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कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना 

अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना 

जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में  जैसे बह जाना

किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना

 

बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना 

चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना 

वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे 

रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे 

 

मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था 

क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिती में अपना हाल तो खस्ता था 

जैसे जैसे कक्षा लाँघें इसका कद भी बढ़ता जाता 

नए नए सवालों में फिर अपना दिमाग भी खप जाता 

 

बीजगणित का हाल ना पूछो अपने मन का मौजी था 

जो फॉर्मूला समझ गए हम दूसरे में ना टिकता था 

एक बेचारी ज्यामिती थी जो दिल अपना बहलाती थी 

प्रमेय और उपमेय के सहारे नंबर हमें दिलाती थी 

 

पहले सिर्फ ये एक विषय था एक हीं किताब में दिखता था 

आगे चल कर खा गया सबको हर विषय में मिलता था 

लेकिन अब जाकर हमने जाना क्यों इसको विज्ञान है माना 

बिना इसके इस जीवन में असंभव है कुछ भी पाना

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on October 5, 2022 at 10:59am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, 

सहर्ष धन्यवाद। 

Comment by Shyam Narain Verma on September 12, 2022 at 5:45pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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