Comments - लजाते क्यूँ हो? - Open Books Online2024-03-29T15:31:47Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A790051&xn_auth=noआदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम…tag:openbooks.ning.com,2016-08-05:5170231:Comment:7904632016-08-05T06:28:06.824ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम, ग़ज़ल को आशीर्वाद देने के लिए बहुत बहुत आभार।<br />
<br />
#भसुर# पति के बड़े भाई को कहते हैं।<br />
<br />
हमारे यहाँ #भयो(अनुज वधु)# अपने #भसुर(ज्येष्ठ) से# तथा भसुर अपनी भयो की परछाईं से भी बचते हैं।
आदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम, ग़ज़ल को आशीर्वाद देने के लिए बहुत बहुत आभार।<br />
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#भसुर# पति के बड़े भाई को कहते हैं।<br />
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हमारे यहाँ #भयो(अनुज वधु)# अपने #भसुर(ज्येष्ठ) से# तथा भसुर अपनी भयो की परछाईं से भी बचते हैं। आदरणीय कल्पना भट्ट मैम सादर आ…tag:openbooks.ning.com,2016-08-05:5170231:Comment:7901652016-08-05T06:24:15.228ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय कल्पना भट्ट मैम सादर आभार।
आदरणीय कल्पना भट्ट मैम सादर आभार। आदरनीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी क…tag:openbooks.ning.com,2016-08-05:5170231:Comment:7903842016-08-05T05:56:34.499Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी कही है , बधाई आपको । <br/><br/>#भसुर# -- समझ नही पाया ।</p>
<p></p>
<p>आदरनीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी कही है , बधाई आपको । <br/><br/>#भसुर# -- समझ नही पाया ।</p>
<p></p> जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।…tag:openbooks.ning.com,2016-08-02:5170231:Comment:7899872016-08-02T16:51:54.325ZKALPANA BHATT ('रौनक़')https://openbooks.ning.com/profile/KALPANABHATT832
जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।<br />
बाप बेटी का बनाते क्यूँ हो?<br />
<br />
मैं ख़फ़ा हूँ तेरी मनमानी से।<br />
सामने आओ लजाते क्यूँ हो? बहुत खूब । हार्दिक बधाई आदरणीय ।
जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।<br />
बाप बेटी का बनाते क्यूँ हो?<br />
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मैं ख़फ़ा हूँ तेरी मनमानी से।<br />
सामने आओ लजाते क्यूँ हो? बहुत खूब । हार्दिक बधाई आदरणीय ।