For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 60 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-61

विषय - "उत्सव"

आयोजन की अवधि- 13 नवम्बर 2015, दिन शुक्रवार से 14 नवम्बर 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र एक ही प्रविष्टि दे सकेंगे.  
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 नवम्बर 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 11656

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी

उत्सव : पाँच शब्द-चित्र
===============
१.
घर और घर में अंतर होता है
एक के आगे जले पटाखों का ढेर सारा कूड़ा
दूसरे के आगे
महज़ बजबजाते कचरे का ढेर होता है..

 

२.
वो लोग पकवान में क्या-क्या बनाते हैं माँ ?
क्या ढेर सारा भात होता है ?
और दूध भी ?

 

३.
इन जलते दीयों.. बिजली की लड़ियों से बेहतर
अपनी ढ़िबरी है भइया..
घर की रोशनी घर ही में रह जाती है !..

 

४.
धूप दीप माला.. रंग-रंग के फूल.. इतने सारे फल
ऐसे-ऐसे नैवेद्य
ढेर सारी दक्षिणा..
मनुआ देर तक डबर-डबर देखता रहा
उसे माँ याद आ रही थी..
और बापू भी !

 

५.
चुप हो जा.. आज नहीं रोते.. उत्सव है आज..
मनुआ वाकई चुप हो गया
मगर उसे पता नहीं चल रहा था,
आखिर आज बदला क्या है ?
***************
(मौलिक और अप्रकाशित)

आदरणीय सौरभ सर पाँचों शब्द चित्र मार्मिक हुए है. इस शानदार प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

प्रस्तुति पर पुनः उपस्थित होता हूँ सादर 

आपकी प्रतीक्षा रहेगी, आदरणीय 

आदरणीय सौरभ सर, प्रदत्त विषय के अनुरूप खींचे शब्द चित्र समाज में व्याप्त विडंबना को शाब्दिक करते हुए वाकई ऐसे चित्र आँखों के आगे छाने लगे है जो प्रस्तुति का मुखर अनुमोदन करते है. एक एक शब्द चित्र गहरे तक प्रभावित करता है और सोचने के लिए विवश करता है.

 

पहले शब्द चित्र में घर और घर में अंतर बताते हुए जो चित्र खींचा है वह आँखों के आगे तैर जाता है और विवश करता है सोचने के लिए कि ऐसा क्यूं. एक तरफ जले पटाखों का ढेर तो दूसरी तरफ बजबजाते कचरे का ढेर है. ये ढेर एक का उत्सव है तो दूसरे की मजबूरी. अपने कथ्य के मर्म को संप्रेषित करने में सफल शब्द चित्र बहुत गहरे तक पाठक को प्रभावित भी करता है.

 

दूसरा शब्द चित्र बहुत मार्मिक हुआ है. तीन प्रश्न हुए है लेकिन दिल को चीर देने के लिए काफ़ी है. विडम्बना देखिये कि जहाँ से पकवानों का आरम्भ होता है वह उसके लिए पकवानों का चरम है. अगर खीर किसी उत्सव का पहला पकवान है तो दूध और भात उस पकवान के लिए कच्चा माल. उसे क्या पता कि पकवान तो इसके आगे की चीज है. भूख और गरीबी में बचपन का ये हाल दिखाकर आपने नम भी कर दिया और सोचने को विवश भी.

 

तीसरे शब्द चित्र में प्रतीक बहुत बढ़िया ढंग से अपने मर्म का चित्र खींचते है. आपने ढिबरी के प्रतीक का शानदार प्रयोग किया है जो कई आयामों पर खुलता है. इस शब्द चित्र की अभिव्यंजना अद्भुत है. पाठक को बढ़िया छूट मिली है जो अपने मुताबिक रचना को खोल सकता है.

 

चौथे शब्द चित्र में मनुआ का डबर-डबर देखना इतनी सघनता से दिल में उतरता है कि माँ बापू को याद करता मनुआ बिलकुल आँखों के आगे आकर बैठ जाता है. जैसा उत्सव के पवित्र वातावरण में मनुआ का चित्र खींचा गया है यह आपकी सूक्ष्म दृष्टि और संवेदनशील हृदय का परिचायक है.

