Comments - केवल तुम - Open Books Online2024-03-29T01:44:26Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A816227&xn_auth=noआदरनीय डा. सुकुल भी , बहुत खू…tag:openbooks.ning.com,2016-11-28:5170231:Comment:8168132016-11-28T14:19:58.807Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय डा. सुकुल भी , बहुत खूब ! भाव पूर्ण कविता के लिये आप्को हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>आदरनीय डा. सुकुल भी , बहुत खूब ! भाव पूर्ण कविता के लिये आप्को हार्दिक बधाइयाँ ।</p> रचना पर समय देकर मानवर्धन करन…tag:openbooks.ning.com,2016-11-28:5170231:Comment:8161992016-11-28T04:05:07.922ZDr T R Sukulhttps://openbooks.ning.com/profile/DrTRSukul
<p>रचना पर समय देकर मानवर्धन करने के लिए सादर आभार आदरणीय विजय निकोर साहब। </p>
<p>रचना पर समय देकर मानवर्धन करने के लिए सादर आभार आदरणीय विजय निकोर साहब। </p> रचना पर समय देकर मान वर्धन कर…tag:openbooks.ning.com,2016-11-28:5170231:Comment:8163952016-11-28T04:02:31.776ZDr T R Sukulhttps://openbooks.ning.com/profile/DrTRSukul
<p>रचना पर समय देकर मान वर्धन करने के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपालनारायणजी एवं समर कबीर साहब। आपकी आशंका को मैं आंशिक रूप से स्वीकार करता हूँ। "वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों , पुलकायित हैं। " इस लाइन में टंकण के समय अल्पविराम लगाया जाना था जो नहीं होने से यह भ्रम उत्पन्न होता है। इसे एडिट करने का प्रयास करता हूँ। उदारता के लिए आभार । </p>
<p>रचना पर समय देकर मान वर्धन करने के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपालनारायणजी एवं समर कबीर साहब। आपकी आशंका को मैं आंशिक रूप से स्वीकार करता हूँ। "वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों , पुलकायित हैं। " इस लाइन में टंकण के समय अल्पविराम लगाया जाना था जो नहीं होने से यह भ्रम उत्पन्न होता है। इसे एडिट करने का प्रयास करता हूँ। उदारता के लिए आभार । </p> सुन्दर भाव। अच्छी रचना के लि…tag:openbooks.ning.com,2016-11-28:5170231:Comment:8166112016-11-28T02:40:11.664Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p> सुन्दर भाव। अच्छी रचना के लिए बधाई।</p>
<p> सुन्दर भाव। अच्छी रचना के लिए बधाई।</p> जनाब डॉ.शुक्ल साहिब आदाब,अच्छ…tag:openbooks.ning.com,2016-11-26:5170231:Comment:8164342016-11-26T17:28:03.772ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब डॉ.शुक्ल साहिब आदाब,अच्छी भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीक्सर करें ।<br />
मैं जनाब गोपाल नारायण जी से सहमत हूँ ।
जनाब डॉ.शुक्ल साहिब आदाब,अच्छी भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीक्सर करें ।<br />
मैं जनाब गोपाल नारायण जी से सहमत हूँ । आ० सुन्दर भावों से सजी है कवि…tag:openbooks.ning.com,2016-11-26:5170231:Comment:8162382016-11-26T11:58:47.365Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० सुन्दर भावों से सजी है कविता पर कही कही भाषा भाव का अनुगमन नहीं कर पाती जैसे -वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों पुलकायित हैं,</p>
<p>आ० सुन्दर भावों से सजी है कविता पर कही कही भाषा भाव का अनुगमन नहीं कर पाती जैसे -वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों पुलकायित हैं,</p>