Comments - अम्बर के विस्तार सरीखे मेरे पापा // डॉ० प्राची - Open Books Online2024-03-29T05:02:08Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A888082&xn_auth=noजी सौरभ जी बिल्कुलtag:openbooks.ning.com,2017-10-18:5170231:Comment:8903542017-10-18T19:44:08.871ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
जी सौरभ जी बिल्कुल
जी सौरभ जी बिल्कुल बहुत ही उत्तम गीत हुआ आदरणीया…tag:openbooks.ning.com,2017-10-15:5170231:Comment:8898272017-10-15T15:56:08.010Zबृजेश कुमार 'ब्रज'https://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
बहुत ही उत्तम गीत हुआ आदरणीया..सादर
बहुत ही उत्तम गीत हुआ आदरणीया..सादर आपकी दोनों कविताएँ पढ़ गया, आद…tag:openbooks.ning.com,2017-10-15:5170231:Comment:8896532017-10-15T13:58:22.324ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपकी दोनों कविताएँ पढ़ गया, आदरणीया प्राची जी. भाव एक होते हुए भी दोनों कविताएँ प्रच्छन्न हैं. </p>
<p>इन भावमय प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक बधाइयाँ .. बहुत खूब ! </p>
<p></p>
<p>’करी’ का प्रयोग आप न किया करें. क्योंकि आप हिन्दी को एक भाषा के तौर पर अच्छे से जानती हैं. साथ ही, ’अनेकों’ का प्रयोग तो आप एकदम-से न किया करें, क्योंकि आप हिन्दी को एक भाषा के तौर बहुत अच्छे से जानती हैं. </p>
<p>सादर </p>
<p>आपकी दोनों कविताएँ पढ़ गया, आदरणीया प्राची जी. भाव एक होते हुए भी दोनों कविताएँ प्रच्छन्न हैं. </p>
<p>इन भावमय प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक बधाइयाँ .. बहुत खूब ! </p>
<p></p>
<p>’करी’ का प्रयोग आप न किया करें. क्योंकि आप हिन्दी को एक भाषा के तौर पर अच्छे से जानती हैं. साथ ही, ’अनेकों’ का प्रयोग तो आप एकदम-से न किया करें, क्योंकि आप हिन्दी को एक भाषा के तौर बहुत अच्छे से जानती हैं. </p>
<p>सादर </p> इस गीत को कुछ इस तरह परिवर्ति…tag:openbooks.ning.com,2017-10-12:5170231:Comment:8885532017-10-12T17:49:15.521ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
इस गीत को कुछ इस तरह परिवर्तित किया है<br />
<br />
शुचित यज्ञ सी<br />
मन प्राणों में घोल सुगन्धि,<br />
आँगन में त्यौहार सरीखे मेरे पापा...<br />
<br />
थाम अँगुलियाँ जिनकी<br />
हर उलझी पगडण्डी लगी सरल सी,<br />
ज़मी किरचियाँ व्यवहारों की<br />
पिघल हृदय से बहीं तरल सी,<br />
<br />
सबकी ख़ातिर बोए पग-पग<br />
गुलमोहर और छाँटे कीकर,<br />
सौंपी सबको ख़ुशियों की प्याली<br />
ख़ुद पी हर व्यथा गरल सी,<br />
<br />
फिर भी आँखों में बाँधे<br />
हर वक़्त सवेरा,<br />
अम्बर के विस्तार सरीखे मेरे पापा....<br />
<br />
गुड्डे-गुड़ियाँ, टिक-टिक घोड़े<br />
और अनेकों परी कथाऐं,<br />
सब में कितनी चतुराई से<br />
पापा भरते थे…
इस गीत को कुछ इस तरह परिवर्तित किया है<br />
<br />
शुचित यज्ञ सी<br />
मन प्राणों में घोल सुगन्धि,<br />
