Comments - मैं ज़िन्दगी का आशिक़, भावों से पिला साक़ी- पंकज द्वारा गजल - Open Books Online2024-03-29T11:34:25Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A833587&xn_auth=no//,दोनों अशआर में भाव अलग अलग…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8340162017-02-02T19:05:47.450ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//<span>,दोनों अशआर में भाव अलग अलग हैं । कभी कभी कुछ ज़मीनें ऐसी मिल जाती हैं कि वहाँ क़ाफिये तंग हो जाते हैं,ऐसी सूरत में दो <span> दो बार तो क्या तीन बार भी एक ही क़ाफ़िया लिया जा सकता है,'साहिर' के अलावा भी कई उस्ताद शाइरों के यहाँ ऐसी मिसालें मिलती हैं,जो वक़्त आने पर पेश की जा सकती हैं //</span></span></p>
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<p><span><span>यही तो मेरे कहे का इशारा है। संभवतः आपने एकदम से टिप्पणी कर दी, आदरणीय समर साहब।</span></span></p>
<p><span><span>हमने कहा ही न - //<span>अगर किसी सूरत में किसी…</span></span></span></p>
<p>//<span>,दोनों अशआर में भाव अलग अलग हैं । कभी कभी कुछ ज़मीनें ऐसी मिल जाती हैं कि वहाँ क़ाफिये तंग हो जाते हैं,ऐसी सूरत में दो <span> दो बार तो क्या तीन बार भी एक ही क़ाफ़िया लिया जा सकता है,'साहिर' के अलावा भी कई उस्ताद शाइरों के यहाँ ऐसी मिसालें मिलती हैं,जो वक़्त आने पर पेश की जा सकती हैं //</span></span></p>
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<p><span><span>यही तो मेरे कहे का इशारा है। संभवतः आपने एकदम से टिप्पणी कर दी, आदरणीय समर साहब।</span></span></p>
<p><span><span>हमने कहा ही न - //<span>अगर किसी सूरत में किसी शब्द को दो या अधिक दफ़े क़ाफ़िया केरूप में प्रयुक्त करना ही पड़े तो उसके लिए भी कुछ विशेष समझ है. इस ओर निग़ाह बनी रहे. //</span></span></span></p>
<p><span><span>सादर</span></span></p>
<p></p> एक ही क़ाफ़िया को दो बार लेने स…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8339302017-02-02T13:54:26.609ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
एक ही क़ाफ़िया को दो बार लेने से ये नहीं कहा जा सकता कि ग़ज़लकार के पास शब्दों का अकाल है, हाँ ये जरूत है कि इससे बचना चाहिये, 'साहिर'लुध्यानवी की ग़ज़ल के ये अशआर देखिये :-<br />
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"तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िन्दगी से हम<br />
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम<br />
<br />
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले<br />
गो दब गये हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िन्दगी से हम"<br />
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"ज़िन्दगी"क़ाफ़िया एक ही ग़ज़ल में दो बार इस्तेमाल हुआ है,क्या इन अशआर को पढ़ कर या सुनकर कोई ये कह सकता है कि 'साहिर'के पास शब्दों की कमी थी ?नहीं कह सकता,क्योंकि एक ही क़ाफ़िया लेने से…
एक ही क़ाफ़िया को दो बार लेने से ये नहीं कहा जा सकता कि ग़ज़लकार के पास शब्दों का अकाल है, हाँ ये जरूत है कि इससे बचना चाहिये, 'साहिर'लुध्यानवी की ग़ज़ल के ये अशआर देखिये :-<br />
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"तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िन्दगी से हम<br />
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम<br />
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उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले<br />
गो दब गये हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िन्दगी से हम"<br />
