आदरनीय प्रभाकर जी सादर नमस्ते ..!
सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगी कि आपके मित्र अनुरोध को स्वीकार करने में विलम्ब हुआ ..अभी इन दिनों मेरी व्यस्तता कुछ ज्यादा बढ़ गई ..तीन दिन बाद आज ही उदयपुर से लौटी हूं ..!आज आपका कमेन्ट भी पढ़ा "कंही धूप में "ओर में आश्र्याचाकित रह गई आपने जो गज़ल के बारे में जानकारी दी ..आपको भी ताज्जुब होगा कि ..मुझे कविता व गज़ल संबंधी व्याकरण का ज्ञान बिलकुल नहीं है ..किसी गजलकार से मेरा सम्पर्क भी अब तक नहीं था .जो कुछ आज तक लिखा था वो सिर्फ मन के भावों को लिपि-आबद्ध कर लेती हूं मैने जब इसे लिखा तब तो मुझे ग़ज़ल का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था .. ये मैंने दो साल पहले लिखी थी ..ओर ये मधुमती में छपी भी थी मैने इसें गज़ल या कविता शीर्षक भी नहीं दिया ..अभी पिछले महीने एक कुंवर बैचन की पुस्तक गज़ल का व्याकरण बाज़ार में दिखी तो वो खरीद ली उसको पढ़ के मुझे गज़ल का व्यकरण समझ आया ..उसके बाद मैंने जो लिखा उन सब में इन बातों का ध्यान रखने की कोशिश की ..लेकिन इस रचना को आप लोगों के समक्ष ज्यौं का त्यों रख दिया क्योंकि मुझे लगा कि मेने इसें गज़ल नाम नहीं दिया है ..हाँ अब लगता है कि अगर बहर और काफ़िये का ज्ञान पहले होता तो ये गज़ल बन सकती थी ..परन्तु मेरा घर से बहार नहीं निकलना ,गृहस्थी में उलझे रहना अपनी वकालत ,रिसिर्च कार्य में व्यस्त रहना ..सबसे बड़ी बात किन्ही लेखकों से परिचय नहीं होना ..मेरी गलतियों का कारण बना ..अब तो मुझे मेरी गलतियों का अहसास खुद ही होने लगा है ..!आपके हौसलाफजाई व मार्ग दर्शन का तहे दिल से शुक्रिया ..में अब कोशिश करूंगी की आपको मेरी सही गज़ल पढने को मिले ..उम्मीद है आप इसी तरह मार्ग दर्शन करतें रहेंगे ..!आपका बहुत बहुत आभार !
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगी कि आपके मित्र अनुरोध को स्वीकार करने में विलम्ब हुआ ..अभी इन दिनों मेरी व्यस्तता कुछ ज्यादा बढ़ गई ..तीन दिन बाद आज ही उदयपुर से लौटी हूं ..!आज आपका कमेन्ट भी पढ़ा "कंही धूप में "ओर में आश्र्याचाकित रह गई आपने जो गज़ल के बारे में जानकारी दी ..आपको भी ताज्जुब होगा कि ..मुझे कविता व गज़ल संबंधी व्याकरण का ज्ञान बिलकुल नहीं है ..किसी गजलकार से मेरा सम्पर्क भी अब तक नहीं था .जो कुछ आज तक लिखा था वो सिर्फ मन के भावों को लिपि-आबद्ध कर लेती हूं मैने जब इसे लिखा तब तो मुझे ग़ज़ल का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था .. ये मैंने दो साल पहले लिखी थी ..ओर ये मधुमती में छपी भी थी मैने इसें गज़ल या कविता शीर्षक भी नहीं दिया ..अभी पिछले महीने एक कुंवर बैचन की पुस्तक गज़ल का व्याकरण बाज़ार में दिखी तो वो खरीद ली उसको पढ़ के मुझे गज़ल का व्यकरण समझ आया ..उसके बाद मैंने जो लिखा उन सब में इन बातों का ध्यान रखने की कोशिश की ..लेकिन इस रचना को आप लोगों के समक्ष ज्यौं का त्यों रख दिया क्योंकि मुझे लगा कि मेने इसें गज़ल नाम नहीं दिया है ..हाँ अब लगता है कि अगर बहर और काफ़िये का ज्ञान पहले होता तो ये गज़ल बन सकती थी ..परन्तु मेरा घर से बहार नहीं निकलना ,गृहस्थी में उलझे रहना अपनी वकालत ,रिसिर्च कार्य में व्यस्त रहना ..सबसे बड़ी बात किन्ही लेखकों से परिचय नहीं होना ..मेरी गलतियों का कारण बना ..अब तो मुझे मेरी गलतियों का अहसास खुद ही होने लगा है ..!आपके हौसलाफजाई व मार्ग दर्शन का तहे दिल से शुक्रिया ..में अब कोशिश करूंगी की आपको मेरी सही गज़ल पढने को मिले ..उम्मीद है आप इसी तरह मार्ग दर्शन करतें रहेंगे ..!आपका बहुत बहुत आभार !
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