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२२१/२१२१/१२२१/२१२
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बोलो न आप हो गयी शमशान जिन्दगी
दुख से उबर के ओढ़ेगी मुस्कान जिन्दगी।१।
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करते हो मुझ से प्रश्न तो उत्तर यही मेरा
होती है यार मौत का अवसान जिन्दगी।२।
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कहते हैं सन्त मीन सी दानों को देखकर
माया के जाल फसती है नादान जिन्दगी।३।
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आचल में मौत सासों को लेते न चूकती
भटकी कहीं जो भूल से यूँ ध्यान जिन्दगी।४।
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जैसे विचार वैसी ही जग में बनाती है
सच है सभी की आज भी पहचान जिन्दगी।५।
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करता रहा है प्यार…
Posted on July 21, 2022 at 2:50pm
१२२/१२२/१२२/१२२
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लगाओ लगाओ सदा कर लगाओ
बहुत तुच्छ है ये बड़ा कर लगाओ।।
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अभी रोटियों को अठन्नी बची है
रहे जेब खाली नया कर लगाओ।।
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कभी रक्त बहता दिखे घाव पर से
दवा छोड़ उस पर कटा कर लगाओ।।
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गया बचपना तो उसे छोड़ना मत
युवापन बुढ़ापा ढला कर लगाओ।।
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घटा धूप बारिश तजो चाँदनी मत
मिले मुफ्त क्यों ये हवा कर लगाओ।।
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जो पीते पिलाते उन्हें मुफ्त बाँटो
न पीते हुओं पर नशा कर लगाओ।।
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विलासी लगा है उदासी नहीं…
Posted on July 20, 2022 at 7:28am — 4 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
समझ मत उसे यूँ बुरा और होगा
तपेगा दुखों में खरा और होगा।।
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उजाला कभी जन्म लेगा वहाँ भी
अँधेरा कहाँ तक भला और होगा।।
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रवैय्या है बदला यहाँ चाँद ने अब
रहेगा कहीं पर पता और होगा।।
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लहू में है उस के वही साहूकारी
कहा और होगा लिखा और होगा।।
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करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी
सजा को तुम्हारी गला और होगा।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Posted on July 18, 2022 at 6:40am — 6 Comments
दोहे
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मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
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युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
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कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
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कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
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कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Posted on July 6, 2022 at 5:30am
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
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