Comments - गज़ल - दिगंबर नासवा - Open Books Online2024-03-29T14:11:10Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A970383&xn_auth=noआदरणीय दिगंबर जी, बहुत अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2019-07-20:5170231:Comment:9878642019-07-20T05:09:37.402ZAjay Tiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय दिगंबर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.</p>
<p>आदरणीय दिगंबर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.</p> आदरणीय दिगम्बर जी, बहुत ख़ूबसू…tag:openbooks.ning.com,2019-02-11:5170231:Comment:9747072019-02-11T17:36:38.299ZBalram Dhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय दिगम्बर जी, बहुत ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं। शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय दिगम्बर जी, बहुत ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं। शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।</p>
<p>सादर।</p> मेरे कहे को मान देने के लिए ध…tag:openbooks.ning.com,2019-01-27:5170231:Comment:9720172019-01-27T08:51:56.169ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद, आप चाहें तो यहाँ भी एडिट कर सकते हैं ।</p>
<p>मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद, आप चाहें तो यहाँ भी एडिट कर सकते हैं ।</p> महेंद्र जी आपका आभार है ... म…tag:openbooks.ning.com,2019-01-27:5170231:Comment:9719172019-01-27T06:55:12.996Zदिगंबर नासवाhttps://openbooks.ning.com/profile/DigamberNaswa
<p>महेंद्र जी आपका आभार है ... मैं भी अभी विद्यार्थी ही हूँ इस ग़ज़ल गंगा में ... </p>
<p>आपको शेर पसंद आया तो लिखना सार्थक हुआ ...</p>
<p>महेंद्र जी आपका आभार है ... मैं भी अभी विद्यार्थी ही हूँ इस ग़ज़ल गंगा में ... </p>
<p>आपको शेर पसंद आया तो लिखना सार्थक हुआ ...</p> आदरणीय समर कबीर साहब ... आपका…tag:openbooks.ning.com,2019-01-27:5170231:Comment:9720162019-01-27T06:53:56.353Zदिगंबर नासवाhttps://openbooks.ning.com/profile/DigamberNaswa
<p>आदरणीय समर कबीर साहब ... आपका बताया मिसरा बहुत ही सुन्दर है ... मूल ग़ज़ल में बदलाव करना ठीक रहेगा .. आपका आभार ... </p>
<p>कह दिया ज्यादा ... आपका कहना सही है कई बार सही शब्द से ज्यादा प्रचलित शब्द के पीछे गलतियाँ हो जाती हैं ... आपका आभार नए मिसरे के लिए ... </p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब ... आपका बताया मिसरा बहुत ही सुन्दर है ... मूल ग़ज़ल में बदलाव करना ठीक रहेगा .. आपका आभार ... </p>
<p>कह दिया ज्यादा ... आपका कहना सही है कई बार सही शब्द से ज्यादा प्रचलित शब्द के पीछे गलतियाँ हो जाती हैं ... आपका आभार नए मिसरे के लिए ... </p> कुछ दलों ने राजनीती की दुकानो…tag:openbooks.ning.com,2019-01-27:5170231:Comment:9718722019-01-27T05:54:45.972ZMahendra Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>कुछ दलों ने राजनीती की दुकानों के लिए</p>
<p>वोट की शतरंज पे फिर फौजियों को रख दिया ...सामयिक शेर!</p>
<p>इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय दिगंबर नासवा जी. यदि आप ग़ज़ल के अरकान भी लिखे देते हम जैसे नये सीखने वालों के लिए बेहतर रहता. सादर.</p>
<p>कुछ दलों ने राजनीती की दुकानों के लिए</p>
<p>वोट की शतरंज पे फिर फौजियों को रख दिया ...सामयिक शेर!</p>
<p>इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय दिगंबर नासवा जी. यदि आप ग़ज़ल के अरकान भी लिखे देते हम जैसे नये सीखने वालों के लिए बेहतर रहता. सादर.</p> 'शाम होते ही चोबारे पर दियों…tag:openbooks.ning.com,2019-01-27:5170231:Comment:9718712019-01-27T05:21:40.287ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p></p>
<p>'शाम होते ही चोबारे पर दियों को रख दिया'</p>
<p>मेरे नज़दीक 'चौबारे' को "चुबारे" करना उचित नहीं,इस मिसरे को चाहें तो यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>'शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया'</p>
<p></p>
<p>'कह दिया ज्यादा, रही चुप वो, मगर फिर लंच में'</p>
<p>इस मिसरे में सहीह शब्द "ज़ियादा" इसलिए मात्रा पतन मुमकिन नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>'कुछ ज़ियादा कह दिया,वो चुप रही पर लंच में'</p>
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<p>'शाम होते ही चोबारे पर दियों को रख दिया'</p>
<p>मेरे नज़दीक 'चौबारे' को "चुबारे" करना उचित नहीं,इस मिसरे को चाहें तो यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>'शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया'</p>