पांचवे शब्द चित्र में आपने मनुआ की मनोदशा से उसी विडम्बना को मुखर किया है. उत्सव के बहाने मनुआ जब जब चुप कराये जाते है चुप तो हो जाते है मगर समझ नहीं पाते कि क्यों. प्रदत्त विषय पर प्रस्तुत पाँचों शब्द चित्रों ने अपने मर्म को पाठकों तक बखूबी पहुंचाया है. कहना न होगा कि ऐसे सृजन आपकी कलम से ही संभव हो पाते है. शब्दों का चयन किसी भाव को कितनी ऊंचाई दे सकता है ये आपकी प्रस्तुति से बखूबी समझा जा सकता है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. नमन 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी, प्रस्तुतियों पर आपकी विशद टिप्पणियाँ कई पहलुओं को उजागर करने के साथ-साथ आपकी तार्किक समझ को भी साझा करती हैं.
आपने जिस तरह से प्रस्तुत रचना-समुच्चय पर अपने विचार रखे हैं, वे आपके दृष्टिकोण को सामने लाने के साथ-साथ इन शब्द-चित्रों के मर्म को भी स्पर्श करते हुए हैं.

शब्द-चित्रों के सटीक विश्लेषण ने मुझे भी एक रचनाकार के तौर पर आश्वस्त किया है. विशेष तौर पर कहीं की पूजन सामग्री को देख कर ’मनुआ’ का अपने घर की ’दशा’ का स्मरण करते हुए अपने माता-पिता को ध्यान में लाने के बिम्ब को आपने सटीक पकड़ा है.
प्रस्तुति को आपसे मिला अनुमोदन मुग्ध कर रहा है और संतुष्ट भी कि प्रयास किसी हद तक सार्थक हो पाया है. हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.

प्रतिक्रिया के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर 

समृद्ध प्रस्तुति पर आपकी समृद्ध  प्रतिक्रिया पढ़कर यह  दिल मांगे मोर

हा हा हा हा................

:-))

हा हा हा 

१.
घर और घर में अंतर होता है
एक के आगे जले पटाखों का ढेर सारा कूड़ा 
दूसरे के आगे 
महज़ बजबजाते कचरे का ढेर होता है........ पटाखों का ढेर सारा कूड़ा ......बजबजाते कचरे का ढेर ... यकीनन फर्क होता है सुंदर चित्र खींचा है सर जी ...

 

२. 
वो लोग पकवान में क्या-क्या बनाते हैं माँ ?
क्या ढेर सारा भात होता है ? 
और दूध भी ? ....अंधा क्या माँगे दो आँखें और भूखा ..........................बहुत खूब कहा...

 

३.
जलते दीयों.. बिजली की लड़ियों से बेहतर 
अपनी ढ़िबरी ही है भइया.. 
घर की रोशनी घर ही में रह जाती है !..... दिखावे से दूर अति सुंदर ..........

 

४.
धूप दीप माला.. रंग-रंग के फूल.. इतने सारे फल 
ऐसे-ऐसे नैवेद्य 
ढेर सारी दक्षिणा.. 
मनुआ देर तक डबर-डबर देखता रहा 
उसे माँ याद आ रही थी.. 
और बापू भी ! ....................... यतीम बच्चों का दर्द बयाँ करता सुंदर चित्र.....

 

५.
चुप हो जा.. आज नहीं रोते.. उत्सव है आज..
मनुआ वाकई चुप हो गया 
मगर उसे पता नहीं चल रहा था, 
आखिर आज बदला क्या है ? ......... न जाने कितने लोग  बदलाओ की उम्मीद मे जी रहे है ।

 

आदरणीय सौरभ सर उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ....

प्रस्तुति पर आपके मंतव्यों का हार्दिक स्वागत है, नादिर भाई. सकारात्मक टिप्पणी केलिए आपका हार्दिक धन्यवाद 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service