आँगन में त्यौहार सरीखे मेरे पापा...<br />
<br />
थाम अँगुलियाँ जिनकी<br />
हर उलझी पगडण्डी लगी सरल सी,<br />
ज़मी किरचियाँ व्यवहारों की<br />
पिघल हृदय से बहीं तरल सी,<br />
<br />
सबकी ख़ातिर बोए पग-पग<br />
गुलमोहर और छाँटे कीकर,<br />
सौंपी सबको ख़ुशियों की प्याली<br />
ख़ुद पी हर व्यथा गरल सी,<br />
<br />
फिर भी आँखों में बाँधे<br />
हर वक़्त सवेरा,<br />
अम्बर के विस्तार सरीखे मेरे पापा....<br />
<br />
गुड्डे-गुड़ियाँ, टिक-टिक घोड़े<br />
और अनेकों परी कथाऐं,<br />
सब में कितनी चतुराई से<br />
पापा भरते थे शिक्षाऐं,<br />
<br />
मेरे बिन बोले ही<br />
मेरे अंतर्द्वंद्व पढ़ें जस के तस,<br />
"ख़ुद को साधो सबसे पहले"<br />
बात यही अक्सर समझाऐं,<br />
<br />
मुझको दिए झरोखे<br />
और खुले दरवाज़े ,<br />
पर अभेद्य दीवार सरीखे मेरे पापा....<br />
<br />
हर ग़लती हर नादानी की<br />
बिन माँगे ही माफ़ी दे कर,<br />
खोमोशी से हर चिंतन को<br />
ले चलते हैं उचित डगर पर,<br />
<br />
रीते हाथों में ना जाने<br />
सपने कब गपचुप बोते हैं,<br />
फिर सच्चाई से जीवन का<br />
समझाते हैं अक्षर-अक्षर,<br />
<br />
सर पर हाथ फेर<br />
कर देते पावन अंतस,<br />
ऐसी निर्मल धार सरीखे मेरे पापा.... मोहतरमा प्राची साहिबा आदाब बह…tag:openbooks.ning.com,2017-10-11:5170231:Comment:8882592017-10-11T10:52:40.520ZAfroz 'sahr'https://openbooks.ning.com/profile/Afrozsahr
मोहतरमा प्राची साहिबा आदाब बहुत ही भावनात्मक गीत लिखा आपने मन को प्रफुल्लित कर गया बहुत बधाई आपको।,,,,,,
मोहतरमा प्राची साहिबा आदाब बहुत ही भावनात्मक गीत लिखा आपने मन को प्रफुल्लित कर गया बहुत बधाई आपको।,,,,,, बहुत सुंदर गीत आदरणीया | हार्…tag:openbooks.ning.com,2017-10-11:5170231:Comment:8882532017-10-11T09:23:54.112ZKALPANA BHATT ('रौनक़')https://openbooks.ning.com/profile/KALPANABHATT832
<p>बहुत सुंदर गीत आदरणीया | हार्दिक बधाई |</p>
<p>बहुत सुंदर गीत आदरणीया | हार्दिक बधाई |</p> मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा…tag:openbooks.ning.com,2017-10-11:5170231:Comment:8880962017-10-11T06:27:16.556ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,पापा को समर्पित बहुत सुंदर गीत लिखा है,प्रवाह,शिल्प हर एतिबार से सशक्त इस प्रस्तुति हेतु दिल से बधाई स्वीकार करें ।<br />
'मगर झुंझलाहट का भाव<br />
कभी ना आया'<br />
ये पंक्ति लय में नहीं है,इसे इस तरह करना उचित होगा :-<br />
'लेकिन झुंझलाहट का भाव<br />
कभी न आया'
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,पापा को समर्पित बहुत सुंदर गीत लिखा है,प्रवाह,शिल्प हर एतिबार से सशक्त इस प्रस्तुति हेतु दिल से बधाई स्वीकार करें ।<br />
'मगर झुंझलाहट का भाव<br />
कभी ना आया'<br />
ये पंक्ति लय में नहीं है,इसे इस तरह करना उचित होगा :-<br />
'लेकिन झुंझलाहट का भाव<br />
कभी न आया'