Comments - मुक्तिका: ज़िन्दगी हँस के.... ---संजीव 'सलिल' - Open Books Online2024-03-29T00:39:07Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A8046&xn_auth=noआचार्य जी के चरणों में सादर प…tag:openbooks.ning.com,2010-06-25:5170231:Comment:81382010-06-25T19:26:40.138ZRana Pratap Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/RanaPratapSingh
आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम<br />
बहुत ही सुन्दर मुक्तिका है<br />
जिन पंक्तियों ने ह्रदय को स्पर्श किया वह ये हैं<br />
<br />
रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.<br />
किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..<br />
<br />
दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल' ध्यान रहे.<br />
खुशी मर जाएगी गर खुद में सिमट जाएगी..<br />
<br />
सादर
आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम<br />
बहुत ही सुन्दर मुक्तिका है<br />
जिन पंक्तियों ने ह्रदय को स्पर्श किया वह ये हैं<br />
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रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.<br />
किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..<br />
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दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल' ध्यान रहे.<br />
खुशी मर जाएगी गर खुद में सिमट जाएगी..<br />
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सादर