Comments - तज़मींन बर तजमींन - Open Books Online2024-03-29T13:11:19Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A784876&xn_auth=noजी,फ़िलहाल नेटवर्क समस्या से ज…tag:openbooks.ning.com,2016-07-27:5170231:Comment:7873612016-07-27T13:14:01.366ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जी,फ़िलहाल नेटवर्क समस्या से जूझ रहा हूँ,उलझन दूर होते ही ज़रूर पढूंगा ।
जी,फ़िलहाल नेटवर्क समस्या से जूझ रहा हूँ,उलझन दूर होते ही ज़रूर पढूंगा । आदरणीय समर कबीर सर जी, हौसला…tag:openbooks.ning.com,2016-07-25:5170231:Comment:7872672016-07-25T21:08:33.200Zshree suneelhttps://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
आदरणीय समर कबीर सर जी, हौसला अफ्जाई के लिए शुक्रिया!<br />
मेरे दोनों तज़मींन इसी ब्लॉग पर उपलब्ध हैं. यहीं से previous post पर click कर दूसरे और ऐसे हीं पहले तजमींन तक पहुँचा जा सकता है.<br />
आशा है आपका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा. सादर.
आदरणीय समर कबीर सर जी, हौसला अफ्जाई के लिए शुक्रिया!<br />
मेरे दोनों तज़मींन इसी ब्लॉग पर उपलब्ध हैं. यहीं से previous post पर click कर दूसरे और ऐसे हीं पहले तजमींन तक पहुँचा जा सकता है.<br />
आशा है आपका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा. सादर. आपका यह अमल सराहनीय है,आपकी प…tag:openbooks.ning.com,2016-07-25:5170231:Comment:7872652016-07-25T17:44:46.451ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
आपका यह अमल सराहनीय है,आपकी पिछली तज़मीन मैं कहाँ और कैसे पढ़ सकता हूँ, कृपया मुझे बताऐं ।
आपका यह अमल सराहनीय है,आपकी पिछली तज़मीन मैं कहाँ और कैसे पढ़ सकता हूँ, कृपया मुझे बताऐं । आदरणीय समर कबीर सर जी, इस तजम…tag:openbooks.ning.com,2016-07-24:5170231:Comment:7871162016-07-24T13:58:51.033Zshree suneelhttps://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
आदरणीय समर कबीर सर जी, इस तजमींन बर तजमींन पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से प्रफुल्लित हूँ. अापको संतुष्ट पा कर मेरा हौसला बढ़ा है. इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया.<br />
आदरणीय, मैं भी चाहता हूँ कि ये विधा पुनः जीवित हो. इसलिए अाजकल तज़मींन पर कुछ ज़्यादा ही काम कर रहा हूं. इसके पहले भी दो तज़मींन मंच पर दे चुका हूँ लेकिन शायद पिछले माह की व्यस्तता के चलते आप देख न सके. आगे भी मेरी कोशिश होगी आदरणीय कि तज़मींन और तज़मींन बर तज़मींन पेश करूँ. उम्मीद है सर, आपका तज़मींन हम सब को पढ़ने को मिलता…
आदरणीय समर कबीर सर जी, इस तजमींन बर तजमींन पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से प्रफुल्लित हूँ. अापको संतुष्ट पा कर मेरा हौसला बढ़ा है. इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया.<br />
आदरणीय, मैं भी चाहता हूँ कि ये विधा पुनः जीवित हो. इसलिए अाजकल तज़मींन पर कुछ ज़्यादा ही काम कर रहा हूं. इसके पहले भी दो तज़मींन मंच पर दे चुका हूँ लेकिन शायद पिछले माह की व्यस्तता के चलते आप देख न सके. आगे भी मेरी कोशिश होगी आदरणीय कि तज़मींन और तज़मींन बर तज़मींन पेश करूँ. उम्मीद है सर, आपका तज़मींन हम सब को पढ़ने को मिलता रहेगा.<br />
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जिस मिसरे पे आपने इस्लाह दिया उसे स्वीकार करते हुए उसमें अभी तब्दीली करता हूँ आदरणीय. वाकई ये सटीक है.<br />
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प्रस्तुति की सराहना व उत्साहवर्धन के लिए पुनः धन्यवाद आदरणीय. सादर. प्रस्तुति की सराहना के लिए हा…tag:openbooks.ning.com,2016-07-24:5170231:Comment:7871152016-07-24T13:14:25.663Zshree suneelhttps://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
प्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अशोक रक्ताले सर जी. सादर
प्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अशोक रक्ताले सर जी. सादर रचना तक आने, इसकी सराहना व उत…tag:openbooks.ning.com,2016-07-24:5170231:Comment:7872152016-07-24T13:12:00.202Zshree suneelhttps://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
रचना तक आने, इसकी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर.
रचना तक आने, इसकी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर. जनाब श्री सुनील जी आदाब,भाई ज…tag:openbooks.ning.com,2016-07-21:5170231:Comment:7856512016-07-21T09:34:48.993ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब श्री सुनील जी आदाब,भाई जी ख़ुश कर दिया आपने,इस विधा को पुनः जीवित करने में आपका योगदान भुलाया नहीं जायेगा ।<br />
बहुत ही फनकारी से मिसरे चस्पाँ किये हैं आपने,इस खूबसूरत तज़मीन बर तज़मीन के लिये ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।<br />
"न रुक ऐ दिल चलो अब दूर से उठता धुआँ देखे"<br />
ये मिसरा कुछ कमज़ोर नज़र आया,'ऐ दिल चलो'में दिल के साथ चलो मुनासिब नहीं लग रहा यहां'चल'कहना था ये मिसरा इस तरह दुरुस्त हो सकता है:-<br />
"न रुक ए दिल चल अब हम दूर से उठता धुआँ देखें"<br />
इस शानदार प्रस्तुति पर पुनः बधाई आपको,सलामत…
जनाब श्री सुनील जी आदाब,भाई जी ख़ुश कर दिया आपने,इस विधा को पुनः जीवित करने में आपका योगदान भुलाया नहीं जायेगा ।<br />
बहुत ही फनकारी से मिसरे चस्पाँ किये हैं आपने,इस खूबसूरत तज़मीन बर तज़मीन के लिये ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।<br />
"न रुक ऐ दिल चलो अब दूर से उठता धुआँ देखे"<br />
ये मिसरा कुछ कमज़ोर नज़र आया,'ऐ दिल चलो'में दिल के साथ चलो मुनासिब नहीं लग रहा यहां'चल'कहना था ये मिसरा इस तरह दुरुस्त हो सकता है:-<br />
"न रुक ए दिल चल अब हम दूर से उठता धुआँ देखें"<br />
इस शानदार प्रस्तुति पर पुनः बधाई आपको,सलामत रहिये । आदरणीय श्री सुनील जी सादर, सु…tag:openbooks.ning.com,2016-07-20:5170231:Comment:7853392016-07-20T07:52:29.117ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय श्री सुनील जी सादर, सुंदर तज़मीन बर तज़मीन. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.</p>
<p>आदरणीय श्री सुनील जी सादर, सुंदर तज़मीन बर तज़मीन. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.</p> आदरणीय श्री सुनील भाई , बहुत…tag:openbooks.ning.com,2016-07-19:5170231:Comment:7850002016-07-19T12:40:48.400Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय श्री सुनील भाई , बहुत बेहतरीन तज़मीन की है आपने , क्या बात है ! मुबारकबद कुबूल करे ।</p>
<p>आदरणीय श्री सुनील भाई , बहुत बेहतरीन तज़मीन की है आपने , क्या बात है ! मुबारकबद कुबूल करे ।</p>