Comments - ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं) - Open Books Online2024-03-28T23:58:54Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A972471&xn_auth=noआदरणीय दण्डपाणी जी,
हौसला अफज़…tag:openbooks.ning.com,2023-09-19:5170231:Comment:11093662023-09-19T11:07:49.364ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय दण्डपाणी जी,</p>
<p>हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.</p>
<p>सादर.</p>
<p>आदरणीय दण्डपाणी जी,</p>
<p>हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.</p>
<p>सादर.</p> बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आदरण…tag:openbooks.ning.com,2023-09-19:5170231:Comment:11094792023-09-19T11:07:10.832ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आदरणीय दयाराम जी.</p>
<p>सादर.</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आदरणीय दयाराम जी.</p>
<p>सादर.</p> आदरणीय अजय तिवारी जी,
हौसला अ…tag:openbooks.ning.com,2023-09-19:5170231:Comment:11095102023-09-19T11:04:51.967ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय अजय तिवारी जी,</p>
<p>हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया. आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हुआ.</p>
<p>सादर.</p>
<p>आदरणीय अजय तिवारी जी,</p>
<p>हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया. आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हुआ.</p>
<p>सादर.</p> आदणीय बलराम धाकड़ जी, सुंदर ग…tag:openbooks.ning.com,2019-07-28:5170231:Comment:9890052019-07-28T12:03:55.364ZDayaram Methanihttps://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p>आदणीय बलराम धाकड़ जी, सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें। </p>
<p>आदणीय बलराम धाकड़ जी, सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें। </p> आदरणीय बलराम जी, आपके शेरों म…tag:openbooks.ning.com,2019-07-20:5170231:Comment:9878662019-07-20T05:32:12.310ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय बलराम जी, आपके शेरों में हमेशा एक अतिरिक्त ऊर्जस्विता होती है, वो इन शेरों में भी नुमायाँ है. </p>
<p></p>
<p>ख़ास तौर से ये शेर बहुत अच्छा लगा :</p>
<p></p>
<div dir="auto">'बहार आने को है, बारूद की ख़ुश्बू फ़ज़ा में है,</div>
<div dir="auto">यही बाकी है शाख़ों पे भी अब अँगार आने हैं'</div>
<div dir="auto"></div>
<div dir="auto">हार्दिक बधाई. </div>
<p>आदरणीय बलराम जी, आपके शेरों में हमेशा एक अतिरिक्त ऊर्जस्विता होती है, वो इन शेरों में भी नुमायाँ है. </p>
<p></p>
<p>ख़ास तौर से ये शेर बहुत अच्छा लगा :</p>
<p></p>
<div dir="auto">'बहार आने को है, बारूद की ख़ुश्बू फ़ज़ा में है,</div>
<div dir="auto">यही बाकी है शाख़ों पे भी अब अँगार आने हैं'</div>
<div dir="auto"></div>
<div dir="auto">हार्दिक बधाई. </div> लाजवाब ग़ज़ल | आदरणीय समर सर की…tag:openbooks.ning.com,2019-05-27:5170231:Comment:9847422019-05-27T10:16:36.773Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>लाजवाब ग़ज़ल | आदरणीय समर सर की इस्लाह से तो जबरदस्त निखार आ गया है | </p>
<p>लाजवाब ग़ज़ल | आदरणीय समर सर की इस्लाह से तो जबरदस्त निखार आ गया है | </p> आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल में शिरकत…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9729002019-02-06T16:59:45.149ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>सादर।</p> आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9728992019-02-06T16:58:40.475ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।</p>
<p>सादर।</p> आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2019-02-06:5170231:Comment:9730232019-02-06T16:58:10.624ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन। ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>सर, आपकी इस्लाह के मुताबिक बदलाव कर दिए हैं। यक़ीनन आपके सुझावों के बाद इसमें एक नई ताज़गी आ गई है।</p>
<p>"अभी तलवार आई है, अभी सरशार आने हैं" इस मिसरे में ग़लती से "सरशार" का अर्थ "तीर" लिया गया था और जल्दबाजी में इसे पटल पर पोस्ट भी कर दिया। अब इस शेर को ग़ज़ल से हटा दिया है।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन। ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>सर, आपकी इस्लाह के मुताबिक बदलाव कर दिए हैं। यक़ीनन आपके सुझावों के बाद इसमें एक नई ताज़गी आ गई है।</p>
<p>"अभी तलवार आई है, अभी सरशार आने हैं" इस मिसरे में ग़लती से "सरशार" का अर्थ "तीर" लिया गया था और जल्दबाजी में इसे पटल पर पोस्ट भी कर दिया। अब इस शेर को ग़ज़ल से हटा दिया है।</p>
<p>सादर।</p> आदरणीय बलराम जी एक अच्छी ग़ज…tag:openbooks.ning.com,2019-02-02:5170231:Comment:9727282019-02-02T10:09:19.075ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p> आदरणीय बलराम जी एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास हुआ है। शिल्पगत दोष पर आदरणीय बाऊजी जी ने सारी बात कही है। जय हो</p>
<p> आदरणीय बलराम जी एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास हुआ है। शिल्पगत दोष पर आदरणीय बाऊजी जी ने सारी बात कही है। जय हो</p>