Comments - हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी (४९) - Open Books Online2024-03-28T16:14:39Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A986328&xn_auth=noआदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,हौ…tag:openbooks.ning.com,2019-07-05:5170231:Comment:9871282019-07-05T11:08:12.442Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" class="fn url">गिरिराज भंडारी</a> जी ,हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया </p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" class="fn url">गिरिराज भंडारी</a> जी ,हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया </p> आदरणीय गिरधारी भाई , खूब सूरत…tag:openbooks.ning.com,2019-07-05:5170231:Comment:9871182019-07-05T06:12:22.807Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय गिरधारी भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाईयाँ</p>
<p>आदरणीय गिरधारी भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाईयाँ</p> आदरणीय Samar kabeer साहेब ,…tag:openbooks.ning.com,2019-06-25:5170231:Comment:9864282019-06-25T08:57:39.092Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a><span> साहेब ,आपकी इस्लाह बहुत ही पुरअसर है और मिसरे को वाजिब अर्थ देने के लिए आवश्यक भी | संशोधन कर रहा हूँ | सादर आभार एवं नमन | इसी तरह कृपा बनायें रखें | </span></p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a><span> साहेब ,आपकी इस्लाह बहुत ही पुरअसर है और मिसरे को वाजिब अर्थ देने के लिए आवश्यक भी | संशोधन कर रहा हूँ | सादर आभार एवं नमन | इसी तरह कृपा बनायें रखें | </span></p> जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरं…tag:openbooks.ning.com,2019-06-25:5170231:Comment:9862032019-06-25T06:20:11.642ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हिज्र है विसाल भी है वस्ल और है तड़प'</span></p>
<p><span>इस मिसरे का शिल्प बहुत कमज़ोर है,आप जो कहना चाहते हैं,बयाँ नहीं हो रहा,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'इश्क़ बा-क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'बा क़रार'शब्द मुनासिब नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार…</span></p>
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हिज्र है विसाल भी है वस्ल और है तड़प'</span></p>
<p><span>इस मिसरे का शिल्प बहुत कमज़ोर है,आप जो कहना चाहते हैं,बयाँ नहीं हो रहा,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'इश्क़ बा-क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'बा क़रार'शब्द मुनासिब नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी' </span></p>
<p></p>
<p><span>'जो शरर बने कभी कभी हैं आबसार भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'हैं' को " है" कर लें,और 'आबसार' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "आबशार"</span></p>
<p></p>
<p><span>'इश्क़ रूह से करें फ़क़त उन्हें नसीब हो'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो बात साफ़ हो जाएगी:-</span></p>
<p><span>इश्क़ रूह से करें जो उनको ही नसीब हो'</span></p>
<p><span>'इश्क़ में लिखी नसीब में किसी के दार भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो बात साफ़ हो जाएगी:-</span></p>
<p><span>'इश्क़ के नसीब में लिखी गई है दार भी'</span></p>
<p><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p>