Comments - ग़ज़ल - मुकम्मल भला कौन है इस जहां में - Open Books Online2024-03-29T13:42:25Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A908147&xn_auth=noआदर्णीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर…tag:openbooks.ning.com,2018-01-10:5170231:Comment:9087402018-01-10T13:12:57.846ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदर्णीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद।</p>
<p>आदर्णीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद।</p> आ. भाई रामअवध जी, हार्दिक बधा…tag:openbooks.ning.com,2018-01-10:5170231:Comment:9085672018-01-10T01:28:17.838Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई रामअवध जी, हार्दिक बधाई। </p>
<p>आ. भाई रामअवध जी, हार्दिक बधाई। </p> आदर्णीय बृजेश कुमार ब्रज जी स…tag:openbooks.ning.com,2018-01-09:5170231:Comment:9083912018-01-09T01:09:16.595ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदर्णीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर आभार</p>
<p>आदर्णीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर आभार</p> बहुत ही सुन्दर ख्याल है आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2018-01-08:5170231:Comment:9084402018-01-08T19:09:27.570Zबृजेश कुमार 'ब्रज'https://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत ही सुन्दर ख्याल है आदरणीय..सादर</p>
<p>बहुत ही सुन्दर ख्याल है आदरणीय..सादर</p> आदर्णीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी…tag:openbooks.ning.com,2018-01-08:5170231:Comment:9084332018-01-08T15:14:38.098ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदर्णीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ग़ज़ल आपको पसन्द आई इसके लिये सादर धन्यवाद</p>
<p>आदर्णीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ग़ज़ल आपको पसन्द आई इसके लिये सादर धन्यवाद</p> आद0 राभ अवध जी अच्छी ग़ज़ल कही…tag:openbooks.ning.com,2018-01-08:5170231:Comment:9085102018-01-08T07:59:56.130Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 राभ अवध जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने,बहुत बहुत बधाई।</p>
<p>आद0 राभ अवध जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने,बहुत बहुत बधाई।</p> आदर्णीय समर कबीर सर जी आपका ब…tag:openbooks.ning.com,2018-01-08:5170231:Comment:9082702018-01-08T00:28:57.890ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदर्णीय समर कबीर सर जी आपका बहुत बहुत आभार</p>
<p>आदर्णीय समर कबीर सर जी आपका बहुत बहुत आभार</p> आदर णीय मोहित मिश्रा जी बहुत…tag:openbooks.ning.com,2018-01-08:5170231:Comment:9081962018-01-08T00:24:21.222ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदर णीय मोहित मिश्रा जी बहुत बहुत शुक्रिया</p>
<p>आदर णीय मोहित मिश्रा जी बहुत बहुत शुक्रिया</p> जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प…tag:openbooks.ning.com,2018-01-06:5170231:Comment:9082532018-01-06T17:03:30.083ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,त्रुटियों के बारे में गुणीजन बता चुके,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,त्रुटियों के बारे में गुणीजन बता चुके,बधाई स्वीकार करें ।</p> जनाब राम अवध जी रदीफ़ की और प…tag:openbooks.ning.com,2018-01-06:5170231:Comment:9081012018-01-06T13:48:21.298ZAfroz 'sahr'https://openbooks.ning.com/profile/Afrozsahr
जनाब राम अवध जी रदीफ़ की और प्रतिक्रिया देने के बाद ध्यान गया।<br />
शेर को यूँ कहा जा सकता है।<br />
"हैं महलों से बढ़कर के ये ख़ूबसूरत"<br />
"नज़र में तुम्हारी फ़कत झुग्गियाँ हैं"
जनाब राम अवध जी रदीफ़ की और प्रतिक्रिया देने के बाद ध्यान गया।<br />
शेर को यूँ कहा जा सकता है।<br />
"हैं महलों से बढ़कर के ये ख़ूबसूरत"<br />
"नज़र में तुम्हारी फ़कत झुग्गियाँ हैं"