• ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

    .सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी मुझ में बात नहीं     अगरचे आज भी सौदा गराँ नहीं हूँ मैं. . ख़ला की गूँज में मैं डूबता उभरता हूँ    ख़मोशियों से बना हूँ ज़बां नहीं हूँ मैं. . मु’आशरे के सिखाए हुए हैं सब आदाब   किसी का अक्स हूँ ख़ुद का…

    By Nilesh Shevgaonkar

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  • तरही ग़ज़ल

    2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत हैं जानते थे पर अहेतुक स्नेहवशहम सभी से मित्रवत व्यवहार भी करते रहेआपके मंतव्य में थे अन्यथा कुछ अर्थ तोमौन रहकर भाव से प्रतिकार भी करते रहेदुष्प्रचारित कर रहे वो क्या कहूँ छल छद्म पर शत्रुओं का पक्ष…

    By Ravi Shukla

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  • गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

    सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा कैसी रीत चलाई सूर्य निकलता नित्य पूर्व से पश्चिम में ढल जाता कब से डूबा सूर्य हृदय काअब भी नजर न आता धीरे धीरे बढ़ता जाए अंतस में अँधियारा दिशाहीन पथहीन जगत में भटक रहा बंजारा अभी शेष है कितनी…

    By बृजेश कुमार 'ब्रज'

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

    १२२२    १२२२     १२२२      १२२मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं हैइसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन नहीं है समय की धार ने बदला है साँपों को भी शायदवो लिपटे हैं मेरी बाहों से जो चन्दन नहीं है जिन्हों ने कामनाओं की जकड़ स्वीकार की थी   उन्हीं की भावनाओं में बची जकड़न नहीं है न लो गंभीरता से तुम बुढ़ापे…

    By गिरिराज भंडारी

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  • ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

    मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं. .हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं मुख़ालिफ़ हार कर शश्दर खड़े हैं.      शश्दर-आश्चर्यचकित, स्तब्ध . कभी कोई बसेगा दिल-मकां में हम इस उम्मीद में जर्जर खड़े हैं. . ऐ रावण! अब तेरा बचना है मुश्किल तेरे द्वारे पे कुछ बंदर खड़े हैं. . उसे…

    By Nilesh Shevgaonkar

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  • ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)

    देखे जो एक दिन का भी जीना किसान का समझे तू कितना सख़्त है सीना किसान का मिट्टी नहीं अनाज उगलती है तब तलक जब तक मिले न उस में पसीना किसान का बारिश की आस और कभी है उसी का डर यूँ बीतता हर एक महीना किसान का कब से उगा रहा है कपास अपने खेत में कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का समतल ज़मीन पर ये लकीरें…

    By अजय गुप्ता 'अजेय

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  • ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे

    . ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे. . जादू टोना यूँ लब ओ रुख़्सार भी करते रहे जो मुदावा थे वही बीमार भी करते रहे. . उस की सुहबत के असर में हो गए उस की तरह   फिर उसी के लहजे में गुफ़्तार भी करते रहे. . जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर   और अपनी रूह को…

    By Nilesh Shevgaonkar

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  • ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)

    लोग हुए उन्मत्ते हैं बिना आग ही तत्ते हैंगड्डी में सब सत्ते हैं बड़े अनोखे पत्ते हैंउतना तो सामान नहीं है जितने महँगे गत्ते हैंजितनी तनख़्वाह मिलती है उस से ज्यादा भत्ते हैंकानूनों के रचनाकार उन्हें बताते धत्ते हैंबेशर्मी पर हैं वो ही तन पर जिनके लत्ते हैंशहद बनेगा कितना ही अलग-अलग अब छत्ते…

    By अजय गुप्ता 'अजेय

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  • ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

    हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल टूट गया है- मेरा था, आना न कोई समझाने को, नुक़सान में अपने ख़ुश हूँ मैं, क्या और किसी का जाता हैसंतोष सहज ही मिल जाए, तो कद्र नहीं होती इसकी, संतोष की क़ीमत वो जाने, जो चैन गँवा कर पाता हैआज़ाद परिंदे…

    By अजय गुप्ता 'अजेय

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  • ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

    .ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के रस्ते पर चलना है तेरी मर्ज़ी; लेकिन सुन इस रस्ते को श्राप मिला है राही पगला जाएगा. . उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो तो ज़ख़्म हमारे सीते सीते दर्ज़ी पगला जाएगा.   . उस को समुन्दर जैसी छोटी…

    By Nilesh Shevgaonkar

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