Comments - ग़ज़ल- कब किसी से यहाँ मुहब्बत की - Open Books Online2024-03-28T11:11:35Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A868741&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष…tag:openbooks.ning.com,2017-07-28:5170231:Comment:8690492017-07-28T07:45:39.423Zबसंत कुमार शर्माhttps://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष्म दृष्टि और सदाशयता को सादर नमन </p>
<p>आदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष्म दृष्टि और सदाशयता को सादर नमन </p> छटे शैर के ऊला मिसरे में 'विख…tag:openbooks.ning.com,2017-07-28:5170231:Comment:8690462017-07-28T05:32:45.540ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
छटे शैर के ऊला मिसरे में 'विखरता'को "बिखरता"कर लें ,बाक़ी उम्दा है ।
छटे शैर के ऊला मिसरे में 'विखरता'को "बिखरता"कर लें ,बाक़ी उम्दा है । आदरणीय Samar kabeer जी आपका…tag:openbooks.ning.com,2017-07-28:5170231:Comment:8691372017-07-28T05:20:04.644Zबसंत कुमार शर्माhttps://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> जी आपका दिल से शुक्रिया , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर </p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> जी आपका दिल से शुक्रिया , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर </p> आदरणीय रवि शुक्ल जी अब देखें…tag:openbooks.ning.com,2017-07-28:5170231:Comment:8691362017-07-28T05:19:18.645Zबसंत कुमार शर्माhttps://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय रवि शुक्ल जी अब देखें ठीक हुआ क्या </p>
<p dir="ltr"><span>मापनी २१२२ १२ १२ २२/२११</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>कब किसी से यहाँ मुहब्बत की. </span></p>
<p dir="ltr"><span>आपने तो सदा सियासत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>जुल्म सहती रही धरा कितने,</span></p>
<p dir="ltr"><span>आसमां ने कहाँ इनायत की</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>मूँछ पर ताव दे सभी बैठे,</span></p>
<p dir="ltr"><span>कौन बातें करेगा उल्फत…</span></p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ल जी अब देखें ठीक हुआ क्या </p>
<p dir="ltr"><span>मापनी २१२२ १२ १२ २२/२११</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>कब किसी से यहाँ मुहब्बत की. </span></p>
<p dir="ltr"><span>आपने तो सदा सियासत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>जुल्म सहती रही धरा कितने,</span></p>
<p dir="ltr"><span>आसमां ने कहाँ इनायत की</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>मूँछ पर ताव दे सभी बैठे,</span></p>
<p dir="ltr"><span>कौन बातें करेगा उल्फत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,</span></p>
<p dir="ltr"><span>क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>आदमी आदमी से जलता है,</span></p>
<p dir="ltr"><span>कुछ कमी है यहाँ जहानत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>यूँ विखरता नहीं कोई रिश्ता,</span></p>
<p dir="ltr"><span>है जरूरत जरा हिफाजत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,</span></p>
<p dir="ltr"><span>फिर तमन्ना हमें न जन्नत की.</span></p>
<p><span> </span></p> आदरणीय बसंत सर आपने हमारे कहे…tag:openbooks.ning.com,2017-07-26:5170231:Comment:8688512017-07-26T07:53:36.373ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय बसंत सर आपने हमारे कहे को मान दिया उसके लिये आभार आदरणीय समर साहब पहले ही आपकी गजल पर आ चुके है शहादत किस अर्थ में आपने लिया है ये सार्थक प्रश्न है । अगर आप माने तो इस शेर में तकाबुले रदीफ भी हो गया है । आपके भाव के थोड़ा सा आस पास इनायत शब्दआ सकता है ( आसमां ने कहाँ इनायत की ) वैसे इस पर ढेरा सारे काफिये आपको मिल जाएंगे । सादर</p>
<p>आदरणीय बसंत सर आपने हमारे कहे को मान दिया उसके लिये आभार आदरणीय समर साहब पहले ही आपकी गजल पर आ चुके है शहादत किस अर्थ में आपने लिया है ये सार्थक प्रश्न है । अगर आप माने तो इस शेर में तकाबुले रदीफ भी हो गया है । आपके भाव के थोड़ा सा आस पास इनायत शब्दआ सकता है ( आसमां ने कहाँ इनायत की ) वैसे इस पर ढेरा सारे काफिये आपको मिल जाएंगे । सादर</p> ग़ज़ल अछि हो गई है :-
'आसमाँ ने…tag:openbooks.ning.com,2017-07-26:5170231:Comment:8688482017-07-26T05:46:29.743ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
ग़ज़ल अछि हो गई है :-<br />
'आसमाँ ने कहाँ शहादत की'<br />
'शहादत'शब्द के दो अर्थ हैं,एक तो धर्म या वतन पर जान क़ुर्बान करना,दूसरा किसी बात की गवाही देना, आपका मिसरा इन अर्थों में नहीं है,इसे बदलने का प्रयास करें ।
ग़ज़ल अछि हो गई है :-<br />
'आसमाँ ने कहाँ शहादत की'<br />
