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12122, 12122


1)वो मिलने आता मगर बिज़ी था
मैं मिलने जाता मगर बिज़ी था

2)था इश्क़ तुझसे मुझे भी यारा
तुझे बताता मगर बिज़ी था

3)वो कह रहा था मदद को तेरी
ज़रूर आता मगर बिज़ी था

4)मैं दूसरों की तरह जहाँ में
बहुत कमाता मगर बिज़ी था

5)वो चाहती थी मना लूँ उसको
है सच मनाता मगर बिज़ी था

6)फ़लक से तेरे लिए यक़ीनन
मैं चाँद लाता मगर बिज़ी था

7) जो साज़ छेड़ा था मेरे दिल ने
वो गुनगुनाता मगर बिज़ी था

मौलिक अप्रकाशित 

(अनीस अरमान )

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Comment

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Comment by Md. Anis arman on July 26, 2021 at 1:45pm

जनाब सालिक गणवीर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by सालिक गणवीर on July 24, 2021 at 11:04am

भाई अनीस अरमान जी

आदाब

बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने. बधाइयाँँ स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

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