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Dharmendra Kumar Yadav
  • Male
  • Maharashtra
  • India
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Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल जाना ‘प्रेम पिता का’कितनी उसमें गहराई है!दिल पर अपने पत्थर रख जब मुन्ने को चपत लगाई है। इस जीवन धारा से बरसोंसींचा पौधा निज अनुभव का।अनजान रहे हम नर होकरकब बोध रहा निज उद्भव का? कर्ज चुकाने मात-पिता काअपना फर्ज निभाना होगा।पर मर्म समझने ममता काबेटी बन फिर आना होगा।"मौलिक व अप्रकाशित"See More
yesterday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

रहता है जो हर पत्थर में

मंदिर क्या है? इक पत्थर हैमस्जिद क्या है? इक पत्थर हैक्या है गिरिजाघर-गुरुद्वारा?इक पत्थर है, इक पत्थर है।रहता है जो हर पत्थर मेंइक ईश्वर है, इक ईश्वर है। "मौलिक व अप्रकाशित"See More
Aug 4
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post चाहत
"आ. धर्मेंद्र जी, अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 2
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

चाहत

अनिमिष नयनों सेवसुधा कोवह गगन निहारा करता है।शोख पवन छूकर अवनी कोयूँ ही इतराया करता है।कितना बेबस!होकर सागरतट तक लहराया करता है।सूर्य लगाकरफेरे निस-दिनबस आग लगाया करता है।धड़कन में चाहत हैफिर क्यों?दिल प्यार छुपाया करता है।बादल हीतपती धरती कीनित प्यास बुझाया करता है।"मौलिक व अप्रकाशित" See More
Jan 17
Dharmendra Kumar Yadav commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।  रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।"
Sep 5, 2021
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
"आ. भाई धर्मेंन्द्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Sep 5, 2021
Dharmendra Kumar Yadav commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
"आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम। आपकी ‘पवन’ शब्द के बारे में टिप्पणी बिल्कुल सही है। अपने मन में मातॄ-भूमि के प्रति उपजे भाव की काव्यात्मक प्रस्तुति में आ रही बाधा को दूर करने हेतु ‘पवन’ के साथ ‘सुहानी’ विशेषण का…"
Aug 31, 2021
Samar kabeer commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
"जनाब धर्मेन्द्र कुमार यादव जी आदाब,अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें । 'प्राणवायु यह पवन सुहानी' इस पंक्ति में 'पवन' शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।"
Aug 31, 2021
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

कैसे सबका मोल चुकाऊँ?

सूरज किरणें देता जग को नदिया देती निर्मल पानी। पालन करती युगों-युगों से धरती ओढ़ चुनरिया धानी।शीतल छाया देता तरुवर प्राणवायु यह पवन सुहानी। फूल चमन को देते खुशबू परम सार संतों की बानी।उऋण हुए गुरु विद्या देकर निर्धन को धन देकर दानी। कैसे सबका मोल चुकाऊँ? दीन अकिंचन मैं अज्ञानी।हे चंडी! दे वर दे मुझको रार अगर दुश्मन ने ठानी। मातृ-भूमि के चरणों पर मैं अर्पण कर दूँ शीश भवानी।"मौलिक व अप्रकाशित"See More
Aug 29, 2021
Dharmendra Kumar Yadav commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"आ. भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर', सप्रेम नमस्कार। रचना को आपने सराहा इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।"
Aug 8, 2021
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, अभिवादन। इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।"
Aug 8, 2021
Dharmendra Kumar Yadav commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"आदरणीय समर कबीर जी, शुक्रिया। आपके सुझाव पर श्रद्धापूर्वक अमल करने का प्रयास करूँगा।"
Aug 8, 2021
Samar kabeer commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"जनाब धर्मेन्द्र कुमार यादव जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें । कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाएँ ।"
Aug 3, 2021
Dharmendra Kumar Yadav commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"आप जैसे वरिष्ठ शायर द्वारा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Aug 2, 2021
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post एक सजनिया चली अकेली
"आदरणीय धर्मेंद्र कुमार यादव जी आदाब, सुंदर गीत लयबद्ध किया है आपने, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।  सादर। "
Aug 1, 2021
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

एक सजनिया चली अकेली

संग न कोई सखी सहेली, रूप छुपाए लाजन से। एक सजनिया चली अकेली, मिलने अपने साजन से।मधुर मिलन की आस सँजोए, वह जब कदम बढ़ाती है। जल थल नभ की नीरवता से, आहट तम की आती है। चार पहर की कठिन डगरिया, पर इठलाती नाजन से। एक सजनिया चली अकेली, मिलने अपने साजन से।धवल चाँदनी बिखरी नभ में, खिली यामिनी धरती पर। बसंत बहार कहीं मल्हार, मधुर रागिनी जगती पर। आतुर हो बढ़ती वह जैसे, राधा मुरली बाजन से। एक सजनिया चली अकेली, मिलने अपने साजन से।नभ मंडल में बिखरे तारे, चाँद क्षितिज के पार चला। तम निकला झुरमुट से बाहर,…See More
Aug 1, 2021

Profile Information

Gender
Male
City State
Thane, Maharashtra
Native Place
Village- Soirai, Post-Baresta Kalan, District- Allahabad
Profession
Auditing
About me
Simple Person

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ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जाते

हम सुनकर डाँट कभी जिनकी।

नव उमंग भर जाती मन में

चुपके से उनकी वह थपकी ।

 

उस पल जाना ‘प्रेम पिता का’

कितनी…

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Posted on December 7, 2024 at 1:55pm

रहता है जो हर पत्थर में

मंदिर क्या है? इक पत्थर है

मस्जिद क्या है? इक पत्थर है

क्या है गिरिजाघर-गुरुद्वारा?

इक पत्थर है, इक पत्थर है।

रहता है जो हर पत्थर में

इक ईश्वर है, इक ईश्वर है।…

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Posted on August 4, 2024 at 12:37pm

चाहत

अनिमिष नयनों से

वसुधा को

वह गगन निहारा करता है।

शोख पवन 

छूकर अवनी को

यूँ ही इतराया करता है।

कितना बेबस!

होकर सागर…

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Posted on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment

कैसे सबका मोल चुकाऊँ?

सूरज किरणें देता जग को

नदिया देती निर्मल पानी।

पालन करती युगों-युगों से

धरती ओढ़ चुनरिया धानी।

शीतल छाया देता तरुवर

प्राणवायु यह पवन सुहानी।

फूल चमन को देते खुशबू

परम सार संतों की बानी।

उऋण हुए गुरु विद्या देकर

निर्धन को धन देकर दानी।

कैसे सबका मोल चुकाऊँ?

दीन अकिंचन मैं अज्ञानी।

हे चंडी! दे वर दे मुझको

रार अगर दुश्मन ने ठानी।

मातृ-भूमि के चरणों पर मैं

अर्पण कर दूँ शीश…

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Posted on August 29, 2021 at 2:38pm — 4 Comments

 
 
 

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