Comments - सत्ता का विकेन्द्रीकरण (लघुकथा) // -शुभ्रांशु - Open Books Online2024-03-28T13:36:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A672761&xn_auth=noवाह वाह भाई बहुत सुन्दर परिभष…tag:openbooks.ning.com,2015-07-15:5170231:Comment:6769582015-07-15T15:16:42.785Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p>वाह वाह भाई बहुत सुन्दर परिभषित किया विकेंद्रीकरण घरोँ</p>
<p>वाह वाह भाई बहुत सुन्दर परिभषित किया विकेंद्रीकरण घरोँ</p> कथा पर आने और विचार देने के ल…tag:openbooks.ning.com,2015-07-15:5170231:Comment:6769512015-07-15T13:05:29.116ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>कथा पर आने और विचार देने के लिये बहुत बहुत आभार मिथिलेश जी.</p>
<p>कथा पर आने और विचार देने के लिये बहुत बहुत आभार मिथिलेश जी.</p> आदरणीय Shubhranshu Pandey जी…tag:openbooks.ning.com,2015-07-14:5170231:Comment:6765602015-07-14T02:30:09.514ZOmprakash Kshatriyahttps://openbooks.ning.com/profile/OmprakashKshatriya
<p><span>आदरणीय <a href="http://openbooksonline.com/profile/ShubhranshuPandey">Shubhranshu Pandey</a><a class="nolink"> </a> जी</span></p>
<p><span>//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है. // का सन्देश देती प्रेरक लघुकथा .</span></p>
<p><span>आदरणीय <a href="http://openbooksonline.com/profile/ShubhranshuPandey">Shubhranshu Pandey</a><a class="nolink"> </a> जी</span></p>
<p><span>//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है. // का सन्देश देती प्रेरक लघुकथा .</span></p> //सत्ता के विकेन्द्रीकरण के क…tag:openbooks.ning.com,2015-07-14:5170231:Comment:6764822015-07-14T00:31:19.308ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है.// </span></p>
<p><span><span>आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , सादर </span></span></p>
<p>कोई अछुता कैसे रह सकता है ? कथा हेतु बधाई </p>
<p><span>//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है.// </span></p>
<p><span><span>आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , सादर </span></span></p>
<p>कोई अछुता कैसे रह सकता है ? कथा हेतु बधाई </p> अपनी-अपनी सत्ता और अपने-अपने…tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6765542015-07-13T18:22:46.244ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अपनी-अपनी सत्ता और अपने-अपने मायने ! जिसकी जितनी पहुँच होती है उतने में ही अपना पैर फैला कर रखना चाहता है. बिम्बों के माध्यम से एक आम घटना को बेहद सफल आयाम मिला है, भाई शुभ्रांशु जी. इस विशिष्ट दृष्टिकोण केलिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p>
<p>अपनी-अपनी सत्ता और अपने-अपने मायने ! जिसकी जितनी पहुँच होती है उतने में ही अपना पैर फैला कर रखना चाहता है. बिम्बों के माध्यम से एक आम घटना को बेहद सफल आयाम मिला है, भाई शुभ्रांशु जी. इस विशिष्ट दृष्टिकोण केलिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p> बहुत ही सुन्दर कटाक्ष ! आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2015-07-06:5170231:Comment:6735342015-07-06T14:49:25.657ZJAWAHAR LAL SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>बहुत ही सुन्दर कटाक्ष ! आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी!</p>
<p>बहुत ही सुन्दर कटाक्ष ! आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी!</p> आदरणीय Shubhranshu Pandey जी…tag:openbooks.ning.com,2015-07-06:5170231:Comment:6734422015-07-06T13:56:26.953ZMohan Sethi 'इंतज़ार'https://openbooks.ning.com/profile/MohanSethi
<p>आदरणीय Shubhranshu Pandey जी रचना प्रभावी है .....बधाई </p>
<p></p>
<p>आदरणीय Shubhranshu Pandey जी रचना प्रभावी है .....बधाई </p>
<p></p> वाह, वाह, अच्छी लघुकथा के लिए…tag:openbooks.ning.com,2015-07-06:5170231:Comment:6732962015-07-06T12:54:29.829Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttps://openbooks.ning.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>वाह, वाह, अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल कीजिए</p>
<p></p>
<p>वाह, वाह, अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल कीजिए</p>
<p></p> वाह , बड़ी पैनी नज़र | शीर्षक भ…tag:openbooks.ning.com,2015-07-06:5170231:Comment:6731852015-07-06T07:20:41.174Zविनय कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>वाह , बड़ी पैनी नज़र | शीर्षक भी कमाल का है , बहुत बहुत बधाई आदरणीय इस लघुकथा के लिए .</p>
<p></p>
<p>वाह , बड़ी पैनी नज़र | शीर्षक भी कमाल का है , बहुत बहुत बधाई आदरणीय इस लघुकथा के लिए .</p>
<p></p> हा हा हा
आदरणीय शुभ्रांशु भा…tag:openbooks.ning.com,2015-07-06:5170231:Comment:6731032015-07-06T07:11:58.152Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>हा हा हा </p>
<p>आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी बेहतरीन लघुकथा हुई है.... सांस बहू के संबंधों में आये बदलाव को जिस बारीकी से आपने पकड़ा है, चकित हूँ. बहुत बार देखी गई स्थिति है लेकिन जिस सूक्ष्म दृष्टि से उसका आपने विश्लेषण किया है वह कमाल है. </p>
<p>बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर </p>
<p></p>
<p>हा हा हा </p>
<p>आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी बेहतरीन लघुकथा हुई है.... सांस बहू के संबंधों में आये बदलाव को जिस बारीकी से आपने पकड़ा है, चकित हूँ. बहुत बार देखी गई स्थिति है लेकिन जिस सूक्ष्म दृष्टि से उसका आपने विश्लेषण किया है वह कमाल है. </p>
<p>बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर </p>
<p></p>