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<p>'कह दिया ज्यादा, रही चुप वो, मगर फिर लंच में'</p>
<p>इस मिसरे में सहीह शब्द "ज़ियादा" इसलिए मात्रा पतन मुमकिन नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>'कुछ ज़ियादा कह दिया,वो चुप रही पर लंच में'</p>
<p> </p> इस ग़ज़ल का कुछ बातों पर मैं अप…tag:openbooks.ning.com,2019-01-26:5170231:Comment:9717822019-01-26T17:34:01.748Zदिगंबर नासवाhttps://openbooks.ning.com/profile/DigamberNaswa
<p><span>इस ग़ज़ल का कुछ बातों पर मैं अपनी राय रखना चाहूंगा चौबारा का जिस जगह इस्तेमाल हुआ है वहां मुझे लग रहा है कि रुक्न के हिसाब से लफ्ज़ का इस्तेमाल नही हुआ है कृपया स्पष्ट कीजिए गा। इसी तरह ज्यादा शब्द 122 के वश में है इसका प्रयोग 22 के वश में हुआ है इसे भी देखियेगा।</span></p>
<p></p>
<p>आदरणीय रवि जी ... मैं अधिकतर ध्वनि को ही मूल रख कर लफ़्ज़ों का प्रयोग करता हूँ अतः इस बात पर उस्तादों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण होगी ... आदरणीय समर कबीर इस विषय पे कुछ बताएँगे तो मुझे भी जानकारी हो जायेगी…</p>
<p><span>इस ग़ज़ल का कुछ बातों पर मैं अपनी राय रखना चाहूंगा चौबारा का जिस जगह इस्तेमाल हुआ है वहां मुझे लग रहा है कि रुक्न के हिसाब से लफ्ज़ का इस्तेमाल नही हुआ है कृपया स्पष्ट कीजिए गा। इसी तरह ज्यादा शब्द 122 के वश में है इसका प्रयोग 22 के वश में हुआ है इसे भी देखियेगा।</span></p>
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<p>आदरणीय रवि जी ... मैं अधिकतर ध्वनि को ही मूल रख कर लफ़्ज़ों का प्रयोग करता हूँ अतः इस बात पर उस्तादों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण होगी ... आदरणीय समर कबीर इस विषय पे कुछ बताएँगे तो मुझे भी जानकारी हो जायेगी ...</p>
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<p>आपका त्वरित सुझाव बहुत अच्छा है ... आपकी पंक्तियाँ सहज लग रही हैं ... </p>
<p>आपको शेर अच्छे लगे ... ये मेरा सौभाग्य है ... आपका आभार बहुत बहुत ...</p> आदरणीय दिगंबर साहब बहुत अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2019-01-26:5170231:Comment:9715772019-01-26T16:22:59.401ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय दिगंबर साहब बहुत अच्छी गजल आपने कहीं कई नए बिम्ब आप लेकर आए बहुत-बहुत स्वागत है इस ग़ज़ल का कुछ बातों पर मैं अपनी राय रखना चाहूंगा चौबारा का जिस जगह इस्तेमाल हुआ है वहां मुझे लग रहा है कि रुक्न के हिसाब से लफ्ज़ का इस्तेमाल नही हुआ है कृपया स्पष्ट कीजिए गा। इसी तरह ज्यादा शब्द 122 के वश में है इसका प्रयोग 22 के वश में हुआ है इसे भी देखियेगा।</p>
<p></p>
<p>भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही </p>
<p>रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया ।बहुत अच्छा लगा ये शेर </p>
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<p>एक…</p>
<p>आदरणीय दिगंबर साहब बहुत अच्छी गजल आपने कहीं कई नए बिम्ब आप लेकर आए बहुत-बहुत स्वागत है इस ग़ज़ल का कुछ बातों पर मैं अपनी राय रखना चाहूंगा चौबारा का जिस जगह इस्तेमाल हुआ है वहां मुझे लग रहा है कि रुक्न के हिसाब से लफ्ज़ का इस्तेमाल नही हुआ है कृपया स्पष्ट कीजिए गा। इसी तरह ज्यादा शब्द 122 के वश में है इसका प्रयोग 22 के वश में हुआ है इसे भी देखियेगा।</p>
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<p>भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही </p>
<p>रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया ।बहुत अच्छा लगा ये शेर </p>
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<p>एक त्वरित सझाव भी है । किंतु लेखकीय स्वतंत्रता सर्वोपरि है </p>
<p>आ गई दंगों से उजड़ी जिंदगी फिर राह पर</p>
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<p>अच्छी ग़ज़ल के लिए एक बार उन्हें दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए</p>
<p> </p> बहुत शुक्रिया आदरणीय समीर कबी…tag:openbooks.ning.com,2019-01-25:5170231:Comment:9709612019-01-25T04:37:09.603Zदिगंबर नासवाhttps://openbooks.ning.com/profile/DigamberNaswa
<p>बहुत शुक्रिया आदरणीय समीर कबीर साहब ... गलती का सुधार कर लिया है ...</p>
<p>उम्मीद है आपका आशिर्वाद, आपका साथ मिलता रहेगा ... </p>
<p>बहुत शुक्रिया आदरणीय समीर कबीर साहब ... गलती का सुधार कर लिया है ...</p>
<p>उम्मीद है आपका आशिर्वाद, आपका साथ मिलता रहेगा ... </p>