प्रति समर्पित रवींद्रनाथ का दीर्घ कर्ममय जीवन कल्पना और विश्वास के किस स्तर पर विचरण करने चला था उसका इंगित उपरोक्त उदाहरणों में सुस्पष्ट है. गुरुदेव रवींद्रनाथ के साहित्यिक जीवन को एक छोटे से आलेख में समेटना अवांछित भी है और असंभव भी. प्रामाणिक तथ्यों के अनुसार उनकी रचनाओं की संक्षिप्त सूची इस प्रकार है :

  1. काव्य ग्रंथ 52
  2. नाटक 38
  3. उपन्यास 13
  4. आलेख/निबंध 36
  5. छोटी कहानी 95
  6. गीत 1915

प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाओं को लेकर ‘रवींद्र रचनावलीकुल 32 खण्डों में उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त 19 खण्डों में उनका पत्रसाहित्य भी प्रकाशित हुआ है.

रवींद्रनाथ केवल एक कवि, उपन्यासकार, संगीतज्ञ, नाट्यकार, लघुकथाकार, निबंधकार, अभिनेता, गायक और दार्शनिक ही नहीं थे – जीवन की गोधूलि में पहुँचने के साथ ही उन्होंने चित्रकारी भी की. उनके द्वारा बनाए लगभग दो हजार चित्र अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं.

रवींद्रनाथ के चिंतन की ऊँचाईयों तक पहुँचने के लिए उनकी रचनाओं में, विशेष रूप से कविता और गीतों के महासागर में निमग्न होना आवश्यक है. वर्तमान लेख के माध्यम से सीमित समय और अपरिपक्व अभिव्यक्ति के परिसर में इस महामानव को आँकना संभव नहीं. जितना मुझे स्पष्ट है उतना ही निवेदन करता हूँ.

गुरुदेव रवींद्रनाथ वेद, उपनिषद के ज्ञाता ही नहीं उनमें निहित उपदेशों को अपने जीवन में समाए हुए एक पूर्ण मानव थे. इसी के समानांतर वे मूर्ति पूजा नहीं अपितु मानवता में विश्वास करने वाले साधक थे –

जन पूजन साधना आराधना/ सब रहने दो/ बंद द्वार कर मंदिर के कोने में तुम/ बैठे हो क्यों?/ अंधेरे में मन ही मन/ छुपकर पूजते हो गोपन/ दृष्टि उठाकर देकहो  जरा / नहीं देवता घर में –/ वह गये जहाँ पर है/’ कृषक जोतता खेत/ पथ बनाता, शिला तोड़ता/ और मलता रेत/ धूप और बारिश में हैं / वे सबके साथ / मिट्टी से सने हुए हैं/ उनके दोनों हाथ, / उनकी भाँति पवित्र वसन त्याग/ आओ सबके साथ./ मुक्ति ? ओ रे मुक्ति कहाँ मिलेगी / मुक्ति कहाँ है! / स्वयं प्रभु ही सृष्टि बंधन में/ बँधे यहाँ हैं –/ छोड़ो ध्यान, रहने दो फूल / फटे वस्त्र लगा लो धूल / कर्मयोग में साथ एक हो/ घाम झरने दो/ भजन पूजन साधन आराधना/सब रहने दो’     (मूल बांग्ला रवींद्र रचना से भावानुवाद :  डॉ.  शरदिंदु मुकर्जी )

रवींद्रनाथ राष्ट्रवादी थे लेकिन उनका राष्ट्रवाद जाति, धर्म के संकुचित दायरे में सीमाबद्ध न होकर विशाल मानवताबोध लिए हुए एक नयी अनुभूति थी. “भारत-तीर्थ” कविता में वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र जापते उनकी उदारता और दिव्य-दृष्टि परिलक्षित होती है. आज के अशांत राष्ट्रीय और वैश्विक परिवेश में इस उदारता का आँकलन करना भी शिक्षित भारतीय जनमानस के लिए एक चुनौती है.

भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका – इन तीन देशों के राष्ट्रगान के रचयिता इस अनन्य कवि को जानिये इन पंक्तियों के माध्यम से –

‘छोटे जीव छोटी व्यथा/ छोटे-छोटे दु:ख की कथा/ नितांत ही सहज सरल/ सहस्र स्मृति की भीड़/ नित्य बहे होकर निबिड़/ लेकर उसी से कुछ अश्रुजल./ न वर्णना की छटा// घटनाओं की घोर घटा/ न ज्ञान न ही उपदेश/ हिय में अतृप्ति रहे/ अंत में यह मन कहे

हुआ समाप्त फिर भी/ हुआ नहीं शेष        (मूल बांग्ला रवींद्र रचना से भावानुवाद : डॉ.शरदिंदु मुकर्जी )

विज्ञानमना, दार्शनिक, भविष्यद्रष्टा कवि शारीरिक रूप से पृथ्वी से विदा लेने (मृत्यु 7 अगस्त 1941) के 79 वर्ष बाद हम सबके जीवन में हर दिन हर पल आज भी प्रासंगिक हैं अपनी रचनाओं के माध्यम. मेरी श्रद्धांजलि -

“संध्या उतरती है/ पक्षी, जीव-जंतु, मानव/ सभी अपने डेरे पर वापस आते हैं/ दिन की क्लांति को/ प्रेम से बिछाकर/ आगमन होता है/ रात की प्रशांति का –/ तब भी,,  निद्रालीन पृथ्वी के सिरहाने/ भोर होने की प्रतिश्रुति लिए / जगे रहते हैं    -रवींद्रनाथ”   (मेरी मूल बांग्ला रचना ‘रवींद्रनाथके अंतिम बंद का भावानुवाद : शरदिंदु)

इति I

 

 (मौलिक /अप्रकाशित) 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 256

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
47 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
51 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service