'शहादत'शब्द के दो अर्थ हैं,एक तो धर्म या वतन पर जान क़ुर्बान करना,दूसरा किसी बात की गवाही देना, आपका मिसरा इन अर्थों में नहीं है,इसे बदलने का प्रयास करें । आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2017-07-26:5170231:Comment:8689522017-07-26T03:34:11.125Zबसंत कुमार शर्माhttps://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आदरणीय रवि शुक्ला जी, आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय मोहित मिश्रा जी आप सबके स्नेह का आभारी हूँ , आपके सुझावों के उपरान्त और थोड़ी मेहनत की है पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत है </p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span>कब किसी से यहाँ मुहब्बत की. </span></p>
<p dir="ltr"><span>जब भी’ की आपने सियासत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>जुल्म सहती रही सदा धरती,</span></p>
<p dir="ltr"><span>आसमां ने कहाँ शहादत की</span></p>
<p dir="ltr"> …</p>
<p>आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आदरणीय रवि शुक्ला जी, आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय मोहित मिश्रा जी आप सबके स्नेह का आभारी हूँ , आपके सुझावों के उपरान्त और थोड़ी मेहनत की है पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत है </p>
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<p dir="ltr"><span>कब किसी से यहाँ मुहब्बत की. </span></p>
<p dir="ltr"><span>जब भी’ की आपने सियासत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>जुल्म सहती रही सदा धरती,</span></p>
<p dir="ltr"><span>आसमां ने कहाँ शहादत की</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>ताव दे मूँछ पर सभी बैठे,</span></p>
<p dir="ltr"><span>कौन बातें करेगा उल्फत की.</span></p>
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<p dir="ltr"><span>फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,</span></p>
<p dir="ltr"><span>क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>आदमी आदमी से जलता है,</span></p>
<p dir="ltr"><span>कुछ कमी है यहाँ जहानत की</span></p>
<p dir="ltr"> </p>
<p dir="ltr"><span>यूँ विखरता नहीं कोई रिश्ता,</span></p>
<p dir="ltr"><span>है जरूरत जरा हिफाजत की,</span></p>
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<p dir="ltr"><span>माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,</span></p>
<p dir="ltr"><span>फिर तमन्ना हमें न जन्नत की.</span></p>
<p><span> </span></p> जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2017-07-25:5170231:Comment:8686692017-07-25T09:42:35.270ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
जनाब रवि जी की बातों पर ध्यान दें ।
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
जनाब रवि जी की बातों पर ध्यान दें । आदरणीय बसंत सर अच्छी गजल कही…tag:openbooks.ning.com,2017-07-25:5170231:Comment:8686572017-07-25T06:44:43.812ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय बसंत सर अच्छी गजल कही आपने शेर दर शेर मुबारक बाद पेश करते है । शीघ्रता में आप शायद इसका अरकान लिखना भूल गये है । अशआर की बात करें तो दूसरा शेर कुछ अस्पष्ट लगा है मआनी तक नहीं पहुँच पा रहे है । और हमने इसके अरकान के अनुसार सानी मिसरे पर तकतीअ की तो</p>
<p>आपने कब /2122 इसकी 22 / इबा12 / दत की 22 बहर भी नहीं मिल पा रही है अलिफ वस्ल भी करें तो आपने 21 2 कबिसकी 122 ये वज्न आ रहा है मिसरे का । देखियेगा</p>
<p>चौथा और आखिरी शेर खास तौर पर पसंद आया उसके लिये अलग से दाद हाजिर है ।</p>
<p>आदरणीय बसंत सर अच्छी गजल कही आपने शेर दर शेर मुबारक बाद पेश करते है । शीघ्रता में आप शायद इसका अरकान लिखना भूल गये है । अशआर की बात करें तो दूसरा शेर कुछ अस्पष्ट लगा है मआनी तक नहीं पहुँच पा रहे है । और हमने इसके अरकान के अनुसार सानी मिसरे पर तकतीअ की तो</p>
<p>आपने कब /2122 इसकी 22 / इबा12 / दत की 22 बहर भी नहीं मिल पा रही है अलिफ वस्ल भी करें तो आपने 21 2 कबिसकी 122 ये वज्न आ रहा है मिसरे का । देखियेगा</p>
<p>चौथा और आखिरी शेर खास तौर पर पसंद आया उसके लिये अलग से दाद हाजिर है ।</p> आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब, बे…tag:openbooks.ning.com,2017-07-25:5170231:Comment:8687432017-07-25T06:42:54.408ZMohammed Arifhttps://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल का आगाज़ । हर शे'र लाजवाब ।.शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय से अवगत करवाएँगे ।
आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल का आगाज़ । हर शे'र लाजवाब ।.शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय से अवगत करवाएँगे ।