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"ज़िन्दगी"क़ाफ़िया एक ही ग़ज़ल में दो बार इस्तेमाल हुआ है,क्या इन अशआर को पढ़ कर या सुनकर कोई ये कह सकता है कि 'साहिर'के पास शब्दों की कमी थी ?नहीं कह सकता,क्योंकि एक ही क़ाफ़िया लेने से ये साबित नहीं होता,दोनों अशआर में भाव अलग अलग हैं । कभी कभी कुछ ज़मीनें ऐसी मिल जाती हैं कि वहाँ क़ाफिये तंग हो जाते हैं,ऐसी सूरत में दो बार तो क्या तीन बार भी एक ही क़ाफ़िया लिया जा सकता है,'साहिर' के अलावा भी कई उस्ताद शाइरों के यहाँ ऐसी मिसालें मिलती हैं,जो वक़्त आने पर पेश की जा सकती हैं । उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी । आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, य…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8337702017-02-02T12:59:54.822ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, यहां समस्या काफिया को लेकर नहीं थी, अपितु रदीफ की वजह से अपितु रदीफ़ की वजह से परेशानी हुई, " से पिला साकी" रदीफ़ होने के कारण समस्या यह हुई कि- साक़ी-आँखों, हाथों, होंठों,ख्वाबों, साँसों, भावों से तो पिला सकती है लेकिन और आंय कोई समुचित माध्यम नहीं दिखा जिससे पीया जा सके, इसलिए काफ़िया कम पड़ गया।। अन्यथा-ओं काफ़िया बहुत आसान होता है। सादर
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, यहां समस्या काफिया को लेकर नहीं थी, अपितु रदीफ की वजह से अपितु रदीफ़ की वजह से परेशानी हुई, " से पिला साकी" रदीफ़ होने के कारण समस्या यह हुई कि- साक़ी-आँखों, हाथों, होंठों,ख्वाबों, साँसों, भावों से तो पिला सकती है लेकिन और आंय कोई समुचित माध्यम नहीं दिखा जिससे पीया जा सके, इसलिए काफ़िया कम पड़ गया।। अन्यथा-ओं काफ़िया बहुत आसान होता है। सादर आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, य…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8338732017-02-02T12:59:54.443ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, यहां समस्या काफिया को लेकर नहीं थी, अपितु रदीफ की वजह से अपितु रदीफ़ की वजह से परेशानी हुई, " से पिला साकी" रदीफ़ होने के कारण समस्या यह हुई कि- साक़ी-आँखों, हाथों, होंठों,ख्वाबों, साँसों, भावों से तो पिला सकती है लेकिन और आंय कोई समुचित माध्यम नहीं दिखा जिससे पीया जा सके, इसलिए काफ़िया कम पड़ गया।। अन्यथा-ओं काफ़िया बहुत आसान होता है। सादर
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, यहां समस्या काफिया को लेकर नहीं थी, अपितु रदीफ की वजह से अपितु रदीफ़ की वजह से परेशानी हुई, " से पिला साकी" रदीफ़ होने के कारण समस्या यह हुई कि- साक़ी-आँखों, हाथों, होंठों,ख्वाबों, साँसों, भावों से तो पिला सकती है लेकिन और आंय कोई समुचित माध्यम नहीं दिखा जिससे पीया जा सके, इसलिए काफ़िया कम पड़ गया।। अन्यथा-ओं काफ़िया बहुत आसान होता है। सादर किसी ग़ज़ल में एक ही शब्द को दो…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8339272017-02-02T12:30:59.196ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>किसी ग़ज़ल में एक ही शब्द को दो दफ़े क़ाफ़िया के रूप में लेने की मनाही नहीं होने के बावज़ूद यह परिपाटी के रूप में मान्य नहीं है. साथ ही, इसे लेकर यह भी कहा जाता है कि यह ग़ज़लकार के पास शब्दों की कमी को भी दर्शाता है. किसी ग़ज़लकार की ताकत उसके लफ़्ज़ ही होते हैं. क्योंकि ग़ज़ल की विधा किसी ग़ज़लकार की भाषा (ज़ुबान) और शब्द (लफ़्ज़) की ताकत का पैमाना है. </p>
<p></p>
