Comments - ग़ज़ल - यूँ ही गाल बजाते रहिये - Open Books Online2024-03-29T07:37:32Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A890691&xn_auth=noआदरणीय सलीम रज़ा साहब आपका बहु…tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8917272017-10-24T07:59:28.886ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी ग़…tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8918132017-10-24T07:57:28.594ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद।
आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद। आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर…tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8918122017-10-24T07:55:52.767ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर धन्यवाद
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर धन्यवाद आ.
अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारक़…tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8915002017-10-24T07:23:38.509ZSALIM RAZA REWAhttps://openbooks.ning.com/profile/SALIMRAZA
आ.<br />
अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद.
आ.<br />
अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद. उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई…tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8917212017-10-24T07:07:06.200Zजयनित कुमार मेहताhttps://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको, आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी।
उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको, आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी। बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आद० रा…tag:openbooks.ning.com,2017-10-23:5170231:Comment:8913972017-10-23T14:16:01.857Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आद० राम अवध जी शेर दर शेर बधाई लीजिये \ आद० समर भाई जी का सुझाव स्वागतीय है </p>
<p>बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आद० राम अवध जी शेर दर शेर बधाई लीजिये \ आद० समर भाई जी का सुझाव स्वागतीय है </p> 'दाँव पेंच दिखलाते रहिये'
इस…tag:openbooks.ning.com,2017-10-23:5170231:Comment:8913962017-10-23T13:53:45.067ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
'दाँव पेंच दिखलाते रहिये'<br />
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-<br />
'दाँव नये दिखलाते रहिये'<br />
आपकी पूरी ग़ज़ल ही फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन पर है ।<br />
ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,ये इस मंच का नियम है ।
'दाँव पेंच दिखलाते रहिये'<br />
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-<br />
'दाँव नये दिखलाते रहिये'<br />
आपकी पूरी ग़ज़ल ही फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन पर है ।<br />
ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,ये इस मंच का नियम है । आदरणीय कबीर साहब जी आपके इस्ल…tag:openbooks.ning.com,2017-10-23:5170231:Comment:8913922017-10-23T13:11:23.894ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीय कबीर साहब जी आपके इस्लाह के अनुसार मैं ग़ज़ल मेंसुधार कर लूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।<br />
"दाँव पेंच दिखलाते रहिये" क्या यह मिसरा फैलुन फैलुन वाली बह्र में है। यदि नहीं तो क्या सुधार करना आवश्यक है। क्योंकि यहाँ फायलात हो जाता है तख्ती करने पर।
आदरणीय कबीर साहब जी आपके इस्लाह के अनुसार मैं ग़ज़ल मेंसुधार कर लूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।<br />
"दाँव पेंच दिखलाते रहिये" क्या यह मिसरा फैलुन फैलुन वाली बह्र में है। यदि नहीं तो क्या सुधार करना आवश्यक है। क्योंकि यहाँ फायलात हो जाता है तख्ती करने पर। आदरणीय कुशक्षत्रप साहब ग़ज़ल की…tag:openbooks.ning.com,2017-10-23:5170231:Comment:8916142017-10-23T13:05:33.070ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीय कुशक्षत्रप साहब ग़ज़ल की सराहना के लिये धन्यवाद . मैं लगभग दो साल बाद ओपेन बुक्स आन लाइन से पुन:जजुड़ा इसलिये बह्र लिखने का ध्यान नहीं रहा। भविष्य में अवश्य लिखूँगा।।
आदरणीय कुशक्षत्रप साहब ग़ज़ल की सराहना के लिये धन्यवाद . मैं लगभग दो साल बाद ओपेन बुक्स आन लाइन से पुन:जजुड़ा इसलिये बह्र लिखने का ध्यान नहीं रहा। भविष्य में अवश्य लिखूँगा।। जनाब राम अवध जी आदाब,अच्छी ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2017-10-23:5170231:Comment:8916102017-10-23T12:25:13.956ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब राम अवध जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
'ये एहसास कराते रहिये'<br />
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-<br />
'ये एहसास दिलाते रहिये'
जनाब राम अवध जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
'ये एहसास कराते रहिये'<br />
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-<br />
'ये एहसास दिलाते रहिये'