• मनहरण घनाक्षरी

    रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।वंश  के  विराट  वृक्ष के  तने  पे  डाल  और,पात  संग  फूल सा  शृंगार होतीं बेटियाँ।बाँधती  दिलों  की  डोर, देखती न ओर छोर,रेशमी  हिसार  ताबदार  होतीं बेटियाँ।दो  घरों  के  बीच  एक   सेतु सी कमानदार,राह  फूल-दार…

    By Ashok Kumar Raktale

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  • दोहा षष्ठक. . . . आतंक

     वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर । जिसे मिटाया था किसी ,  आँखों का वह नूर ।। पहलगाम से आ गई, पुलवामा की याद । जख्मों से फिर दर्द का, रिसने लगा मवाद ।। कितना खूनी हो गया, आतंकी उन्माद । हर दिल में अब गूँजता,बदले का संवाद ।। जीवन भर का दे गए, आतंकी वो घाव । अंतस में प्रतिशोध के, बुझते नहीं…

    By Sushil Sarna

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

    एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ 'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझकोएक चुप्पी है जो अब तक खल रही है बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे    सच यही है बूंद कल बादल रही है इक समस्या कोशिशों…

    By गिरिराज भंडारी

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  • दोहा सप्तक. . . उल्फत

    दोहा सप्तक. . . .  उल्फतयाद अमानत बन गयी, लफ्ज हुए लाचार ।पलकों की चिलमन हुई, अश्कों से गुलजार ।।आँखों से होते नहीं, अक्स नूर के दूर ।दर्द जुदाई का सहे, दिल कितना मजबूर ।।उल्फत में रुसवाइयाँ, हासिल हुई जनाब ।मिला दर्द का चश्म को, अश्कों भरा खिताब ।।उलझ गए जो आँख ने, पूछे चन्द सवाल ।खामोशी से ख्वाब…

    By Sushil Sarna

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  • दोहा सप्तक. . . .तकदीर

    दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर ।।भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर । बिना करम के जिंदगी, जैसे लगे फकीर ।।बिना कर्म इंसान की, बदली कब तकदीर । श्रम बदले संसार में, जीने की तस्वीर ।।चाहो जो संसार में, मन वांछित परिणाम । नजर निशाने…

    By Sushil Sarna

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  • दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार

    दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगारदृगजल से लोचन भरे, व्यथित हृदय उद्गार ।बाट जोहते दिन कटा, रैन लगे  अंगार ।।तन में धड़कन प्रेम की, नैनन बरसे नीर ।बैरी मन को दे गया, अनबोली वह पीर ।।जग क्या जाने प्रेम के, कितने गहरे घाव ।अंतस की हर पीर को, जीवित करते स्राव ।।विरही मन में मीत की, हरदम आती याद ।हर करवट पर…

    By Sushil Sarna

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  • दोहे -रिश्ता

    सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।*वह रिश्ते ही सच  कहूँ, पाते  लम्बी आयुजहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।*तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोरयह टूटा तो हो  गया, हर रिश्ता कमजोर।।*करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का…

    By लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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  • दोहा पंचक. . . . होली

    दोहा पंचक. . . . . होलीअलहड़ यौवन रंग में, ऐसा डूबा आज ।मनचलों की टोलियाँ, खूब करें आवाज ।।हमजोली के संग में,  खेले सजनी रंग ।चुपके-चुपके चल रहा, यौवन का हुड़दंग ।।पिचकारी की धार से, ऐसे बरसे रंग ।जीजा की गुस्ताखियाँ, देख हुए सब दंग ।।कंचन काया का किया, पति ने ऐसा हाल ।अंग- अंग रंग में ढला, यौवन लगे…

    By Sushil Sarna

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  • दोहा सप्तक. . . .

    दोहा सप्तक. . . . . रिश्तेतार- तार रिश्ते हुए, मैला हुआ अबीर ।प्रेम शब्द को ढूँढता, दर -दर एक फकीर ।1।सपने टूटें आस के , खंडित हो विश्वास ।मुरझाते रिश्ते वहाँ, जहाँ स्वार्थ का वास ।2।देख रहा संसार में, अकस्मात अवसान ।फिर भी बन्दा जोड़ता, विपुल व्यर्थ सामान ।3।ऐसे टूटें आजकल, रिश्ते जैसे काँच ।पहले…

    By Sushil Sarna

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  • दोहा पंचक. . . . . उमर

    दोहा पंचक. . . . .  उमरबहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।यादें बीती उम्र की,…

    By Sushil Sarna

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