<p>अब अगर किसी सूरत में किसी शब्द को दो या अधिक दफ़े क़ाफ़िया केरूप में प्रयुक्त करना ही पड़े तो उसके लिए भी कुछ विशेष समझ है. इस ओर निग़ाह बनी…</p>
<p>किसी ग़ज़ल में एक ही शब्द को दो दफ़े क़ाफ़िया के रूप में लेने की मनाही नहीं होने के बावज़ूद यह परिपाटी के रूप में मान्य नहीं है. साथ ही, इसे लेकर यह भी कहा जाता है कि यह ग़ज़लकार के पास शब्दों की कमी को भी दर्शाता है. किसी ग़ज़लकार की ताकत उसके लफ़्ज़ ही होते हैं. क्योंकि ग़ज़ल की विधा किसी ग़ज़लकार की भाषा (ज़ुबान) और शब्द (लफ़्ज़) की ताकत का पैमाना है. </p>
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<p>अब अगर किसी सूरत में किसी शब्द को दो या अधिक दफ़े क़ाफ़िया केरूप में प्रयुक्त करना ही पड़े तो उसके लिए भी कुछ विशेष समझ है. इस ओर निग़ाह बनी रहे. </p>
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<p>प्रस्तुत ग़ज़ल के लिए भाई पंकज जी को हार्दिक बधाइयाँ .. </p> आदरणीय बाऊजी बहुत बढ़िया जानका…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8339172017-02-02T09:52:06.562ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय बाऊजी बहुत बढ़िया जानकारी मिली, मैं समझता था कि एक काफ़िया एकदम एक बार ही ले सकते हैं, मगर अब जान गया कि विशेष परिस्थिति में 2 बार एक काफ़िया रख सकते हैं, सादर आभार
आदरणीय बाऊजी बहुत बढ़िया जानकारी मिली, मैं समझता था कि एक काफ़िया एकदम एक बार ही ले सकते हैं, मगर अब जान गया कि विशेष परिस्थिति में 2 बार एक काफ़िया रख सकते हैं, सादर आभार एक क़ाफ़िया दो बार ले सकते हैं,…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8337642017-02-02T09:40:35.559ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
एक क़ाफ़िया दो बार ले सकते हैं,कोई पाबंदी नहीं है,'हाथों'की तुक सही नहीं है न ।
एक क़ाफ़िया दो बार ले सकते हैं,कोई पाबंदी नहीं है,'हाथों'की तुक सही नहीं है न । आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, दर…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8337012017-02-02T09:36:32.510ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, दर असल यहाँ आँखों ही प्रयुक्त किया था, लेकिन आगे दूसरे शेर में आँखों का प्रयोग किया है, इसलिए हाथों से पिला साकी कर दिया।। काफ़िया नहीं समझ में आ रहा था, उस लिए
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, दर असल यहाँ आँखों ही प्रयुक्त किया था, लेकिन आगे दूसरे शेर में आँखों का प्रयोग किया है, इसलिए हाथों से पिला साकी कर दिया।। काफ़िया नहीं समझ में आ रहा था, उस लिए अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8339152017-02-02T09:31:48.073ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल अच्छी है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
'ये जाम अलग रख दे हाथों से पिला साक़ी'<br />
भाई हाथों से साक़ी कैसे पिलायेगा अगर जाम अलग रख देगा ? क्या ओक से पिलायेगा ? यहां क़ाफ़ियाय 'आँखों'ठीक रहेगा ।
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल अच्छी है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
'ये जाम अलग रख दे हाथों से पिला साक़ी'<br />
भाई हाथों से साक़ी कैसे पिलायेगा अगर जाम अलग रख देगा ? क्या ओक से पिलायेगा ? यहां क़ाफ़ियाय 'आँखों'ठीक रहेगा । आ. भाई पंकज जी सूंदर ग़ज़ल हुई…tag:openbooks.ning.com,2017-02-02:5170231:Comment:8338662017-02-02T07:12:53.691Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई पंकज जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .</p>
<p>आ. भाई पंकज जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .</p>