Comments - जगना कहाँ ज़रूरी है? - Open Books Online2024-03-29T07:12:39Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A760414&xn_auth=noये क्या संशोधन कर दिया पंकज भ…tag:openbooks.ning.com,2016-05-02:5170231:Comment:7624762016-05-02T15:02:24.566ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>ये क्या संशोधन कर दिया पंकज भाई ? ओह ! .. :-((</p>
<p>अरे भाई साहब, मिसरेका वज़न आपने जो दिया था, उसमें से एक ग़ाम (गुरु यानी २) को कम कर देना था. आपने कुल सोलह ग़ाम लिए थे, जबकि आपके सभी मिसरों में पन्द्रह ग़ाम की ही ग़ुंजाइश बन रही थी. बस इसी कारण हमने आपको यह कह कर चौंका दिया कि आपके सभी मिसरे बेबहर हैं.</p>
<p>आप बस २२ २२ २२ २२ - २२ २२ २२ २ कर दें आपका काम दुरुस्त है.</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p> </p>
<p>ये क्या संशोधन कर दिया पंकज भाई ? ओह ! .. :-((</p>
<p>अरे भाई साहब, मिसरेका वज़न आपने जो दिया था, उसमें से एक ग़ाम (गुरु यानी २) को कम कर देना था. आपने कुल सोलह ग़ाम लिए थे, जबकि आपके सभी मिसरों में पन्द्रह ग़ाम की ही ग़ुंजाइश बन रही थी. बस इसी कारण हमने आपको यह कह कर चौंका दिया कि आपके सभी मिसरे बेबहर हैं.</p>
<p>आप बस २२ २२ २२ २२ - २२ २२ २२ २ कर दें आपका काम दुरुस्त है.</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p> </p> संशोधन कर रहा हूँtag:openbooks.ning.com,2016-05-02:5170231:Comment:7625852016-05-02T14:11:15.447ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
संशोधन कर रहा हूँ
संशोधन कर रहा हूँ //ये सही है कि बह्र में फंस ग…tag:openbooks.ning.com,2016-05-02:5170231:Comment:7624672016-05-02T13:54:46.387ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//<span>ये सही है कि बह्र में फंस गया हूँ। //</span></p>
<p></p>
<p><span>कहाँ फँस गये हैं, कुछ अता-पता चला ? या मेरा दिल खुश करने के लिए ये टिप्पणी हुई है ? </span></p>
<p><span>:-)))</span></p>
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<p>//<span>ये सही है कि बह्र में फंस गया हूँ। //</span></p>
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<p><span>कहाँ फँस गये हैं, कुछ अता-पता चला ? या मेरा दिल खुश करने के लिए ये टिप्पणी हुई है ? </span></p>
<p><span>:-)))</span></p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, सादर प्रणाम।…tag:openbooks.ning.com,2016-05-02:5170231:Comment:7626252016-05-02T13:52:38.968ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय सौरभ सर, सादर प्रणाम।<br />
ये सही है कि बह्र में फंस गया हूँ।<br />
<br />
बुद्धा वाला मुद्दा, भी जायज सुझाव है।
आदरणीय सौरभ सर, सादर प्रणाम।<br />
ये सही है कि बह्र में फंस गया हूँ।<br />
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बुद्धा वाला मुद्दा, भी जायज सुझाव है। व्यंग्य की अंतर्धारा से पगी ह…tag:openbooks.ning.com,2016-05-02:5170231:Comment:7623872016-05-02T13:37:01.762ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>व्यंग्य की अंतर्धारा से पगी हुई यह ग़ज़ल आपकी सधी हुई ग़ज़लों में से है, पंकज भाई. इस प्रस्तुति में लोकप्रियता के सारे गुण है, बधाई हो !</p>
<p></p>
<p>लेकिन, <strong>बुद्ध</strong> को <strong>बुद्धा</strong> के रूप में प्रयोग करने से साग्रह बचना चाहिए. यह शब्दों की विकृति ही है जिसे हम अनायास तो कई बार सायास स्वीकार करते हैं. </p>
<p></p>
<p></p>
<p>लेकिन जो बात आवश्यक रूप से कहना है, वह ये है, कि इस ग़ज़ल के सारे मिसरे बेबहर हैं. भाई, आप स्वयं तक्तीह करें और फिर देखें. आपने सोलह ग़ाम लिये हैं.…</p>
<p>व्यंग्य की अंतर्धारा से पगी हुई यह ग़ज़ल आपकी सधी हुई ग़ज़लों में से है, पंकज भाई. इस प्रस्तुति में लोकप्रियता के सारे गुण है, बधाई हो !</p>
<p></p>
<p>लेकिन, <strong>बुद्ध</strong> को <strong>बुद्धा</strong> के रूप में प्रयोग करने से साग्रह बचना चाहिए. यह शब्दों की विकृति ही है जिसे हम अनायास तो कई बार सायास स्वीकार करते हैं. </p>
<p></p>
<p></p>
<p>लेकिन जो बात आवश्यक रूप से कहना है, वह ये है, कि इस ग़ज़ल के सारे मिसरे बेबहर हैं. भाई, आप स्वयं तक्तीह करें और फिर देखें. आपने सोलह ग़ाम लिये हैं. हैं न ?</p>
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<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> आदरणीय अग्रज श्री को प्रणाम(र…tag:openbooks.ning.com,2016-04-30:5170231:Comment:7620382016-04-30T15:10:09.378ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय अग्रज श्री को प्रणाम(रवि भैया)। सुझाव सिरोधार्य है, ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार।
आदरणीय अग्रज श्री को प्रणाम(रवि भैया)। सुझाव सिरोधार्य है, ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार। वाह वाह आदरणीय पंकज जी बहुत ब…tag:openbooks.ning.com,2016-04-30:5170231:Comment:7620302016-04-30T15:02:03.682ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
वाह वाह आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया अशआर कहे है उतनी ही सुन्दर प्रवाह है ।शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया है बधाई स्वीकार करें<br />
चौथे और छठे शेर में हादसे और ईश्वर के प्रयोग से थिंदा सा प्रवाह बाधित हो रहा है । सादर
वाह वाह आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया अशआर कहे है उतनी ही सुन्दर प्रवाह है ।शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया है बधाई स्वीकार करें<br />
चौथे और छठे शेर में हादसे और ईश्वर के प्रयोग से थिंदा सा प्रवाह बाधित हो रहा है । सादर आदरणीय श्याम नारायण सर बहुत ब…tag:openbooks.ning.com,2016-04-29:5170231:Comment:7609502016-04-29T10:56:43.711ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय श्याम नारायण सर बहुत बहुत आभार और सादर अभिवादन
आदरणीय श्याम नारायण सर बहुत बहुत आभार और सादर अभिवादन इस सुंदर रचना के लिये बधाई स…tag:openbooks.ning.com,2016-04-29:5170231:Comment:7607372016-04-29T07:44:57.991ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<table border="0" cellspacing="0" width="356">
<tbody><tr><td height="20" class="xl64" align="left" width="356">इस सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें ।</td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<tbody><tr><td height="20" class="xl64" align="left" width="356">इस सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें ।</td>
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</table> आदरणीय सुशील सरन सर, सादर प्र…tag:openbooks.ning.com,2016-04-28:5170231:Comment:7601492016-04-28T14:50:28.987ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय सुशील सरन सर, सादर प्रणाम और बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय सुशील सरन सर, सादर प्रणाम और बहुत बहुत धन्यवाद