Comments - पढ़ सके तू जो अगर - ग़ज़ल (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ) - Open Books Online2024-03-28T12:39:33Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A735182&xn_auth=noआ भाई जेनिट जी हार्दिक धन्यवा…tag:openbooks.ning.com,2016-02-02:5170231:Comment:7378102016-02-02T18:40:22.263Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ भाई जेनिट जी हार्दिक धन्यवाद l</p>
<p>आ भाई जेनिट जी हार्दिक धन्यवाद l</p> आ० भाई हरी प्रकाश जी प्रशंसा…tag:openbooks.ning.com,2016-02-02:5170231:Comment:7376042016-02-02T18:39:54.502Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई हरी प्रकाश जी प्रशंसा के लिए आभार l</p>
<p>आ० भाई हरी प्रकाश जी प्रशंसा के लिए आभार l</p> आ० भाई रवि शुक्ल जी उत्साहवर…tag:openbooks.ning.com,2016-02-02:5170231:Comment:7376552016-02-02T18:38:54.202Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span id="7_TRN_0">आ० भाई रवि शुक्ल जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</span></p>
<p><span id="7_TRN_0">आ० भाई रवि शुक्ल जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</span></p> सुन्दर ग़ज़ल कही आपने आदरणीय लक…tag:openbooks.ning.com,2016-02-02:5170231:Comment:7374962016-02-02T12:50:00.420Zजयनित कुमार मेहताhttps://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
सुन्दर ग़ज़ल कही आपने आदरणीय लक्ष्मण जी..
सुन्दर ग़ज़ल कही आपने आदरणीय लक्ष्मण जी.. पढ़ सके तू जो अगर रोज किताबों…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7375832016-02-01T20:33:00.031ZHari Prakash Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/HariPrakashDubey
<p><span>पढ़ सके तू जो अगर रोज किताबों सा पढ़</span><br/><span>है नहीं बात कोई मुझ में छुपाने के लिए....सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आ.<span>लक्ष्मण धामी जी ! सादर </span></span></p>
<p><span>पढ़ सके तू जो अगर रोज किताबों सा पढ़</span><br/><span>है नहीं बात कोई मुझ में छुपाने के लिए....सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आ.<span>लक्ष्मण धामी जी ! सादर </span></span></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बढि़या…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7372842016-02-01T08:00:11.449ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बढि़या गजल के लिये दाद कुबूल करें</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बढि़या गजल के लिये दाद कुबूल करें</p> आ भाई सुशील जी ,उत्साहवर्धन क…tag:openbooks.ning.com,2016-01-31:5170231:Comment:7370352016-01-31T13:05:33.878Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ भाई सुशील जी ,उत्साहवर्धन के लिए आभार l</p>
<p>आ भाई सुशील जी ,उत्साहवर्धन के लिए आभार l</p> आ० भाई तेजवीर जी प्रशंसा के ल…tag:openbooks.ning.com,2016-01-31:5170231:Comment:7368632016-01-31T13:04:45.502Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई तेजवीर जी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p>
<p>आ० भाई तेजवीर जी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p> आ० भाई समर कबीर जी ,उपस्थिति…tag:openbooks.ning.com,2016-01-31:5170231:Comment:7370332016-01-31T13:04:01.557Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई समर कबीर जी ,उपस्थिति प्रशंसा और बेहतरीन सलाह देने के लिए आभार l</p>
<p>आ० भाई समर कबीर जी ,उपस्थिति प्रशंसा और बेहतरीन सलाह देने के लिए आभार l</p> शौक पाला जो सितम हमने उठाने क…tag:openbooks.ning.com,2016-01-29:5170231:Comment:7352962016-01-29T15:39:02.178ZSushil Sarnahttps://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>शौक पाला जो सितम हमने उठाने के लिए<br/>आ गई धूप भी राहों में सताने के लिए /3</p>
<p>वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी वाह .... बेहद खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस दिलकश ग़ज़ल में। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।</p>
<p>शौक पाला जो सितम हमने उठाने के लिए<br/>आ गई धूप भी राहों में सताने के लिए /3</p>
<p>वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी वाह .... बेहद खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस दिलकश ग़ज़ल में। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।</p>