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रूपसी के कोठे पर रसिया लोगों की भीड़ है।सभी अपनी हाल की देहरादून यात्रा का बड़े हौसलापूर्वक वर्णन कर रहे हैं। लखू सेठ, "बड़ी सुखद यात्रा रही,रूपसी बाई।"
गगन बिहारी पांडे बोले,"लगा जैसे स्वर्ग सीधे धरती पर उतर आया हो।"
छोटू दादा: अपुन तो दंग रह गए वहां की अतिथि शाला देखकर।बड़ी भली व्यवस्था थी, देवि।"
अपने प्रति इतना आदरपूर्वक संबोधन सुनकर रूपसी चौंक -सी गई।
"कौन अतिथि शाला,दादा?" रूपसी ने सवाल किया।
"मंजरी सदन।"
"अच्छा।पहुंच ग....ए.....।"रूपसी कहते -कहते रूक गई।हठात उसने दाहिने हाथ से अपना मुंह ढांप लिया।
"क्या हुआ, रूपो?"गगन बिहारी की आवाज गुड़ागुड़ाई।
"कुछ नही।बस ऐसे ही वहां की याद आ गई।"
"आनी ही चाहिए जी।" छोटू दादा बोले।
"हां हां,क्यों नहीं? यादों की बात ही अलग है।" गगन जैसे गुनगुनाए।
"हां हां......एकदम सच है।" सब एक साथ बोल पड़े।
"मैं समझी नहीं।आप सब कहना क्या चाहते हैं?"रूपसी पूछ बैठी।
"यही कि वहां आपकी बड़ी तस्वीर लगी है।नीचे लिखा है ---मंजरी डोगरा,संचालिका।"
"अच्छा तो यह बात है। इसीलिए नाचीज़ को इतनी इज्जत बख्शी जा रही थी।" रूपसी इतना ही बोल पाई।
"हां देवि। यहां यह रूप,वहां वह रूप!हम समझ नहीं पाए। इसीलिए चकित हैं।"सारे रसिया एक साथ बोल पड़े।
रूपसी बोली, "हां, मैं हूं मंजरी डोगरा।सेविका थी वहां।अतिथिशाला पर कर्ज था। न चुक सका।सेठ ने उसे नीलाम कराना चाहा।मैने खुद को उसके हवाले कर दिया।नीलाम हुई।मंजरी मसल दी गई।अतिथिशाला बच गई।"
"फिर?"
"कुछ दिनों के बाद मैं यहां मुंबई आ गई। उस अतिथिशाला के संचालन के लिए हर माह पैसे भेजने होते हैं।भेजती हूं।"
"हम चकित हैं, आपके दोनों रूप देखकर।"
" पूजी मैं ही जाती हूं; यहां इस रूप में,वहां उस रूप में।"
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on October 2, 2022 at 12:05pm

आदरणीय महेंद्र जी, लघुकथा को आपने इज्जत बख्शी। आपका शुक्रिया। 

Comment by Mahendra Kumar on October 2, 2022 at 10:31am

व्यक्ति के कई रूप होते हैं। इस बात को रेखांकित करती हुई अच्छी लघुकथा लिखी है आपने आ. मनन जी। हार्दिक स्वीकार कीजिए।

Comment by Manan Kumar singh on September 30, 2022 at 10:20pm

आभार आदरणीय उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2022 at 9:42pm

आदाब। वाह। परतें-दर-परतें खोलती... पोल खोलती... विवशतायें... व्यवस्थायें...बतलाती बेहतरीन शैली की लघुकथा। हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।

Comment by Samar kabeer on September 17, 2022 at 4:03pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

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