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Shashi bansal goyal's Blog – August 2015 Archive (2)

हैसियत ( लघुकथा )

दफ़्तर के गेट के बाहर अपनी स्कूटी निकाल ही रही थी कि एक बूढ़ी भिखारिन ने अपना भीख का कटोरा उसके आगे कर दिया ।वह उसे देखते ही पहचान गई , क्योंकि उसके मौहल्ले में भी अक़्सर वह भीख माँगा करती थी । उसने  चिल्लर कटोरे में डाल कुछ अनुमानते हुए चोर नज़रें उसके पैरों पर टिका दीं ।  



" ये क्या ? फिर नंगे पैर ? वो चप्पल कहाँ हैं , जो परसों ही मैंने पहनने को दी थीं ?



" घर रख दी बाईजी । उसी रोज़ कहा था , पैसा-लत्ता दे दो बस । पर आप मानी ही नहीं । "



" एक तो तुम्हारे बुढ़ापे पे तरस… Continue

Added by shashi bansal goyal on August 26, 2015 at 10:52pm — 19 Comments

बस और नहीं .. ( लघुकथा )

कुछ काम से कमरे में आई तो देखा , उसका पति सूटकेस में कपड़े जमा रहा था , हैरान हो उसने पूछा ," कहीं बाहर जा रहे हैं ? मुझे कुछ बताया भी नहीं ? यूँ अचानक .. आखिर बात क्या है ? "

" ....................... "

"मैं कुछ पूछ रही हूँ , जवाब क्यों नहीं देते । "

"तुम्हें नहीं लगता संगीता तुमने कुछ पूछने में बहुत देर कर दी । "

"देखो, बच्चों के खाने का समय हो रहा है । फिर मिन्नी की अधूरी पड़ी नई ड्रेस भी सिलना है और बेटू कह रहा था , उसके सिर में दर्द है तो मालिश भी करनी है I सो अभी मेरे…

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Added by shashi bansal goyal on August 18, 2015 at 6:00pm — 11 Comments

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