Comments - क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए---ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T02:21:51Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A977622&xn_auth=noआदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम
सुझ…tag:openbooks.ning.com,2019-03-07:5170231:Comment:9777362019-03-07T15:45:48.899ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम</p>
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<p>सुझाव पर काम होगा</p>
<p>आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम</p>
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<p>सुझाव पर काम होगा</p> अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2019-03-07:5170231:Comment:9774952019-03-07T09:08:35.668ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>ऐसी बह्र पर प्रयास करने से,बह्र निभाने के चक्कर में गेयता से हाथ धोना पड़ता है,इसलिए बहतर होगा कि मारूफ़ बहूर पर अभ्यास किया जाए ।</p>
<p></p>
<p>'<span>सुकून मुल्क़ का जो खुद निगल गए'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'मुल्क' की जगह "देश" कर लें ।</span></p>
<p>अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>ऐसी बह्र पर प्रयास करने से,बह्र निभाने के चक्कर में गेयता से हाथ धोना पड़ता है,इसलिए बहतर होगा कि मारूफ़ बहूर पर अभ्यास किया जाए ।</p>
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<p>'<span>सुकून मुल्क़ का जो खुद निगल गए'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'मुल्क' की जगह "देश" कर लें ।</span></p>