Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T09:53:44Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A992909&xn_auth=noसामाजिक परिवेश को लेकर एक अच्…tag:openbooks.ning.com,2019-09-28:5170231:Comment:9934242019-09-28T12:23:03.829Zबृजेश कुमार 'ब्रज'https://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p style="text-align: left;">सामाजिक परिवेश को लेकर एक अच्छी रचना..बधाई आदरणीय</p>
<p style="text-align: left;">सामाजिक परिवेश को लेकर एक अच्छी रचना..बधाई आदरणीय</p> आ0अरकान नहीं लिखा आपने । ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2019-09-25:5170231:Comment:9928772019-09-25T16:47:05.589ZNaveen Mani Tripathihttps://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
<p>आ0अरकान नहीं लिखा आपने । ग़ज़ल की समीक्षा कैसे हो ? खैर!</p>
<p>नदियां बोली .... शेर में सुतर गुरबा का दोष है ।</p>
<p>दूषित जल हो उनको क्या है ।</p>
<p>जो पीते ...... </p>
<p></p>
<p></p>
<p>डूब चुकीं जब गलियां सड़कें ।</p>
<p></p>
<p>सब कुछ अच्छा करते दावा इस शेर में रब्त नहीं है ।</p>
<p></p>
<p>नगर हुआ यह मिसरा बह्र में नहीं</p>
<p></p>
<p>आंखों में है खारा पानी</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>आ0अरकान नहीं लिखा आपने । ग़ज़ल की समीक्षा कैसे हो ? खैर!</p>
<p>नदियां बोली .... शेर में सुतर गुरबा का दोष है ।</p>
<p>दूषित जल हो उनको क्या है ।</p>
<p>जो पीते ...... </p>
<p></p>
<p></p>
<p>डूब चुकीं जब गलियां सड़कें ।</p>
<p></p>
<p>सब कुछ अच्छा करते दावा इस शेर में रब्त नहीं है ।</p>
<p></p>
<p>नगर हुआ यह मिसरा बह्र में नहीं</p>
<p></p>
<p>आंखों में है खारा पानी</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p> जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदा…tag:openbooks.ning.com,2019-09-25:5170231:Comment:9927962019-09-25T03:08:11.474ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,हालात-ए-हाज़िरा पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'डूब गई गली और सड़कें'</span></p>
<p>ये मिसरा बह्र में नहीं है,और 'गली' एक वचन में है,और 'सड़कें' बहुवचन में,ये बात भी कुछ खटकती है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>"डूब गईं गलियाँ और सड़कें"</p>
<p></p>
<p>'<span>नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी'</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी मुझे लय में नहीं लगा,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'नदियां बोलीं…</span></p>
<p>जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,हालात-ए-हाज़िरा पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'डूब गई गली और सड़कें'</span></p>
<p>ये मिसरा बह्र में नहीं है,और 'गली' एक वचन में है,और 'सड़कें' बहुवचन में,ये बात भी कुछ खटकती है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>"डूब गईं गलियाँ और सड़कें"</p>
<p></p>
<p>'<span>नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी'</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी मुझे लय में नहीं लगा,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'नदियां बोलीं सुनो समंदर ।<br/>पास न तेरे मीठा पानी'</span></p>
<p><span>इस शैर के ऊला में 'सुनो' शब्द बहुवचन और सानी में 'तू' एक वचन के कारण शुतरगुरबा दोष पैदा कर रहा है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'नदियाँ बोलीं सुन ऐ सागर'</span></p>
<p></p>
<p><span>'रखे आँख में खारा पानी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में मात्राएँ तो 16 हैं पर शब्द विन्यास ठीक नहीं होने से कुछ खटकता है जैसे 'रखे आँ'22 'ख में'12,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'आँख में रक्खे खारा पानी'</span></p>
<p><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p> उत्साहवर्धन हेतु दिल से शुक्…tag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:Comment:9925962019-09-23T15:55:13.097ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<ol>
<li>उत्साहवर्धन हेतु दिल से शुक्रिया मोहतरम आसिफ़ जैदी साहब ।</li>
</ol>
<ol>
<li>उत्साहवर्धन हेतु दिल से शुक्रिया मोहतरम आसिफ़ जैदी साहब ।</li>
</ol> सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आद…tag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:Comment:9927832019-09-23T15:53:46.357ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।</p>
<p>सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी ब…tag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:Comment:9925942019-09-23T14:47:27.535ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी।बेहतरीन गज़ल।</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी।बेहतरीन गज़ल।</p> बहुत बहुत बधाई आदरणीय बाग़ी ज…tag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:Comment:9929112019-09-23T08:13:59.075ZAsif zaidihttps://openbooks.ning.com/profile/Asifzaidi
<p>बहुत बहुत बधाई आदरणीय बाग़ी जी शानदार प्रस्तुति सादर।</p>
<p>बहुत बहुत बधाई आदरणीय बाग़ी जी शानदार प्रस्तुति सादर।</p>