Comments - पुरखे हमारे एक हैं मजहब से तोल मत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ( गजल ) - Open Books Online2024-03-28T09:11:15Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A972695&xn_auth=noआ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवा…tag:openbooks.ning.com,2019-02-08:5170231:Comment:9732182019-02-08T09:17:13.837Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवादन । गजल में पिरोये विचारों के अनुमोदन करने का आभार ।</p>
<p>आ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवादन । गजल में पिरोये विचारों के अनुमोदन करने का आभार ।</p> आ. भाई समर जी, सादर आभार ।tag:openbooks.ning.com,2019-02-08:5170231:Comment:9730532019-02-08T09:12:43.993Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार ।</p> लाजवाब सोच को शब्दों में बाँध…tag:openbooks.ning.com,2019-02-08:5170231:Comment:9732132019-02-08T07:53:59.631Zदिगंबर नासवाhttps://openbooks.ning.com/profile/DigamberNaswa
<p>लाजवाब सोच को शब्दों में बाँधने का प्रयास है आपकी गज़ल लक्षमण जी ... </p>
<p>मौलिक सोच ... शिल्प पे आदरणीय समर कबीर जी की बातें सभी मिल के सीख रहे हैं ... </p>
<p>लाजवाब सोच को शब्दों में बाँधने का प्रयास है आपकी गज़ल लक्षमण जी ... </p>
<p>मौलिक सोच ... शिल्प पे आदरणीय समर कबीर जी की बातें सभी मिल के सीख रहे हैं ... </p> जी,अब ठीक है ।tag:openbooks.ning.com,2019-02-07:5170231:Comment:9730372019-02-07T09:14:19.826ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जी,अब ठीक है ।</p>
<p>जी,अब ठीक है ।</p> आ. भाई सुरेंद्र जी, प्रशंसा क…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9729612019-02-06T17:31:28.450Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुरेंद्र जी, प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p>आ. भाई सुरेंद्र जी, प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p> आ. भाई आसिफ जैदी जी, उत्साहवर…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9729602019-02-06T17:29:15.522Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आसिफ जैदी जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई आसिफ जैदी जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9730262019-02-06T17:27:20.944Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार । <br></br>'आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर'<br></br>भी व्याकरणिक रूप से शुद्ध ही है । क्योंकि इसका भाव 'गैंडे की खाल में' से भिन्न है । यहाँ वे खाल ओढ़कर नहीं आये हैं बल्कि खाल उसकी तरह मजबूत करके आये हैं ।<br></br>'तहजीब जैसी हो रही उस का मलाल कर'<br></br>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर व शिल्प दोष दूर कर दिया है।<br></br>'भाई से भाई लड़ रहा मजहब की ढाल कर'<br></br>में क्या अब -व्याकरण दोष दूर हो गया है ? <br></br>'प्यादा है उसके जैसे तू टेढ़ी न चाल कर'<br></br>क्या इस…</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार । <br/>'आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर'<br/>भी व्याकरणिक रूप से शुद्ध ही है । क्योंकि इसका भाव 'गैंडे की खाल में' से भिन्न है । यहाँ वे खाल ओढ़कर नहीं आये हैं बल्कि खाल उसकी तरह मजबूत करके आये हैं ।<br/>'तहजीब जैसी हो रही उस का मलाल कर'<br/>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर व शिल्प दोष दूर कर दिया है।<br/>'भाई से भाई लड़ रहा मजहब की ढाल कर'<br/>में क्या अब -व्याकरण दोष दूर हो गया है ? <br/>'प्यादा है उसके जैसे तू टेढ़ी न चाल कर'<br/>क्या इस मिसरे में शिल्प अब ठीक है। मार्गदर्शन कीजिए।</p> आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2019-02-05:5170231:Comment:9728852019-02-05T12:08:52.536Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढिया प्रयास हुआ है,बधाई लीजिये। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर</p>
<p>आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढिया प्रयास हुआ है,बधाई लीजिये। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर…tag:openbooks.ning.com,2019-02-05:5170231:Comment:9727952019-02-05T11:36:41.816ZAsif zaidihttps://openbooks.ning.com/profile/Asifzaidi
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी बहुत ख़ूबसूरत कोशिश की बधाई </p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी बहुत ख़ूबसूरत कोशिश की बधाई </p> जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2019-02-05:5170231:Comment:9727022019-02-05T11:03:28.553ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p style="text-align: left;">जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">'<span>आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>शुद्ध व्याकरण है 'गैंडे की खाल में'।</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><span>'वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के<br></br>जीता न कोई देश का यारो खयाल कर'…</span></p>
<p style="text-align: left;">जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">'<span>आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>शुद्ध व्याकरण है 'गैंडे की खाल में'।</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><span>'वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के<br/>जीता न कोई देश का यारो खयाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,शिल्प दोष भी है ।</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><span>'तहजीब जैसी कर रहे उस पर मलाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है,शिल्प दोष भी है ।</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><span>'प्यादा है उसके जैसे अब टेढ़ी न चाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>इस मिसरे में भी शिल्प कमज़ोर है ।</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><span>'भाई से भाई लड़ रहा मजहब को ढाल कर'</span></p>
<p style="text-align: left;"><span>'मज़हब को ढाल कर'--व्याकरण दोष ।</span></p>