रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,
छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।
वंश के विराट वृक्ष के तने पे डाल और,
पात संग फूल सा शृंगार होतीं बेटियाँ।
बाँधती दिलों की डोर, देखती न ओर छोर,
रेशमी हिसार ताबदार होतीं बेटियाँ।
दो घरों के बीच एक सेतु सी कमानदार,
राह फूल-दार साज़गार होतीं बेटियाँ।।
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अशोक रक्ताले ‘फणीन्द्र’
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय मैं थोड़ा अटक रहा हूँ। इसके शिल्प पर मेरी जानकारी कम शायद यह वजह हो।
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale
आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31 वर्णों की यह छंद रचना है. गेयता में मुझे तो कोई अटकाव नहीं समझ आ रहा है. किन्तु आप कह रहे हैं तो अवश्य ही मैं विचार करूंगा कहाँ बेहतर किया जा सकता है. सादर
8 hours ago
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
अय हय, हय हय, हय हय... क्या ही सुंदर, भावमय रचना प्रस्तुत की है आपने, आदरणीय अशोक भाईजी.
मनहरण घनाक्षरी का प्रस्तुत बंद न केवल भावमय है, शिल्पगत और सुगढ़ भी है. वाचन क्रम में प्रवाहमय है.
हार्दिक बधाइयाँ
शुभातिशुभ
6 hours ago