Comments - तो बेहतर था - Open Books Online2024-03-28T17:22:02Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A707302&xn_auth=noआदरणीय कान्ता रॉय मैम सादर धन…tag:openbooks.ning.com,2015-10-22:5170231:Comment:7080952015-10-22T08:26:58.710ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय कान्ता रॉय मैम सादर धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रिया, मनोबल बढ़ाती है।
आदरणीय कान्ता रॉय मैम सादर धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रिया, मनोबल बढ़ाती है। यहाँ खोने का डर था तो वहाँ सं…tag:openbooks.ning.com,2015-10-22:5170231:Comment:7079612015-10-22T01:04:04.742Zkanta royhttps://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।<br />
कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।..... वाह !!! बहुत ही शानदार ! बधाई हो ।
यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।<br />
कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।..... वाह !!! बहुत ही शानदार ! बधाई हो । आदरणीय राहिला जी सादर धन्यवाद।tag:openbooks.ning.com,2015-10-21:5170231:Comment:7079342015-10-21T11:28:37.127ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय राहिला जी सादर धन्यवाद।
आदरणीय राहिला जी सादर धन्यवाद। आदरणीय मिथिलेश सर रचना को आपक…tag:openbooks.ning.com,2015-10-21:5170231:Comment:7080402015-10-21T11:28:06.486ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय मिथिलेश सर रचना को आपका आशीर्वाद मिला; अच्छा लग रहा। ये आप लोगों के सहयोग और ओबीओ मंच की देना है।
आदरणीय मिथिलेश सर रचना को आपका आशीर्वाद मिला; अच्छा लग रहा। ये आप लोगों के सहयोग और ओबीओ मंच की देना है। आद. पंकज जी! बहुत ही खूबसूरत…tag:openbooks.ning.com,2015-10-21:5170231:Comment:7081242015-10-21T10:47:00.667ZRahilahttps://openbooks.ning.com/profile/Rahila
आद. पंकज जी! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल "न खाली हो. ..तो बेहतर था "वाह कितनी खूबसूरत ।
आद. पंकज जी! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल "न खाली हो. ..तो बेहतर था "वाह कितनी खूबसूरत । आदरणीय पंकज जी, बहुत ही शानदा…tag:openbooks.ning.com,2015-10-21:5170231:Comment:7080262015-10-21T09:58:06.202Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय पंकज जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर बेहतरीन है. आदरणीय आमोद जी की इस्लाह से मतला भी निखर गया. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं. ये शेर तो बस कमाल है -</p>
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<p><span>न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।</span><br></br><span>घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।..................... वाह वाह </span><br></br><br></br><span>यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।</span><br></br><span>कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।...........…</span></p>
<p>आदरणीय पंकज जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर बेहतरीन है. आदरणीय आमोद जी की इस्लाह से मतला भी निखर गया. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं. ये शेर तो बस कमाल है -</p>
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<p><span>न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।</span><br/><span>घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।..................... वाह वाह </span><br/><br/><span>यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।</span><br/><span>कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।........... लाजवाब </span></p>
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<p>सादर </p> आमोद बिन्दौरी जी के सुझाव के…tag:openbooks.ning.com,2015-10-19:5170231:Comment:7078312015-10-19T15:38:38.141ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आमोद बिन्दौरी जी के सुझाव के अनुरूप मतला पढ़ा जाये-
आमोद बिन्दौरी जी के सुझाव के अनुरूप मतला पढ़ा जाये- बहुत दिनों बाद आगमन;स्वागत है…tag:openbooks.ning.com,2015-10-19:5170231:Comment:7077432015-10-19T15:37:17.350ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
बहुत दिनों बाद आगमन;स्वागत है- आपका भी और आपके सुझाव का भी मनोज भाई।
बहुत दिनों बाद आगमन;स्वागत है- आपका भी और आपके सुझाव का भी मनोज भाई। आदरणीय पंकज जी बहुत खूब
बेहतर…tag:openbooks.ning.com,2015-10-19:5170231:Comment:7075752015-10-19T14:29:32.852Zमनोज अहसासhttps://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
आदरणीय पंकज जी बहुत खूब<br />
बेहतर<br />
मतला थोड़ा और समय चाहता हूँ<br />
सादर
आदरणीय पंकज जी बहुत खूब<br />
बेहतर<br />
मतला थोड़ा और समय चाहता हूँ<br />
सादर जो तुम नैनो के पर्दे को उठा ल…tag:openbooks.ning.com,2015-10-19:5170231:Comment:7076482015-10-19T14:10:38.732Zamod shrivastav (bindouri)https://openbooks.ning.com/profile/amodbindouri
जो तुम नैनो के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था ,,,,,,,,को कर के देखिये बांकी बहुत सुन्दर है बधाई
जो तुम नैनो के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था ,,,,,,,,को कर के देखिये बांकी बहुत सुन्दर है बधाई