Comments - गजल //// हैसियत सरकार रखते हैं - Open Books Online2024-03-28T18:25:07Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A834678&xn_auth=noआदरणीय गोपाल नारायन जी, ग़ज़ल क…tag:openbooks.ning.com,2017-02-12:5170231:Comment:8367252017-02-12T18:27:55.341ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, ग़ज़ल के बरअक्स आदरणीय समर साहब ने खुल कर अपनी बात कही है. मैं उनसे कई विन्दुओं पर सहमत भी हूँ.</p>
<p>लेकिन एक बात जो समर भाई नहीं कह सके, वो मैं ज़रूर कहूँगा. मतले में ’अधिकार’ शब्द का जिस तरह से प्रयोग हुआ है वो मुझे बेतरीके खटक रहा है. मिसरी घोलने की बात तो निहायत मुलायमी से होनी चाहिए न, आदरणीय. अधिकार हक आदि की बात तो क्रिया के बलात होने का परिचायक है ! </p>
<p>बाकी, आप ग़ज़ल विधा को ले कर प्रयासरत हैं, यह मंच के साथ-साथ निजी तौर पर आपके लिए भी फ़ख्र की बात होने वाली…</p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, ग़ज़ल के बरअक्स आदरणीय समर साहब ने खुल कर अपनी बात कही है. मैं उनसे कई विन्दुओं पर सहमत भी हूँ.</p>
<p>लेकिन एक बात जो समर भाई नहीं कह सके, वो मैं ज़रूर कहूँगा. मतले में ’अधिकार’ शब्द का जिस तरह से प्रयोग हुआ है वो मुझे बेतरीके खटक रहा है. मिसरी घोलने की बात तो निहायत मुलायमी से होनी चाहिए न, आदरणीय. अधिकार हक आदि की बात तो क्रिया के बलात होने का परिचायक है ! </p>
<p>बाकी, आप ग़ज़ल विधा को ले कर प्रयासरत हैं, यह मंच के साथ-साथ निजी तौर पर आपके लिए भी फ़ख्र की बात होने वाली है. </p> गज़ल में ख़्याल बहुत अच्छे हैं।…tag:openbooks.ning.com,2017-02-11:5170231:Comment:8365462017-02-11T18:24:35.420Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p><span>गज़ल में ख़्याल बहुत अच्छे हैं। दिल से बधाई, भाई गोपाल नारायन जी।</span></p>
<p><span>गज़ल में ख़्याल बहुत अच्छे हैं। दिल से बधाई, भाई गोपाल नारायन जी।</span></p> आ० समर कबीर साहिब / वाह --- आ…tag:openbooks.ning.com,2017-02-09:5170231:Comment:8351642017-02-09T14:05:29.067Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० समर कबीर साहिब / वाह --- आपकी विस्तृत टीप से मन मुग्ध हो गया , मनन कर रहा हूँ . मूल प्रति में सुधार करूंगा . सादर</p>
<p>आ० समर कबीर साहिब / वाह --- आपकी विस्तृत टीप से मन मुग्ध हो गया , मनन कर रहा हूँ . मूल प्रति में सुधार करूंगा . सादर</p> आ० दिनेश जी , बहुत आभार वस्त…tag:openbooks.ning.com,2017-02-09:5170231:Comment:8351632017-02-09T14:03:27.953Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० दिनेश जी , बहुत आभार वस्तुतः आस्तीन और अस्तीन की मात्राएँ सामान है किन्तु आ के प्रयोग से ले कुछ जरूर बाधित होती है .</p>
<p>आ० दिनेश जी , बहुत आभार वस्तुतः आस्तीन और अस्तीन की मात्राएँ सामान है किन्तु आ के प्रयोग से ले कुछ जरूर बाधित होती है .</p> आ० मो० आरिफ जी , सादर आभार .tag:openbooks.ning.com,2017-02-09:5170231:Comment:8349702017-02-09T14:01:29.300Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० मो० आरिफ जी , सादर आभार .</p>
<p>आ० मो० आरिफ जी , सादर आभार .</p> आ० मिथिलेश जी , सिर्फ हौसला…tag:openbooks.ning.com,2017-02-09:5170231:Comment:8352562017-02-09T14:00:48.821Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० मिथिलेश जी , सिर्फ हौसला अफजाई नहीं आपसे मार्ग दर्शन भी चाहिए .</p>
<p>आ० मिथिलेश जी , सिर्फ हौसला अफजाई नहीं आपसे मार्ग दर्शन भी चाहिए .</p> आ० आशुतोष जी , सादर आभारtag:openbooks.ning.com,2017-02-09:5170231:Comment:8349682017-02-09T13:59:18.201Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० आशुतोष जी , सादर आभार</p>
<p>आ० आशुतोष जी , सादर आभार</p> जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्…tag:openbooks.ning.com,2017-02-08:5170231:Comment:8352252017-02-08T16:41:08.958ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,ग़ज़ल विधा पर आपका अभ्याद संतुष्ट करता है,वाक़ई आप पूरी संजीदगी से इसे परवान चढ़ा रहे हैं,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं ।<br />
