Comments - सीढ़ियाँ – लघुकथा - - Open Books Online2024-03-28T13:20:16Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A834362&xn_auth=noआदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब ज…tag:openbooks.ning.com,2017-02-08:5170231:Comment:8349382017-02-08T15:09:15.376ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।आप इस तरह मुझे शर्मिंदा न करें।हमारे आपके बीच जो प्यार का रिश्ता है, उसमें ये बातें कोई मायने नहीं रखती हैं कि आप मुझे किस संबोधन से बुलाते हैं।सादर।</p>
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।आप इस तरह मुझे शर्मिंदा न करें।हमारे आपके बीच जो प्यार का रिश्ता है, उसमें ये बातें कोई मायने नहीं रखती हैं कि आप मुझे किस संबोधन से बुलाते हैं।सादर।</p> मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदा…tag:openbooks.ning.com,2017-02-07:5170231:Comment:8346852017-02-07T15:17:13.716ZTasdiq Ahmed Khanhttps://openbooks.ning.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , कॉमेंट पोस्ट करने के बाद ध्यान गया कि कुछ <br/>ग़लती हो गयी , फ़ौरन ही मैं ने उसे डी लिट कर दिया , कभी कभी अंजान ग़लती भी <br/>कितनी अच्छी हो जाती है , " शेख " का मतलब मुर्शिद और पेश्वा भी होता है , मुहतरम <br/>तेज वीर साहिब मेरे लिए बहुत आदरणीय हैं , अगर ग़लती है तो माफी चाहता हूँ -- शुक्रिया ---</p>
<p>मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , कॉमेंट पोस्ट करने के बाद ध्यान गया कि कुछ <br/>ग़लती हो गयी , फ़ौरन ही मैं ने उसे डी लिट कर दिया , कभी कभी अंजान ग़लती भी <br/>कितनी अच्छी हो जाती है , " शेख " का मतलब मुर्शिद और पेश्वा भी होता है , मुहतरम <br/>तेज वीर साहिब मेरे लिए बहुत आदरणीय हैं , अगर ग़लती है तो माफी चाहता हूँ -- शुक्रिया ---</p> हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुम…tag:openbooks.ning.com,2017-02-07:5170231:Comment:8346692017-02-07T07:25:14.193ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।आप लघुकथा के मूल भाव को समझ पाये, और उसका समुचित विश्लेषण किया ।पुनः आभार।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।आप लघुकथा के मूल भाव को समझ पाये, और उसका समुचित विश्लेषण किया ।पुनः आभार।</p> आज कल ये सीढियां माहौल खराब क…tag:openbooks.ning.com,2017-02-06:5170231:Comment:8346642017-02-06T15:29:39.388Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>आज कल ये सीढियां माहौल खराब कर रही हैं जिनमे योग्यता व् स्वाभिमान नही है वही इनका इस्तेमाल करता है और फिर पतन के गर्त में भी जल्दी ही गिरता है ऐसी व्यवस्था पर कटाक्ष करती बेहतरीन लघु कथा बहुत बहुत बधाई आद० तेजवीर सिंह जी </p>
<p>आज कल ये सीढियां माहौल खराब कर रही हैं जिनमे योग्यता व् स्वाभिमान नही है वही इनका इस्तेमाल करता है और फिर पतन के गर्त में भी जल्दी ही गिरता है ऐसी व्यवस्था पर कटाक्ष करती बेहतरीन लघु कथा बहुत बहुत बधाई आद० तेजवीर सिंह जी </p> हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश ज…tag:openbooks.ning.com,2017-02-06:5170231:Comment:8346572017-02-06T14:47:38.837ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी।आपका लघुकथा पर आना ही एक सुखद अनुभूति है।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी।आपका लघुकथा पर आना ही एक सुखद अनुभूति है।</p> आदरणीय तेजवीर सिंह जी, क्या प…tag:openbooks.ning.com,2017-02-06:5170231:Comment:8348632017-02-06T13:09:13.262Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय तेजवीर सिंह जी, क्या पंचलाइन //<span>जैसे सीढ़ियों का उपयोग उन्नति देता है , वैसे ही इनका दुरुपयोग पतन की ओर भी ले जा सकता है"।// लघुकथा के साथ फिट बैठ गयी है? मैं इस लघुकथा से ख़ुद को जोड़ नहीं पा रहा हूँ. बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु बधाई. सादर </span></p>
<p>आदरणीय तेजवीर सिंह जी, क्या पंचलाइन //<span>जैसे सीढ़ियों का उपयोग उन्नति देता है , वैसे ही इनका दुरुपयोग पतन की ओर भी ले जा सकता है"।// लघुकथा के साथ फिट बैठ गयी है? मैं इस लघुकथा से ख़ुद को जोड़ नहीं पा रहा हूँ. बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु बधाई. सादर </span></p> हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर…tag:openbooks.ning.com,2017-02-06:5170231:Comment:8345522017-02-06T06:24:57.171ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।यह प्यार सदैव ऐसे ही बना रहना चाहिये। आदाब।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।यह प्यार सदैव ऐसे ही बना रहना चाहिये। आदाब।</p> जी,इसमें तो कोई शक नहीं,सभी आ…tag:openbooks.ning.com,2017-02-05:5170231:Comment:8348192017-02-05T16:45:50.940ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जी,इसमें तो कोई शक नहीं,सभी आपसे प्यार करते हैं ।
जी,इसमें तो कोई शक नहीं,सभी आपसे प्यार करते हैं । हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अह…tag:openbooks.ning.com,2017-02-05:5170231:Comment:8346282017-02-05T16:44:00.598ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। आदरणीय तस्दीक अहमद साहब,आप मुझे प्यार से कुछ भी बुलायें, मुझे अच्छा लगेगा।आपके दिल में मेरे लिये बहुत प्यार है।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। आदरणीय तस्दीक अहमद साहब,आप मुझे प्यार से कुछ भी बुलायें, मुझे अच्छा लगेगा।आपके दिल में मेरे लिये बहुत प्यार है।</p> हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर…tag:openbooks.ning.com,2017-02-05:5170231:Comment:8347262017-02-05T16:41:47.693ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।आपकी शुभ कामनाओं का सदैव इंतज़ार रहता है।समर क़बीर साहब, मुझे किसी के कुछ भी संबोधन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता बशर्ते उसमें प्यार शामिल हो। आदरणीय तस्दीक अहमद साहब मुझे प्यार से कुछ भी बुलायें, मुझे अच्छा लगेगा।उनके दिल में मेरे लिये बहुत प्यार है।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।आपकी शुभ कामनाओं का सदैव इंतज़ार रहता है।समर क़बीर साहब, मुझे किसी के कुछ भी संबोधन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता बशर्ते उसमें प्यार शामिल हो। आदरणीय तस्दीक अहमद साहब मुझे प्यार से कुछ भी बुलायें, मुझे अच्छा लगेगा।उनके दिल में मेरे लिये बहुत प्यार है।</p>