Comments - फ़रिश्ता (लघु कथा) - Open Books Online2024-03-29T01:31:45Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A894627&xn_auth=noलघुकथा सराहने के लिए हार्दिक…tag:openbooks.ning.com,2017-11-03:5170231:Comment:8946042017-11-03T06:01:29.926Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>लघुकथा सराहने के लिए हार्दिक आभार आदरनीया राजेश कुमारी जी | दरअसल ये घटना भी मेरे लघु भ्राता के साथ घटी ६५ वर्ष पूर्व की सच्ची घटना पर ही आधारित है | सादर नमन </p>
<p>लघुकथा सराहने के लिए हार्दिक आभार आदरनीया राजेश कुमारी जी | दरअसल ये घटना भी मेरे लघु भ्राता के साथ घटी ६५ वर्ष पूर्व की सच्ची घटना पर ही आधारित है | सादर नमन </p> हार्दिक आभार जनाब मो. आरिफ सा…tag:openbooks.ning.com,2017-11-03:5170231:Comment:8945012017-11-03T05:57:55.117Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>हार्दिक आभार जनाब मो. आरिफ साहब ! जब समारोह ३१ में शीर्षक "फ़रिश्ता" देखा तो पहले यही लघुकथा सृजित की थी जो मेरे लघुभ्राता के साथ आज से 65 वर्ष पूर्व घटित सच्ची घटना पर आधारित है | किन्तु बाद में सोचा "मारने वाले से बचाने वाला बड़ा" पर कहानिया आम हो चुकी है | यही सोच समारोह में त्वरित ही दूसरी लघुकथा"उपयोगी वेबसाईट" सृजित कर पोस्ट की |</p>
<p>सादर नमन </p>
<p>हार्दिक आभार जनाब मो. आरिफ साहब ! जब समारोह ३१ में शीर्षक "फ़रिश्ता" देखा तो पहले यही लघुकथा सृजित की थी जो मेरे लघुभ्राता के साथ आज से 65 वर्ष पूर्व घटित सच्ची घटना पर आधारित है | किन्तु बाद में सोचा "मारने वाले से बचाने वाला बड़ा" पर कहानिया आम हो चुकी है | यही सोच समारोह में त्वरित ही दूसरी लघुकथा"उपयोगी वेबसाईट" सृजित कर पोस्ट की |</p>
<p>सादर नमन </p> बहुत अच्छी लघु कथा लिखी आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2017-11-02:5170231:Comment:8944692017-11-02T05:50:47.472Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>बहुत अच्छी लघु कथा लिखी आदरणीय .एक बार जब मैं मुंबई में थी बिलकुल ऐसी ही घटना घटी थी आपकी लघुकथा को पढ़कर वो याद ताज़ा हो गई |बहुत बहुत बधाई आपको </p>
<p>बहुत अच्छी लघु कथा लिखी आदरणीय .एक बार जब मैं मुंबई में थी बिलकुल ऐसी ही घटना घटी थी आपकी लघुकथा को पढ़कर वो याद ताज़ा हो गई |बहुत बहुत बधाई आपको </p> आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी आदा…tag:openbooks.ning.com,2017-11-01:5170231:Comment:8946292017-11-01T14:56:27.922ZMohammed Arifhttps://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी आदाब, आपकी यह लघुकथा पढ़कर मुझे विश्वंभरनाथ शर्मा "कौशिक" जी की ताई कहानी याद आ गई । सच है बचाने वाला ही सबसे बड़ा होता है । सकारात्मक सोच की बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । थोड़ी सपाट बयानबाज़ी लग रही है ।
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी आदाब, आपकी यह लघुकथा पढ़कर मुझे विश्वंभरनाथ शर्मा "कौशिक" जी की ताई कहानी याद आ गई । सच है बचाने वाला ही सबसे बड़ा होता है । सकारात्मक सोच की बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । थोड़ी सपाट बयानबाज़ी लग रही है ।