Comments - गलत संगति - Open Books Online2024-03-28T23:30:59Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A662773&xn_auth=noइस प्रस्तुति पर मिले सार्थक स…tag:openbooks.ning.com,2015-07-02:5170231:Comment:6721442015-07-02T19:55:46.432ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस प्रस्तुति पर मिले सार्थक सुझावों को स्वीकार कर तदनुरूप परिवर्तन करें भाईजी. हार्दिक शुभकामनाएँ</p>
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<p>इस प्रस्तुति पर मिले सार्थक सुझावों को स्वीकार कर तदनुरूप परिवर्तन करें भाईजी. हार्दिक शुभकामनाएँ</p>
<p></p> आदरणीय महर्षि भाई जी इस प्रस्…tag:openbooks.ning.com,2015-06-24:5170231:Comment:6676652015-06-24T20:21:21.838Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय <span>महर्षि भाई जी इस प्रस्तुति हेतु बधाई </span></p>
<p>पंच लाइन पर पुनर्विचार निवेदित है </p>
<p>आदरणीय <span>महर्षि भाई जी इस प्रस्तुति हेतु बधाई </span></p>
<p>पंच लाइन पर पुनर्विचार निवेदित है </p> आ. somesh kumar जी ,,,रचना आप…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6657332015-06-17T13:36:38.252Zmaharshi tripathihttps://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/someshkuar" class="fn url">somesh kumar</a><span> जी ,,,रचना आपको जेट राकेट से लगी इसके लिए ,,,,,,छमाप्रार्थी हूँ ,,,आ.बड़े भाई जी आगे से आपकी बातों का ध्यान रखूँगा ,,,, सभी गुणीजन रचना पर अपनी प्रतिक्रिया यूँ ही देते रहे |</span></p>
<p>आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/someshkuar" class="fn url">somesh kumar</a><span> जी ,,,रचना आपको जेट राकेट से लगी इसके लिए ,,,,,,छमाप्रार्थी हूँ ,,,आ.बड़े भाई जी आगे से आपकी बातों का ध्यान रखूँगा ,,,, सभी गुणीजन रचना पर अपनी प्रतिक्रिया यूँ ही देते रहे |</span></p> आ. kanta roy जी ,,आजकल संस्का…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6658292015-06-17T13:31:44.135Zmaharshi tripathihttps://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/kantaroy" class="fn url">kanta roy</a> जी ,,आजकल संस्कार की नीव कितनी भी मजबूत हो पर गलत सस्न्स्कृत उस पर भारी पड़ती है ,,,आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA" class="fn url">VIRENDER VEER MEHTA</a> जी से सहमत हूँ |</p>
<p>आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/kantaroy" class="fn url">kanta roy</a> जी ,,आजकल संस्कार की नीव कितनी भी मजबूत हो पर गलत सस्न्स्कृत उस पर भारी पड़ती है ,,,आ.<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA" class="fn url">VIRENDER VEER MEHTA</a> जी से सहमत हूँ |</p> प्रिय भाई महर्षि...लघुकथा का…tag:openbooks.ning.com,2015-06-13:5170231:Comment:6649152015-06-13T16:08:37.659ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttps://openbooks.ning.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>प्रिय भाई महर्षि...लघुकथा का सुन्दर प्रयास हुआ है..हार्दिक बधाई..जैसा कि सोमेश भाई ने मार्गदर्शन किया है --''लिखें,गढ़े फिर प्रस्तुत करें'' इस को जरूर समझिएगा!!</p>
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<p>प्रिय भाई महर्षि...लघुकथा का सुन्दर प्रयास हुआ है..हार्दिक बधाई..जैसा कि सोमेश भाई ने मार्गदर्शन किया है --''लिखें,गढ़े फिर प्रस्तुत करें'' इस को जरूर समझिएगा!!</p>
<p></p> कहानी जेट रॉकेट सी लगी,लिखें,…tag:openbooks.ning.com,2015-06-10:5170231:Comment:6639102015-06-10T11:44:58.053Zsomesh kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/someshkuar
कहानी जेट रॉकेट सी लगी,लिखें,गढ़े फिर प्रस्तुत करें
कहानी जेट रॉकेट सी लगी,लिखें,गढ़े फिर प्रस्तुत करें आदरणीय महर्षि जी,
सुन्दर भाव…tag:openbooks.ning.com,2015-06-10:5170231:Comment:6636682015-06-10T09:58:09.936ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीय महर्षि जी, </p>
<p>सुन्दर भाव से लिखी गयी कथा. लेकिन ऎसा लगता है कि एक बार इस कथा को जाब टेबल पर पुनः रखा जा सकता है. </p>
<p>सादर.</p>
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<p>आदरणीय महर्षि जी, </p>
<p>सुन्दर भाव से लिखी गयी कथा. लेकिन ऎसा लगता है कि एक बार इस कथा को जाब टेबल पर पुनः रखा जा सकता है. </p>
<p>सादर.</p>
<p></p> आदरणीय महर्षि जी ..आपकी रचना…tag:openbooks.ning.com,2015-06-10:5170231:Comment:6635912015-06-10T09:55:49.740ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय महर्षि जी ..आपकी रचना पढ़कर सोच रहा हूँ की क्या गुजरती है ऐसे हर पिता पर ...लेकिन आज कल यही हो रहा है ..जो अत्यनत दुखद है ..इस चिंतन के लिए तहे दिल बधाई सादर </p>
<p>आदरणीय महर्षि जी ..आपकी रचना पढ़कर सोच रहा हूँ की क्या गुजरती है ऐसे हर पिता पर ...लेकिन आज कल यही हो रहा है ..जो अत्यनत दुखद है ..इस चिंतन के लिए तहे दिल बधाई सादर </p> सार्थक कथा आदरणीय मह्रिषी त्र…tag:openbooks.ning.com,2015-06-10:5170231:Comment:6634822015-06-10T05:20:05.188ZVIRENDER VEER MEHTAhttps://openbooks.ning.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>सार्थक कथा आदरणीय मह्रिषी त्रिपाठी जी ....सादर बधाई !.</p>
<p>घर से दूर बाहर की संगत का असर संस्कारों पर भी अक्सर भारी पड़ जाता है. </p>
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<p>सार्थक कथा आदरणीय मह्रिषी त्रिपाठी जी ....सादर बधाई !.</p>
<p>घर से दूर बाहर की संगत का असर संस्कारों पर भी अक्सर भारी पड़ जाता है. </p>
<p></p> बच्चे कहीं भी जाये घर के संस्…tag:openbooks.ning.com,2015-06-09:5170231:Comment:6632752015-06-09T05:37:22.650Zkanta royhttps://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
बच्चे कहीं भी जाये घर के संस्कार उसके जीवन में सुरक्षा कवच की तरह ही होते है .... अगर संस्कारों की नींव मजबूत हो तो कोई भी संगत उसे बिगाड़ नहीं सकती है .... गर वो बिगड़ा है तो कहीं संस्कार ही कमजोर रहें होंगे । इस प्रयास के लिए बधाई आपको आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी
बच्चे कहीं भी जाये घर के संस्कार उसके जीवन में सुरक्षा कवच की तरह ही होते है .... अगर संस्कारों की नींव मजबूत हो तो कोई भी संगत उसे बिगाड़ नहीं सकती है .... गर वो बिगड़ा है तो कहीं संस्कार ही कमजोर रहें होंगे । इस प्रयास के लिए बधाई आपको आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी