Comments - ग़ज़ल-नजर मिल रही थी तो दिल डर गया। - Open Books Online2024-03-28T11:19:43Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A674356&xn_auth=noजमाने ने सर पर बिठाया उसे।
जर…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6763242015-07-12T16:57:06.653Zshree suneelhttps://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br />
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।.. ख़ूब.. सही बात<br />
अच्छी ग़ज़ल कही आपने आदरणीय. बधाई.. बधाई.
जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br />
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।.. ख़ूब.. सही बात<br />
अच्छी ग़ज़ल कही आपने आदरणीय. बधाई.. बधाई. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवा…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6760092015-07-12T07:10:42.416ZRahul Dangi Panchalhttps://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत…tag:openbooks.ning.com,2015-07-11:5170231:Comment:6752932015-07-11T15:42:00.552ZRahul Dangi Panchalhttps://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया । देर के लिए माफी चाहता हूँ। माता वैष्णो के दर्शन करने गया था। जय माता दी।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया । देर के लिए माफी चाहता हूँ। माता वैष्णो के दर्शन करने गया था। जय माता दी। आदरणीय राहुल भाई , सभी शे र ब…tag:openbooks.ning.com,2015-07-11:5170231:Comment:6752042015-07-11T06:53:38.813Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय राहुल भाई , सभी शे र बहुत लाजवाब हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>
<p>जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br/> जरा सी उछल कूद जो कर गया।।</p>
<p></p>
<p>हँसाने की कोशिश करों उसको तुम। ---- उला को ऐसे भी कह सकते हैं --- हँसाने की कोशिश तो की थी उसे <br/> जो आँखों में लेकर समन्दर गया।।<br/> जो आँखों में लेकर समन्दर गया।। </p>
<p>आदरणीय राहुल भाई , सभी शे र बहुत लाजवाब हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>
<p>जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br/> जरा सी उछल कूद जो कर गया।।</p>
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<p>हँसाने की कोशिश करों उसको तुम। ---- उला को ऐसे भी कह सकते हैं --- हँसाने की कोशिश तो की थी उसे <br/> जो आँखों में लेकर समन्दर गया।।<br/> जो आँखों में लेकर समन्दर गया।। </p> बहुत बढ़िया दांगी जी मुबारक ह…tag:openbooks.ning.com,2015-07-10:5170231:Comment:6749702015-07-10T15:15:21.854Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>बहुत बढ़िया दांगी जी मुबारक हो .</p>
<p>बहुत बढ़िया दांगी जी मुबारक हो .</p> आदरणीय Pari M Shlok जी आपका ब…tag:openbooks.ning.com,2015-07-09:5170231:Comment:6744252015-07-09T13:09:16.114ZRahul Dangi Panchalhttps://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
आदरणीय Pari M Shlok जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया । सादर नमन
आदरणीय Pari M Shlok जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया । सादर नमन कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।
जह…tag:openbooks.ning.com,2015-07-09:5170231:Comment:6745082015-07-09T09:46:58.637ZPari M Shlokhttps://openbooks.ning.com/profile/PariMShlok
कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।<br />
जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।<br />
<br />
जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br />
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।<br />
<br />
वो इक शे'र डूबा हुआ प्यार में।<br />
बहुत तो नहीं पर असर कर गया।।<br />
<br />
कमाल क्या बात है मुक़म्मल ग़ज़ल कहेंगे इसे शायद :)
कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।<br />
जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।<br />
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जमाने ने सर पर बिठाया उसे।<br />
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।<br />
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वो इक शे'र डूबा हुआ प्यार में।<br />
बहुत तो नहीं पर असर कर गया।।<br />
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कमाल क्या बात है मुक़म्मल ग़ज़ल कहेंगे इसे शायद :) आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी…tag:openbooks.ning.com,2015-07-09:5170231:Comment:6742652015-07-09T07:21:29.830ZRahul Dangi Panchalhttps://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सफल हुई । सादर धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सफल हुई । सादर धन्यवाद आदरणीय राहुल भाईजी, बहुत अच्छ…tag:openbooks.ning.com,2015-07-09:5170231:Comment:6742612015-07-09T07:02:29.271Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span>आदरणीय राहुल भाईजी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं </span></p>
<p><span>आदरणीय राहुल भाईजी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं </span></p> आदरणीय भाई धर्मेन्द्र कुमार स…tag:openbooks.ning.com,2015-07-09:5170231:Comment:6740802015-07-09T05:05:10.652ZRahul Dangi Panchalhttps://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत बहुत शुक्रिया