वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर ।
जिसे मिटाया था किसी , आँखों का वह नूर ।।
पहलगाम से आ गई, पुलवामा की याद ।
जख्मों से फिर दर्द का, रिसने लगा मवाद ।।
कितना खूनी हो गया, आतंकी उन्माद ।
हर दिल में अब गूँजता,बदले का संवाद ।।
जीवन भर का दे गए, आतंकी वो घाव ।
अंतस में प्रतिशोध के, बुझते नहीं अलाव ।।
भारत ने सीखी नहीं, डर के आगे हार ।
दे डाली आतंक को ,खुलेआम ललकार ।।
कर देंगे आतंक के, मंसूबे सब ढेर ।
गीदड़ बन कर भागते , देखे ऐसे शेर ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर .. प्रस्तुत पद के विषम चरण का आपने क्या कर दिया है, आदरणीय सुशील सरना जी ?
बाकी दोहे शिल्पगत हैं.
प्रस्तुत दोएह् के लिए विशेष बधाई -
जीवन भर का दे गए, आतंकी वो घाव
अंतस में प्रतिशोध के, बुझते नहीं अलाव
हार्दिक बधाइयाँ .. शुभातिशुभ
17 hours ago