Comments - गुमशुदा हूँ मैं - Open Books Online2024-03-29T09:58:59Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A763968&xn_auth=noआदरणीय रामबली जी स्वागत है आप…tag:openbooks.ning.com,2016-05-13:5170231:Comment:7648102016-05-13T06:21:22.117ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttps://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p>आदरणीय रामबली जी स्वागत है आप का ..रचना आप के मन को छू सकी अच्छा लगा आभार <br/> जय श्री राधे <br/>
भ्रमर ५</p>
<p>आदरणीय रामबली जी स्वागत है आप का ..रचना आप के मन को छू सकी अच्छा लगा आभार <br/> जय श्री राधे <br/>
भ्रमर ५</p> आदरणीय रामबली जी स्वागत है आप…tag:openbooks.ning.com,2016-05-13:5170231:Comment:7646022016-05-13T06:21:19.751ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttps://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
आदरणीय रामबली जी स्वागत है आप का ..रचना आप के मन को छू सकी अच्छा लगा आभार<br />
जय श्री राधे<br />
भ्रमर ५
आदरणीय रामबली जी स्वागत है आप का ..रचना आप के मन को छू सकी अच्छा लगा आभार<br />
जय श्री राधे<br />
भ्रमर ५ आदरणीय मिथिलेश जी आभार सुन्दर…tag:openbooks.ning.com,2016-05-13:5170231:Comment:7646392016-05-13T06:20:04.052ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttps://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
आदरणीय मिथिलेश जी आभार सुन्दर सुझाव हेतु ..इस को एडिट कर दिया जाएगा<br />
जय श्री राधे<br />
भ्रमर ५
आदरणीय मिथिलेश जी आभार सुन्दर सुझाव हेतु ..इस को एडिट कर दिया जाएगा<br />
जय श्री राधे<br />
भ्रमर ५ बहुत ही उम्दा अतुकांत। बधाई स…tag:openbooks.ning.com,2016-05-12:5170231:Comment:7642572016-05-12T12:23:34.267Zरामबली गुप्ताhttps://openbooks.ning.com/profile/RAMBALIGUPTA
बहुत ही उम्दा अतुकांत। बधाई स्वीकार करें आदरणीय
बहुत ही उम्दा अतुकांत। बधाई स्वीकार करें आदरणीय आदरणीय भ्रमर जी बढ़िया भावाभिव…tag:openbooks.ning.com,2016-05-11:5170231:Comment:7642222016-05-11T09:02:36.006Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय भ्रमर जी बढ़िया भावाभिव्यक्ति है किन्तु समानार्थी शब्दों का एक ही पंक्ति प्रयोग कथ्य को शाब्दिक किये जाने के क्रम को अनावश्यक विस्तार दे रहा है यथा -</p>
<p></p>
<p>//गुमशुदा हूँ मैं</p>
<p>तलाश जारी है</p>
<p>अनवरत 'स्व ' को खोजने का</p>
<p>अपना ‘वजूद’ अस्तित्व</p>
<p>है क्या ? //</p>
<p></p>
<p>यहाँ तलाश और खोजने का प्रयोग हो या वजूद और अस्तित्व का.</p>
<p></p>
<p>//गुमशुदा हूँ मैं</p>
<p>तलाश जारी है</p>
<p>अनवरत 'स्व ' की</p>
<p>अपना ‘वजूद’</p>
<p>है क्या ?…</p>
<p>आदरणीय भ्रमर जी बढ़िया भावाभिव्यक्ति है किन्तु समानार्थी शब्दों का एक ही पंक्ति प्रयोग कथ्य को शाब्दिक किये जाने के क्रम को अनावश्यक विस्तार दे रहा है यथा -</p>
<p></p>
<p>//गुमशुदा हूँ मैं</p>
<p>तलाश जारी है</p>
<p>अनवरत 'स्व ' को खोजने का</p>
<p>अपना ‘वजूद’ अस्तित्व</p>
<p>है क्या ? //</p>
<p></p>
<p>यहाँ तलाश और खोजने का प्रयोग हो या वजूद और अस्तित्व का.</p>
<p></p>
<p>//गुमशुदा हूँ मैं</p>
<p>तलाश जारी है</p>
<p>अनवरत 'स्व ' की</p>
<p>अपना ‘वजूद’</p>
<p>है क्या ? //</p>
<p></p>
<p>सादर </p>
<p></p>