इस ग़ज़ल को अगर बह्र की नज़र से देखूँ तो ये एक कामयाब ग़ज़ल है, इसके लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
कुछ अशआर पर आपसे कुछ साझा करना चाहूँगा ।<br />
सबसे पहली बात तो ये कि पूरी ग़ज़ल में ऐब-ए-तनाफ़ुर साथ साथ चल रहा है,कोई बुरी बात नहीं,सिर्फ़ आपकी जानकारी के लिये कह रहा हूँ ।<br />
'कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं<br />
सिराओं में ज़हर…
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,ग़ज़ल विधा पर आपका अभ्याद संतुष्ट करता है,वाक़ई आप पूरी संजीदगी से इसे परवान चढ़ा रहे हैं,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं ।<br />
इस ग़ज़ल को अगर बह्र की नज़र से देखूँ तो ये एक कामयाब ग़ज़ल है, इसके लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
कुछ अशआर पर आपसे कुछ साझा करना चाहूँगा ।<br />
सबसे पहली बात तो ये कि पूरी ग़ज़ल में ऐब-ए-तनाफ़ुर साथ साथ चल रहा है,कोई बुरी बात नहीं,सिर्फ़ आपकी जानकारी के लिये कह रहा हूँ ।<br />
'कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं<br />
सिराओं में ज़हर भर दे वो हम फुफ्काकार रखते हैं'<br />
इस मतले के दोनों मिसरों में रब्त यानी तालमेल की कमी है,दोनों मिसरों में दो अलग अलग बातें हैं,आप जो कहना चाहते हैं,कह नहीं पाए,दूसरी बात ये कि कई बार इस बारे में बताया जा चूका है कि 'ज़ह्र' सही शब्द है,'ज़हर'नहीं,इस पर बहस नहीं करूंगा,ये आप का निजी मुआमला है कि आप सही शब्द की जगह प्रचलन में आया हुआ शब्द इस्तेमाल करें,आपके मतले का यही भाव इस तरह देखिये :-<br />
"कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं<br />
रहे ये याद कि ज़हरीली भी फुफकार रखते हैं "<br />
<br />
'बहुत से बेशरम आते हैं छुप छुप कर हमारे घर'<br />
इस मिसरे में "बेशर्म'सही शब्द है,'बेशरम'नहीं,आप चाहें तो ये मिसरा यूँ कह सकते हैं :-<br />
"कई बेशर्म आ जाते हैं छुप छुप कर हमारे घर"<br />
'दिखाते हैं हमें वे शान-शौकत से झनक अपनी'<br />
इस मिसरे को यूँ लिखें तो मुनासिब होगा :-<br />
"दिखाते हैं हमें वो शान-ओ-शौकत से झनक अपनी"<br />
<br />
'छुपे होते हैं आस्तीनों में अक्सर सांप ज़हरीले<br />
इधर हम बज़्म में उनसे बड़े फ़नकार रखते हैं'<br />
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,पहली पंक्ति में एक जानकारी है, और दूसरे मिसरे में भी यही बात है,आप क्या कहना चाहते हैं ये स्पष्ट नहीं है,दूसरी बात सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है,'बज़्म में'और ऊला मिसरा बह्र में भी नहीं है ।<br />
<br />
'वगरना हम भी दिल में हौसला इंकार रखते हैं'<br />
इस मिसरे में 'हौसला'और 'इंकार'दोनों अलग अलग शब्द हैं,इन दोनों को मिलाकर कुछ कहना है तो इसे यूँ कहेंगे "हौसलए इंकार"यानी इंकार करने का हौसला,इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-<br />
"वगरना हम भी दिल में जुर्रत-ए-इंकार रखते हैं"<br />
बाक़ी शुभ शुभ । आदरणीय गोपाल सर जी। बेहतरीन ग़…tag:openbooks.ning.com,2017-02-08:5170231:Comment:8350402017-02-08T14:14:39.992Zदिनेश कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
आदरणीय गोपाल सर जी। बेहतरीन ग़ज़ल के लिय नमन। वाह वाह।<br />
चौथे शेर के ऊला में थोड़ी बह्र में रुकावट है शायद सर। सादर।
आदरणीय गोपाल सर जी। बेहतरीन ग़ज़ल के लिय नमन। वाह वाह।<br />
चौथे शेर के ऊला में थोड़ी बह्र में रुकावट है शायद सर। सादर। आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2017-02-08:5170231:Comment:8350222017-02-08T12:20:49.922ZMohammed Arifhttps://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब, शानदार ग़ज़ल की पेशकश के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब, शानदार ग़ज़ल की पेशकश के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।