बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी मिलेसंत सारे बक रहे वाही-तबाही लंठ बन धर्म सम्मेलन में अब दंगों की तैयारी मिलेरोशनी बाँटी जिन्होंने जिस्म उनका जल गयाऔर अँधेरा बेचने वालों को सरदारी मिलेकौन सी चौखट पे जाएँ सच बताने जब हमेंनिर्वसन राजा…
१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही चलन हैअँधेरा रिझाता है अब रोशनी को।।*दुखों ने लगायी है ये आग कैसीसुहाती नहीं है खुशी ही खुशी को।।*चकाचौंध ऊँची जो बोली लगाताकि अनमोल कैसे रखें सादगी को।।*बचे ज़िन्दगी क्या भला हौसलों कीअगर तोड़ दे …
1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया सूरज।चमकते चांद को इस तीरगी में देख लगता है,विरासत को बचाने का हुनर समझा गया सूरज।उफ़क तक दौड़ने के बाद में तब चैन से सोया,जमीं से भी जो जाते वक्त में मिलता गया सूरज।तुम्हें रोना है जितनी देर, रो लो शाम का…
दोहा पंचक. . . . इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल ।।रुखसारों पर रह गए, कुछ ऐसे अल्फाज ।तारीकी के खुल गए, वस्ल भरे सब राज ।।जुल्फों की चिलमन हटी ,हया हुई मजबूर ।तारीकी में लम्स का, बढ़ता रहा सुरूर ।।ख्वाब हकीकत से लगे, बहका दिल नादान ।बढ़ी करीबी इस कदर,…
अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें युगों से ईश्वर, ख़ुदा, भगवान, परमात्मा इत्यादि कहकर पुकारा जाता था।उनकी कोई देह न थी, पर उनकी अनुपस्थिति की धूल हर आँगन, हर मंदिर, हर मस्जिद, हर गिरजाघर में बेआवाज बिखर चुकी हैउनकी मृत्यु पर न…
२१२२ २१२२ २१२२ औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा, फैलता जो जा रहा हैरोशनी का अर्थ भी समझा रहा है चढ़ चुका है इक शिकारी घोसले तकक्या परिंदों को समझ कुछ आ रहा है जो दिया की बोर्ड से आदेश तुमने मानिटर से फल तुम्हें मिलता रहा है पूंछ खींची आपने बकरा…
दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार ।।बिना स्वार्थ के बाँटता, शिक्षक अपना ज्ञान । गढ़े ज्ञान से वह सदा, एक सभ्य इंसान ।।गुरुवर अपने ज्ञान से , करते अमर प्रकाश । राह दिखाते सत्य की, करते तम का नाश ।।शिक्षक करता ज्ञान से , शिष्यों का…
२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१। * जब सच कहे तो काँप उठे झूठ का नगर हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२। * सत्ता के साथ बैठ के लिखते हैं फ़ैसले, जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३। * ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,…
२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी जब पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं बात यूँ अनकही भी निभानी पड़ी।२। * दे गये अश्क सीलन हमें इस तरह याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३। * बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर एक दीवार घर की गिरानी पड़ी।४। * रख दिया बाँधकर…
नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार । उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर इकरार ।। नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद । बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।। नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार । कामुकता से है भरा, नजरों का संसार…