Comments - आवेश - Open Books Online2024-03-28T11:05:59Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A713125&xn_auth=noमनसभूमि पर कविता के जन्म लेने…tag:openbooks.ning.com,2015-11-07:5170231:Comment:7137012015-11-07T17:51:40.772ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>मनसभूमि पर कविता के जन्म लेने से कागज़ पर उतरने की प्रक्रिया को यथा शब्द दिए हैं आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी </p>
<p>बधाई</p>
<p>मनसभूमि पर कविता के जन्म लेने से कागज़ पर उतरने की प्रक्रिया को यथा शब्द दिए हैं आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी </p>
<p>बधाई</p> मानो कोई उड़ेल देता है
उसमें भ…tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:Comment:7131722015-11-05T10:56:15.348ZAbid ali mansoorihttps://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p>मानो कोई उड़ेल देता है</p>
<p>उसमें भावों की सम्पदा </p>
<p>जो स्वस्थ चित्त में</p>
<p>चाह कर भी नहीं उभरता </p>
<p>वह अभिव्यक्त हो जाता है</p>
<p>उस आवेश में!</p>
<p></p>
<p>वधाई आदरणीय गोपाल नारायन जी!</p>
<p>मानो कोई उड़ेल देता है</p>
<p>उसमें भावों की सम्पदा </p>
<p>जो स्वस्थ चित्त में</p>
<p>चाह कर भी नहीं उभरता </p>
<p>वह अभिव्यक्त हो जाता है</p>
<p>उस आवेश में!</p>
<p></p>
<p>वधाई आदरणीय गोपाल नारायन जी!</p> " अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,ब…tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:Comment:7131042015-11-05T09:43:49.974ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<p></p>
<table width="306">
<colgroup><col width="306"></col></colgroup><tbody><tr><td class="et1" height="19" width="306">" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p></p>
<p></p>
<table width="306">
<colgroup><col width="306"></col></colgroup><tbody><tr><td class="et1" height="19" width="306">" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p></p> मानो कोई उड़ेल देता हैउसमें भा…tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:Comment:7129882015-11-05T08:04:23.758ZSushil Sarnahttps://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>मानो कोई उड़ेल देता है<br/>उसमें भावों की सम्पदा <br/>जो स्वस्थ चित्त में<br/>चाह कर भी नहीं उभरता <br/>वह अभिव्यक्त हो जाता है<br/>उस आवेश में<br/>स्वतः अपने आप<br/>और हम कहते हैं उसे<br/>कविता</p>
<p>सच काव्य उत्पति का कितना सुंदर चित्रण किया है … बिलकुल सही बात कही है आपने कागज़ के सामने आते ही लेखनी स्वयमेव उसपर शब्दों के घुँघरू बाँध अंतर्भावों की लय पर नृत्य करने लगती है और एक गीत का सृजन हो जाता है। इस सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब।</p>
<p>मानो कोई उड़ेल देता है<br/>उसमें भावों की सम्पदा <br/>जो स्वस्थ चित्त में<br/>चाह कर भी नहीं उभरता <br/>वह अभिव्यक्त हो जाता है<br/>उस आवेश में<br/>स्वतः अपने आप<br/>और हम कहते हैं उसे<br/>कविता</p>
<p>सच काव्य उत्पति का कितना सुंदर चित्रण किया है … बिलकुल सही बात कही है आपने कागज़ के सामने आते ही लेखनी स्वयमेव उसपर शब्दों के घुँघरू बाँध अंतर्भावों की लय पर नृत्य करने लगती है और एक गीत का सृजन हो जाता है। इस सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब।</p> आदरणीय गोपाल सर, कविता की रचन…tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:Comment:7129752015-11-05T06:55:20.731Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय गोपाल सर, कविता की रचनाप्रक्रिया के आधार पर कविता को परिभाषित करती बढ़िया कविता हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.</p>
<p>आदरणीय गोपाल सर, कविता की रचनाप्रक्रिया के आधार पर कविता को परिभाषित करती बढ़िया कविता हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.</p>