Comments - ग़ज़ल नूर की -तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना - Open Books Online2024-03-29T00:18:39Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A929524&xn_auth=noशुक्रिया आ. भाई लक्ष्मण जी tag:openbooks.ning.com,2018-06-04:5170231:Comment:9327422018-06-04T13:50:50.827ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. भाई लक्ष्मण जी </p>
<p>शुक्रिया आ. भाई लक्ष्मण जी </p> आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हु…tag:openbooks.ning.com,2018-05-08:5170231:Comment:9296962018-05-08T14:18:26.460Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।</p> शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी आ…tag:openbooks.ning.com,2018-05-08:5170231:Comment:9295742018-05-08T08:42:27.210ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी <br/>आभार </p>
<p>शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी <br/>आभार </p> आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2018-05-08:5170231:Comment:9297182018-05-08T04:52:14.515Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये</p>
<p>आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये</p> शुक्रिया आ. रवि जी,आभार tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9294692018-05-07T15:20:49.876ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. रवि जी,<br/>आभार </p>
<p>शुक्रिया आ. रवि जी,<br/>आभार </p> आदरणीय नीलेश जी अच्छी ग़ज़ल क…tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9295512018-05-07T12:30:21.938ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय नीलेश जी अच्छी ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं समर साहब का और आपका दोनों का नजरिया अपनी अपनी जगह सही है</p>
<p>आदरणीय नीलेश जी अच्छी ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं समर साहब का और आपका दोनों का नजरिया अपनी अपनी जगह सही है</p> अच्छा तर्क है ।tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9292882018-05-07T06:57:12.150ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>अच्छा तर्क है ।</p>
<p>अच्छा तर्क है ।</p> धन्यवाद आ. समर सर,आपके मार्गद…tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9296322018-05-07T06:39:36.754ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. समर सर,<br/>आपके मार्गदर्शन से ग़ज़ल जैसे तैसे पूरी हो पाई ..<br/>अब परिस्थितियाँ बदल गयी हैं ... युद्ध मायावी लोग लड़ रहे हैं... पल में रात को दिन बता देते हैं... जाने कहाँ कहाँ के कंकाल खोद लाते हैं और कंकालों से भी भाषण करवा लेते हैं... इसलिये माया से लड़ने के लिए माया का मश्विरा दे दिया मैंने भी ... आज नहीं तो कल मैं भी बुजुर्गों की गिनती में आऊँगा तो ... -:)))) <br/>सादर </p>
<p>धन्यवाद आ. समर सर,<br/>आपके मार्गदर्शन से ग़ज़ल जैसे तैसे पूरी हो पाई ..<br/>अब परिस्थितियाँ बदल गयी हैं ... युद्ध मायावी लोग लड़ रहे हैं... पल में रात को दिन बता देते हैं... जाने कहाँ कहाँ के कंकाल खोद लाते हैं और कंकालों से भी भाषण करवा लेते हैं... इसलिये माया से लड़ने के लिए माया का मश्विरा दे दिया मैंने भी ... आज नहीं तो कल मैं भी बुजुर्गों की गिनती में आऊँगा तो ... -:)))) <br/>सादर </p> जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9294502018-05-07T06:31:35.421ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, बहुत मुख़्तसर क़वाफ़ी में अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p></p>
<p>'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये</p>
<p>हो निशाना कहीं औ कहीं देखना'</p>
<p>जंग जीतने का नया नुस्ख़ा बता रहे हैं आप,बुज़ुर्गों ने तो ये बताया था :-</p>
<p>'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये</p>
<p>हो निशाना जहाँ पर वहीं देखना'</p>
<p>जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, बहुत मुख़्तसर क़वाफ़ी में अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p></p>
<p>'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये</p>
<p>हो निशाना कहीं औ कहीं देखना'</p>
<p>जंग जीतने का नया नुस्ख़ा बता रहे हैं आप,बुज़ुर्गों ने तो ये बताया था :-</p>
<p>'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये</p>
<p>हो निशाना जहाँ पर वहीं देखना'</p> शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब…tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9296242018-05-07T05:52:18.026ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब <br/>.<br/>बस कल शाम को 'शाम वाला' स्प्राइट पीते पीते यह ग़ज़ल हो गयी है..<br/>सुबह देखता हूँ तो लगता है की अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है ... इस में भी और मुझ में भी ;))) <br/>आभार </p>
<p>शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब <br/>.<br/>बस कल शाम को 'शाम वाला' स्प्राइट पीते पीते यह ग़ज़ल हो गयी है..<br/>सुबह देखता हूँ तो लगता है की अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है ... इस में भी और मुझ में भी ;))) <br/>आभार </p>