Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T05:22:15Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A979226&xn_auth=noआ0 कबीर सर सादर नमन
आपका स्व…tag:openbooks.ning.com,2019-03-26:5170231:Comment:9798172019-03-26T18:45:55.705ZNaveen Mani Tripathihttps://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
<p>आ0 कबीर सर सादर नमन </p>
<p>आपका स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी अपने इतनी मेहनत की यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है । निः शब्द हूँ ।</p>
<p>आ0 कबीर सर सादर नमन </p>
<p>आपका स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी अपने इतनी मेहनत की यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है । निः शब्द हूँ ।</p> जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी…tag:openbooks.ning.com,2019-03-26:5170231:Comment:9796082019-03-26T08:56:13.321ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है'</span></p>
<p><span>बहुत कम लोग जानते हैं कि "ग़लतियाँ" का वज़्न 1112 होता है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'होगी ही उससे भूल वो इंसान ही तो है'</span></p>
<p></p>
<p><span>'खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'जम्हूरियत' का वज़्न 2212 है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें :-</span></p>
<p><span>'जम्हूरियत ने…</span></p>
<p>जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है'</span></p>
<p><span>बहुत कम लोग जानते हैं कि "ग़लतियाँ" का वज़्न 1112 होता है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'होगी ही उससे भूल वो इंसान ही तो है'</span></p>
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<p><span>'खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'जम्हूरियत' का वज़्न 2212 है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें :-</span></p>
<p><span>'जम्हूरियत ने खुल के ये अख़बार से कहा'</span></p>
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<p><span>'देखा नहीं किसी ने कभी मौत की डगर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'मौत' और 'डगर' दोनों स्त्रीलिंग हैं,इसलिए 'देखा' को "देखी" कर लें ।</span></p>
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<p><span>'इक दिन उसे है जाना इसी घर को छोड़ कर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'इस घर को छोड़कर इसे जाना है एक दिन'</span></p>
<p></p>
<p><span>'जिंदा खुदा के रहमो करम पर मैं आज तक'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'ज़िंदा मैं उसके रह्म-ओ-करम पर हूँ आज तक'</span></p>
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<p><span>'निकलो न बेनकाब जमाने की है नजर ।<br/>हर शख्स तेरे हुस्न से अनजान ही तो है '</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतरगुरबा है,इसे हटा देना ही उचित है ।</span></p>
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<p><span>'तुमको भी दौरे हिज्र का अनुमान ही तो है '</span></p>
<p><span>ये मिसरा लय में नहीं है ।</span></p>
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<p><span>'तुझको अभी नहीं है कोई तज्रिबा ए इश्क़'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'तुझको नहीं है इश्क़ का कुछ तज्रिबा अभी'</span></p>